आसमान से तोड़ कर सितारा दिया है, आलम-ए-तन्हाई में एक शरारा दिया है, मेरी किस्मत भी नाज़ करती है मुझपे, खुदा ने दोस्त ही इतना प्यारा दिया है।
हमारे तो दामन मे काँटो के सिवा कुछ नहीं, आप तो फूलों के खरीदार नजर आते हो, जहा मे कितने दोस्त मिले, पर सबसे अच्छे तो आप नजर आते हो.
😂😂😀😀😀😀 गुनाह करके सजा से डरते हैं, ज़हर पी के दवा से डरते हैं, दुश्मनों के सितम का खौफ नहीं हमें, हम तो दोस्तों के खफा होने से डरते है। 😂😂😀😀😀😀
किस्मत वालों को ही मिलती है, पनाह दोस्तों के दिल में, यूँ ही हर शख्स. जन्नत का हक़दार नहीं होता 👬👬💯
महक दोस्ती की प्यार से कम नहीं होती, इश्क़ से ज़िन्दगी शुरू या खत्म नहीं होती, अगर साथ हो ज़िन्दगी में अच्छे दोस्तों का, तो यह ज़िन्दगी भी जन्नत से कम नहीं होती।
Dosto ki dosti hume raas bahut aayi, Yaaro ki yaari hume yaad bahut aayi, Zindagi me jab pal aaya sabse bichadne ka, Aankho se moti ban asnsuo ki bahar aayi
Muddat se door the hum tum, Ek zamaane ke baad milna achha laga, Saagar se gehri lagi aapki dosti, Tairna to aata tha par doob jana achha laga.
कौन कहता है कि दोस्ती बराबरी में होती है सच तो ये है दोस्ती में सब बराबर होते है..!!
तू दूर है मुझसे और पास भी है, 👬😀 तेरी कमी का एहसास भी है, दोस्त तो हमारे लाखो है इस जहाँ में, पर तू प्यारा भी है और खास भी है।👬😀
लड़का फोन पे अपने दोस्त को: क्या बे कुत्ते के पिल्ले, आया क्यों नही!! जबाब आया: कुत्ते का पिल्ला नहाने गया है, मैं कुत्ता बोल रहा हूँ !!! सॉरी अंकल 😀😁😂😃😄😅😆
तुम रूठे रूठे लगते हो, कोई तरकीब बताओ मनाने की, मैं ज़िन्दगी गिरवी रख दूं, तुम कीमत तो बताओ मुस्कुराने की।
वो दिल क्या जो मिलने की दुआ न करे, तुम्हें भुलकर जिऊ यह खुदा न करे, रहे तेरी दोस्ती मेरी जिन्दगानी बनकर, यह बात और है जिन्दगी वफा न करे|
एक ताबीज़ तेरी मेरी दोस्ती को भी चाहिए… थोड़ी सी दिखी नहीं कि नज़र लगने लगती है।
दोस्तो कदर करो हमारी वरना girlfriend उठा ले जाएंगे तुम्हारी 😂😂
न जाने क्यों हमें आँसू बहाना नहीं आता, न जाने क्यों हाले-दिल बताना नहीं आता, क्यों सब दोस्त खफा हो गए हमसे, शायद हमें ही साथ निभाना नहीं आता।
हम वो ‪#‎राजा‬😎 नही जो अपने ‪#‎भाईयो ‬ पे ‪#‎राज‬🔫 करते है ‪#‎हम‬ तो वो ‪#‎BAADSHAH‬👑 है.. जो ‪#‎भाइयो‬ 👬 के साथ #राज 🔫करते है.
Rishton Ki Ye Duniya Hai Nirali, Sab Rishto Se Pyari Hai Dosti Tumhari, aansu bhi manjur hai mujhe aankhon mein meri, Agar Aa jaye Muskan Hothon pe Tumhari.
एक पहचान हज़ारो दोस्त बना देती हैं, एक मुस्कान हज़ारो गम भुला देती हैं, ज़िंदगी के सफ़र मे संभाल कर चलना, एक ग़लती हज़ारो सपने जला कर राख देती है.
ना gaadi🚘… ना bullet🏍 … ना ही रखे हथियार 🔫 … एक है सीने में जिगरा 😈 और दुसरे ✌ जिगरी 😉yaar 👬 😚 Enjoy today my best friend I........ HaTE.......... LoVEr
खुशबू की तरह मेरी सांसों में रहना, लहू बनके मेरे आँसुओं में बहना, दोस्ती होती है रिश्तों का अनमोल गहना, इसीलिए दोस्त को कभी अलविदा न कहना।
⚜❥☞⩴❀✿❀❀✿❀⩴☜❥⚜ दोस्त 👬 तुम #पत्थर ☝भी #मारोगे 😩 तो भर लेंगे #झोली_अपनी, 😘 क्योंकि #हम 👦 #यारों 👬 के #तोहफ़े 🎁 #ठुकराया 😕 नहीं #करते !!😘😘 ⚜❥☞⩴❀✿❀❀✿❀⩴☜❥⚜ #👬दोस्ती-
दोस्ती नाम है सुख-दुःख की कहानी का, दोस्ती राज है सदा ही मुस्कुराने का, ये कोई पल भर की जान-पहचान नहीं है, दोस्ती वादा है उम्र भर साथ निभाने का।
Dosti Mein Dooriyan To Aati Rehti Hai, Phir Bhi Dosti Dilo Ko Mila Deti Hai, Wo Dosti Hi Kya Jo ruthti Na Ho, Par Sachi Dosti Dosto Ko hamesa Mana Leti Hai.
अपनी दोस्ती का बस इतना सा उसूल है जब तू कबूल है तो तेरा सब कुछ कबूल है
जो दिल के हो करीब उसे रुसवा नहीं करते, यूँ अपनी दोस्ती का तमाशा नहीं करते, खामोश रहोगे तो घुटन और बढ़ेगी, अपनों से कोई बात छुपाया नहीं करते।
❤❤❤❤🌹🌹 दोस्त आपकी दोस्ती का क्या खिताब दे, करते है इतना प्यार की क्या हिसाब दे। अगर आपसे भी अच्छा फूल होता तो ला देते, लेकिन जो खुद गुलदस्ता हो उसे क्या गुलाब दे। ❤❤❤❤🌹🌹
हर मोड़ पर मुकाम नहीं होता, दिल के रिश्तो का कोई नाम नहीं होता, चिराग़ों की रोशनी से ढूंढा है आपको, आप जैसा दोस्त मिलना आसान नहीं होता!!
ख़ुशी की परछाइयों का नाम है जिंदगी, गमों की गहराईओं का जाम है जिंदगी, एक प्यारा सा दोस्त है हमारा यहाँ, उसकी प्यारी सी हँसी का नाम है जिंदगी।
ख़ुशी से बीते हर दिल हर सुहानी रात हो, जिस तरफ आपके कदम पड़े फूलो के बरसात हो।
तेरी दोस्ती की आदत सी पड़ गयी है मुझे, कुछ देर तेरे साथ चलना बाकी है। शमसान मैं जलता छोड़ कर मत जाना, रना रूह कहेगी कि रुक जा, अभी तेरे यार का ल जलना बाकी है।
Laboo ki hasi tere naam kar denge, Har khushi tujh pe kurbaan kar denge, Jis din lage mere dosti mein kami to batana, Aye dost zindagi ko maut ke naam kar denge.
सच्चे दोस्त हमे कभी गिरने नहीं देते, ना किसी कि नजरों मे, ना किसी के कदमों मे.!!
वक्त की यारी तो हर कोई करता है मेरे दोस्त, मजा तो तब है जब वक्त बदले पर यार ना बदले।
देखी जो नब्ज मेरी तो हँस कर बोला हकीम, तेरे मर्ज़ का इलाज महफ़िल है तेरे दोस्तों की।
Dosti naam hai sukh dukh ki kahani ka, Dosti raaz hai sada muskurane ka, Ye koi pal bhar ki pehchan nahi, Dosti naam hai umar bhar sath nibhane ka.
Dosti Ghazal hai, gungunaane ke liye, Dosti nagma hai, sunaane ke liye, Ye wo jazba hai jo sabko milta nahi, Kyuki hausla chahiye dosti nibhaane ke liye.
हम अपने आप पर गुरूर नहीं करते, किसी को प्यार करने पर मजबूर नहीं करते, जिसे एक बार दिल से दोस्त बना लें, उसे मरते दम तक दिल से दूर नहीं करते।
💰#पैसे के लिये #दोस्ती 👬#तोड़ने वाले हम नही, 👬 #दोस्ती के लिये #दुश्मन 👤को #तोड़ने वाले हम है......🔫..😡😡
Tum yaad nahi karte hum bhula nahi sakte, Tum hasa nahi sakte hum Rula nahi sakte, Dosti itni khoobsurat hai hamari, Tum jaan nahi sakte aur hum bata nahi sakte.
Teri dosti ne diya sukoon itna, ke tere baad koi acha na lage, Tujhe karni hai bewafai to iss ada se kar, ki tere baad koi bewafa na lage.
वक्त की यारी तो हर कोई करता है मेरे दोस्त, मजा तो तब है.. जब वक्त बदल जाये पर यार ना बदले।
ज़िन्दगी के सारे गम क्यों बाँट लेते हैं दोस्त, क्यों ज़िन्दगी में साथ देते हैं दोस्त, रिश्ता तो सिर्फ उनसे दिल का होता है जी, फिर भी क्यों हमे अपना मान लेते हैं दोस्त।
कुछ रिश्ते खून के होते हैं, कुछ रिश्ते पैसे के होते हैं, जो लोग बिना रिश्ते के ही रिश्ते निभाते हैं, शायद वही “दोस्त” कहलाते हैं!!
Mulaqaat maut ki mehmaan ho gayi hai, Nazar ki zindagi sunsan ho gayi hai, Ab meri saans bhi meri nahi rahi, Ye Zindagi aapki dosti par kurbaan ho gayi hai.
केबल पानी से तस्वीर कहाँ बनती है, रूठे ख्वाबों से तकदीर कहां बनती है, किसी से दोस्ती करो तो सच्चे दिल से, क्यूँकि यह जिंदगी फिर कहाँ मिलती है।
दोस्त होकर भी महीनों नहीं मिलता मुझसे, उस से कहना कि कभी ज़ख्म लगाने आये।
Har aahat tumhe ehsaas hamara dilayegi, Har hawa ka jhoka khushbu hamari layega, Hum dosti kuch aisi nibhayenge, Ki hum ho na ho to humari yaad tumhe stayegi.
Dosti Mein Dost Khuda Hota Hai, Dost Ka Dusra Naam Wafa Hota Hai, Dosti Ka Ehsaas Tab Hota Hai, Jab Koi Dost Dost Se Juda Hota Hai.
👬दोस्ती होती है – One Time 🙃 हम निभाते है – Some Time 😇 याद किया करो – Any Time 🤗 तुम खुश रहो – All Time 🙏 यही दुआ है मेरी – Life Time
meri dhadkano pe uska hi raaz hoga, meri baat ka bas yahi andaaz hoga, kabhi bewafai nahi karte hum dosti mein, meri dosti pe aapko hamesha naaz hoga.
Har khushi Dil ke kareeb nahi hoti, zindagi ghamo se door nahi hoti, aye Dost is Dosti ko sanjokar rakhna, aisi Dosti har kisi ko naseeb nahi hoti.
किसी रोज़ याद न कर पाऊं तो खुदगर्ज़ न समझ लेना दोस्तों, दरसल छोटी सी इस उम्र में परेशानिया बहुत हैं, मैं भूला नहीं हूँ किसी को मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं ज़माने में, बस थोड़ी ज़िन्दगी उलझ पड़ी है दो वक़्त की रोटी कमाने में
😀😀 🌷 😀😀❤😀😀 Kuch Meethe Pal Yaad Aate Hain Palko Par Aansu Chor Jate Hain Kal Koi Aur Mil Jaye Toh Hume Na Bhool Jana Friendship Ke Relation Zindagi Bhar Kaam Aate Hain 😀😀 🌷 😀😀❤😀😀
Jaam pe jaam peene se kya fayada, Shaam ko pee subah phir utar jayegi, Peena hai to do boond dosti ki pee lo, Saari zindagi dosti ke nashe mein guzar jayegi.
छोटे से दिल में गम बहुत है, जिन्दगी में मिले जख्म बहुत हैं, मार ही डालती कब की ये दुनियाँ हमें, कम्बखत दोस्तों की दुआओं में दम बहुत है.
ज़िन्दगी लहर थी आप साहिल हुए, न जाने कैसे हम आपकी दोस्ती के काबिल हुए, न भूलेंगे हम उस हसीं पल को, जब आप हमारी छोटी सी ज़िन्दगी में शामिल हुए.
Chala Ja Message Tu Banke Gulab, Hogi Dosti Sacchi To Aayega Jawab, Agar Na Aaya Jawab To Mat Hona Udhas, Samajhnu yu Waqt Nahi Hai mere liye Unke Paas.
क्यूँ मुश्किलों में साथ देते हैं दोस्त, क्यूँ सारे ग़मों को बाँट लेते हैं दोस्त, न रिश्ता खून का न रिवाज से बंधा है, फिर भी ज़िन्दगी भर साथ देते हैं दोस्त।
दाग दुनिया ने दिए ज़ख्म ज़माने से मिले, हमको तोहफे ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले।
कुछ लोग भूल के भी भुलाये नहीं जाते, ऐतबार इतना है कि आजमाये नहीं जाते, हो जाते हैं दिल में इस तरह शामिल कि, उनके ख्याल दिल से मिटाये नहीं जाते।
Kabhi-kabhi sapne choor ho jaate hai, Halat se Dost bhi door ho jate hai, Par yeh yaadein har pal itna satati hai ki, aap ko sms karne ko hum majboor ho jate hai.
Kyo Koi Chah Kar Dosti Nibha Nahi Pata, Kyo Koi Chah Kar Rishta Bana Nahi Pata, Kyo Leti Hai Zindagi Aisi Karwat, Ki Koi Chahkar Bhi Pyar Jata Nahi Pata.
😀😀😀😀😀😀😀😀 खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ, लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ.. 😀😀😀😀 मालूम है कोई मोल नहीं मेरा, फिर भी, कुछ अनमोल लोगो से दोस्ती रखता हूँ। 😀😀😀😀😀😀😀
दुनियादारी में हम थोड़े कच्चे हैं, पर दोस्ती के मामले में सच्चे हैं, हमारी सच्चाई बस इस बात पर कायम है, कि हमारे दोस्त हमसे भी अच्छे हैं।
Ye Rog Ishq Ka Bahut Bura Hai Dosto, Aap Iss Rog Se Khud Ko Bacha Lena, Agar Koi Najrein Milana Bhi Chahe aapse, To Aap Najron Ko Apni niche jhuka Lena. Kuch Mithe Pal Yaad Aate Hai, Palko Par Aansu Chod Jaate Hai, Kal Koi Aur Mile To Hame Na Bhul Jana, Dosti Ke Rishte Zindagi Bhar Kam Aate Hai.
Dosti mausam nahi, Apni mudat puri kare or rukhsat ho jaye. Dosti sawan nahi, Toot k barse aur tham jaye. Dosti aag nahi, Sulge bharke aur rakh ho jaaye. Dosti aftab nahi, Chamke aur fir doob jaye, Dosti phool nahi, Khile aur murjha jaaye. Dosti to saans hain, Jo chale toh sab kuchh hain, Jo toot jaaye toh kuchh bhi nahi.
इतनी गर्मी में भी जो बन्दे अपने दोस्त की शादी में नाचते है। . . . . . . . . . उनका अहसान तो साली से सेटिंग करवा के भी ना उतारा जा सकता है। 😂😂😂
लड़का स्पीडब्रेकर के ऊपर से गाड़ी निकालेगा या साइड से.. . . . . . . ये इसपे डिपेंड करता है कि, पीछे दोस्त बैठा है या गर्लफ्रेंड..!" 🤪🤪🤪🤪🤪🤪
Zindagi Har Pal Khaas Nahi Hoti, Phulo Ki Khusbu Hamesha Pass Nahi Hoti, Milna Hamari Taqdeer Mein Likha Tha, Warna Itni Pyari Dosti Itefaq Nahi Hoti.
😀😀 🌷 😀😀❤😀😀 Dost shabd nahi jo mit jaaye, Umra nahi jo dhal jaaye,👬😀 Safar nahi jo kat jaaye, Yeh woh ehsaas hai, Jiske liye jiya jaaye to..👬😀 Zindagi kam pad jaaye. 😀😀 🌷 😀😀❤😀😀
Aashna hote hue bhi aashna koi nahi, Jante hai sab mujhe pehchanta koi nahi, Mukhtasir lafzo mein ye hai mizaj-e-dosti, Rabta beshak hai sab se wasta koi nahi.
👂🏻सुन ‪‎pagLi👩🏻 यु अकेली ‪‎🥨bazar ना जाया 🏃🏻‍♀कर , मेरे 👬दोस्त लोग 📞 ‪‎call कर के 🤙🏻पूछते है 🧔🏻भाई तु कहा ❌है तेरी 👩🏻‪‎wali ❄यहाँ है.... …
Rab Se Aapki Khushi Mangte Hai, Duaon Mein Apki Hansi Mangte Hai, Sochte Hai Aapse kya Maange, Chalo Aapse Umar Bhar ki Dosti Mangte Hai.
Andhere Me Raasta Dekhna Mushkil Hota Hai, Tufaan Me Diya Jalana Mushkil Hota Hai, Kisi Se Bhi Dosti Karna Itna Mushkil Nahi, Magar Dosti Nibha Pana Mushkil Hota Hai.
मुस्कराहट का कोई मोल नहीं होता, कुछ रिश्तों का कोई तोल नहीं होता, लोग तो मिल जाते है हर मोड़ पर लेकिन, हर कोई आपकी तरह अनमोल नहीं होता।
Bichadne Wale Ko Yaad Mein Kya Doge, Sote Hue Ko Khwab Mein Kya Doge, Hum Chahte Hai Umar Bhar Ki Friendship Ka waada, Mere Iss Sawal Ka akhir tum Jawab Kya Doge.
❤❤❤❤🌹🌹 मिल जाती है कितनो को ख़ुशी, मिट जाते हैं कितनो के गम, मैसेज इसलिये भेजते है हम, ताकि न मिलने से भी अपनी दोस्ती न हो कम. ❤❤❤❤🌹🌹
Sabki Dosti Mein Wo Baat Nahi Hoti, Thode Se Andhere Se Raat Nahi Hoti, Zindagi Me Kuch Log Bahut Pyare Milte Hai, Kya Kare Unhi Se Mulaqat Nahi Hoti.
Kuch kehte hai dosti pyaar hai, kuch kehte hai dosti zindagi hai, hum kehte hai Dosti sirf dosti hai, jise badhkar na pyaar hai na hi zindagi hai.
😂😂😀😀😀😀 Dost kabhi dosto se khafa nahi hote, Mile dil kabhi juda nahi hote, Bhula dena mere kamiyo ko kyunki, Dost kabhi khuda nahi hote. 😂😂😀😀😀😀
❤❤❤❤🌹🌹 दोस्ती अच्छी हो तो रंग़ लाती है दोस्ती गहरी हो तो सबको भाती है दोस्ती नादान हो तो टूट जाती है पर अगर दोस्ती अपने जैसी हो तो इतिहास बनाती है ❤❤❤❤🌹🌹
😂😂😀😀😀😀 Laakh Bandisen Laga Le Duniya Hum Par, Magar Dil Par Kaabu Nahi Kar Payenge,👬😀 Woh Lamha Aakhiri Hoga Zeevan Ka Hamara, Jis Din Hum Yaar Tujhe Bhul Jayenge.👬😀 😂😂😀😀😀😀
Chahte hai hum aapko kitna yeh bataye kaise, Dosti aapki aapse chupaye kaise, Asmaan se bhi unchi hai apni dosti, Iss chote se SMS mein aapko samjhaye kaise.
ये दोस्ती का रिश्ता भी कितना अजीब होता है, दूरिया होते हुए भी दिल कितने करीब होता है, नही देखते हम रंग,जाति और हैसियत को , क्यों की ये सभी रिस्तो से ज़्यादा अजीज होता है।
#चाहता ☺ तो #हूँ कि #हररोज ☝ आपको #अनमोलखजाना 📦 भेजू #दोस्तों, 👫 पर #मेरेदामन 👦 मे #दुआओं ☝ के #सिवाकुछ 😌 भी #नहीं ।। 😌😌
दोस्तों और दुश्मनों में किस तरह तफ़रीक़ हो दोस्तों और दुश्मनों की बे-रुख़ी है एक सी
Mann mein aapke har baat rahegi, choti si basti hai magar aabaad rahegi, Chahe hum bhulade zamane ko bhi, Magar aapki ye dosti hamesha yaad rahegi.
Na Khariyat Koi Na Paigam Aaya Hai, Jo Chaha Nahi Wo hi Anjam Aaya Hai, Kya Dost Ne Bhula Di Dosti Meri, Aaj Na Dua Na Koi Salaam Aaya Hai.
नफरत को हम प्यार देते है, प्यार पे खुशियाँ वार देते है, बहुत सोच समझकर हमसे कोई वादा करना, ऐ दोस्त हम वादे पर ज़िन्दगी गुजार देते है।
Door Ho Jaun To Zara humara Intezaar Karna, Apne Dil Ko Na Yoon kabhi tum Bekarar Karna, Laut Kar Aayenge Hum sada, chahe Jaha Bhi Jayenge, Bas Humari Dosti Par tum dil se Aitbar Karna.
😀😀 🌷 😀😀❤😀😀 Din beet jaate hain suhani yaadein bankar, Baatein reh jaati hain kahani bankar, Par dost to hamesha kareeb rahenge, Kabhi muskaan to aankhon ka pani bankar. 😀😀 🌷 😀😀❤😀😀
Request hai tumse refuse mat karna, Friendship ke ye dosti ko fuse mat karna, Hum dost hai tumahre confuse mat karna, Meri jagah kisi aur ko kabhi use mat karna.
Jo har pal chalti rahi wo zindagi hai, Jo har pal jalti rahi wo roshni hai, Jo pal-pal khilti rahi wo mohabbat hai, Aur jo kisi pal sath na chode wo meri dosti hai.
😀😀 🌷 😀😀❤😀😀 दोस्त ने दिल को तोड़ के नक़्श-ए-वफ़ा मिटा दिया समझे थे हम जिसे ख़लील काबा उसी ने ढा दिया 😀😀 🌷 😀😀❤😀😀
Karke dosti hum kisi ko nahi bhulate, zindagi bhar hum dosti hai nibhate, Na ho tumhe dosti mein kami ka ehsaas, esiliye hum naye dost bhi nahi banate.
Dil ki galiyon mein gam na ho, Bas ye dosti hamari kam na ho, Ye hai dua hamari ki tum khush raho, Kya pata hum kal ho na ho.
लोग रूप देखते है ,हम दिल देखते है , लोग सपने देखते है हम हक़ीकत देखते है, लोग दुनिया मे दोस्त देखते है, हम दोस्तो मे दुनिया देखते है.
तू दूर है मुझसे और पास भी है, मुझे तेरी कमी का एहसास भी है, दोस्त तो हमारे लाखों हैं इस जहाँ में, पर तू प्यारा भी है और खास भी है।
Dost Ne Dil Ka Haal Bataana Chhor Diya, Humne Bhi Gehrayi Mein Jana Chhor Diya, Aap Ne SMS Karna Kya Band Kar Diya, Humne Mobile ReCharge Karana Chhor Diya.
ऐश के यार तो अग़्यार भी बन जाते हैं दोस्त वो हैं जो बुरे वक़्त में काम आते हैं
❤❤❤❤🌹🌹 दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं ❤❤❤❤🌹🌹
गुनाह करके सजा से डरते है, ज़हर पी के दवा से डरते है। दुश्मनो के सितम का खौफ नहीं हमे, हम तो दोस्तों के खफा होने से डरते है।
Apki aankhon mein aansu kabhi aane na denge, Aapki ye pyari si dosti yu jaane na denge, Agar mitna pada kabhi humari dosti ke khatir, Kasam se hum aisa ye mauka bhi hath se jaane na denge.
Tumse Dosti kuch iss tarah Nibhayenge, hazar baar ruthoge to manayenge, maan jana warna aisi dosti dikhayenge, ki log aapse milne ke liye patal lok aayenge.
Dosti hum ne khoob nibhayi hai, dosti aur pyaar me na koi dewaar banayi hai, log to dosti karte hai chehre dekh kar, par aap ne to dosti ki ek pehchaan banayi hai.
😂😂😀😀😀😀 वक्त की यारी तो हर कोई करता है मेरे दोस्त, मजा तो तब है.. जब वक्त बदल जाये पर यार ना बदले। 😂😂😀😀😀😀
😂😂😀😀😀😀 चाहत वो नहीं जो जान देती है, चाहत वो नहीं जो मुस्कान देती है, ऐ दोस्त चाहत तो वो है, जो पानी में गिरा आंसू पहचान लेती हैं. 😂😂😀😀😀😀
दोस्त को दोस्त का इशारा याद रहेता है , हर दोस्त को अपना दोस्ताना याद रहेता है , कुछ पल सच्चे दोस्त के साथ तो गुजारो, वो अफ़साना मौत तक याद रहेता है ।
हम जब भी आपकी दुनिया से जायेंगे, इतनी खुशियाँ और अपनापन दे जायेंगे, कि जब भी याद करोगे इस पागल दोस्त को, हँसती आँखों से आँसू निकल आयेंगे।
'अर्श' किस दोस्त को अपना समझूँ सब के सब दोस्त हैं दुश्मन की तरफ़
Dosti acchi ho to rang laati hai, Dosti gehri ho to sabko bhati hai, Dosti naada ho to toot jaati hai, dosti ho humse Toh itihaas banati hai.
थोड़ा सा दिल को उदास कर लिया करो, दोस्त से दूर होने का एहसास कर लिया करो, हमेशा हम ही याद करते हैं आपको, कभी आप भी हमें याद कर लिया करो
Dooriyo ki na parwah kiya karo, Jab dil chahe yaad kiya karo, Dushman nahi dost hai hum aapke, Hamara sms na aaye to khud bhej diya karo.
Har gham ko khushi mein badalti hai dosti, Har aansu ko hasi mein badalti hai dosti, Kuch log samajh nahi paate ke, Andheri raat ka jalta hua diya hai dosti.
जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे
Jazbaat-e-ishq nakaam na hone denge, Dil ki duniya me kabhi shaam na hone denge, Dosti ka har ilzaam apne sar par le lenge, Par dost hum tumhe badnaam na hone denge.
गुनगुनाना तो तकदीर में लिखा कर लाए थे, खिलखिलाना दोस्तों से तोहफ़े में मिल गया।
खामोशी मे जो सुनोगे वो आवाज मेरी होगी, जिंदगी भर साथ रहे वो वफा मेरी होगी, दुनिया हर ख़ुशी तुम्हारी होगी, क्योंकि इन सबके पीछे दुआ हमारी होगी! ☘️
दूरियों से फर्क पड़ता नहीं, बात तो दिलों कि नज़दीकियों से होती है, दोस्ती तो कुछ आप जैसो से है, वरना मुलाकात तो जाने कितनों से होती है.
Dosti mein jeena dosti mein marna, himmat na ho to kabhi dosti na karna, dost ho kar dosti ka haq yu ada karna, agar main bhool bhi jaun to tum yaad rakhna.
Khush jo lago tum to khushi mujhe ho, Rone jo lago Tum To Aankhen Meri nam ho, Aye Dost Hamari Dosti Itni Gehri Ho Ki, Sadak Ke Uss Paar Tum Pito Aur Galti Meri Ho.
Udhas Na Hona Kyuki Main Sath Hoon, Samne Nahi Par Aas-Paas Hoon, Aankhon Ko Band Kar Ke Dil Se Yaad Karna, Main Dosti Ka Ik Haseen Ehsas Hoon.
Dil ke jazbaat ki aawaz nahi hoti, Ikraar mein suron ki barsaat nahi hoti, Nigahein baya kar deti hai saari dastaan, Dosti lafzon ki mohataaz nahi hoti.
तुम सदा मुस्कुराते रहो ये तमन्ना है हमारी, हर दुआ में माँगी है बस खुशी तुम्हारी, तुम सारी दुनिया को दोस्त बना कर देख लो, फ़िर भी महसूस करोगे कमी हमारी।
Aapke Paas Dosto Ka Khazana Hai, Par Ek Dost Apka Purana Hai, Iss Dost Ko Bhula Na Dena Kabhi, Kyoki Ek Dost Apki Dosti Ka Deewana Hai.
Dost Se Dost Kabhi Khafa Nahi Hote, Dil Milkar Kabhi Juda Nahi Hote, Bhula Dena Hamari Khamiyon Ko, Kyu Ki Insaan Kabhi Khuda Nahi Hote.
😂😂😀😀😀😀 हम रूठे तो किसके भरोसे, कौन आएगा हमें मनाने के लिए, हो सकता है, तरस आ भी जाए आपको.. पर दिल कहाँ से लाये.. आप से रूठ जाने के लिए! 😂😂😀😀😀😀
😂😂😀😀😀😀 अपने बेगाने से अब मुझ को शिकायत न रही दुश्मनी कर के मिरे दोस्त ने मारा मुझ को 😂😂😀😀😀😀
Teri Dosti Mein Ek Nasha Hai, Tabhi To Ye Dunia Hum Se Khafa Hai, Na Karo Hum Se Itni Dosti Ki, Dil Puchhe Teri Dhadkan Kaha Hai.
😊 कभी झगडा कभी måsti 😁 कभी आंसु , कभी 😄हंसी ☝ छोटा सा 😴 पल, ☝छोटी ☝छोटी 😁खुशी ☝एक 💑 pyår की kästi åúr 👋 ढेर सारी 😣 måsti 🚌 बस ईसी का नाम तो है døstī..😀 Love u 😘😘 #👬दोस्ती-यारी #❤miss you😔😔
Muskurao aap to phool khil jaaye, baatein karo to dil machal jaaye, itni dilkash hai aapki dosti, dost to kya dushman bhi aapki dosti pe fida ho jaye.
वो दिल क्या जो मिलने की दुआ न करे, तुम्हें भुलकर जिऊ यह खुदा न करे, रहे तेरी दोस्ती मेरी जिन्दगानी बनकर, यह बात और है जिन्दगी वफा न करे
👫 दोस्ती का ☝ पहला पैगाम 👸👈 आपके नाम, 😍 जिंदगी की आखरी 💀 सांस 👸👈 आपके नाम, रहे 👌 सलामत यह 👫 दोस्ती 💞 अपनी, इसे 💞 सलामत ✔ रखना 👸👈 आपका काम..
Maangi thi dua humnein rab se, Dena mujhe dost jo alag ho sbse, Usne mila diya hume aapse or kaha Sambhalo inhe ye anmol hai sab se
Apni wo mulakat kuch adhoori si lagi, Paas hoke bhi thodi doori si lagi, Honto pe hasi ankhon mein majburi si lagi, Zindagi mein pehli bar dosti itni zaroori si lagi.
वक्त ⏰"की" "यारी👫" "तो" "हर" "कोई" "करता" "है" 👨"मेरे " "दोस्त👬मजा" "तो"तब"है""जब" वक्त🕤 "बदल" "जाए" "और यार"👭"ना"बदले"खुशी जाटणी
Lamhe ye suhane sath ho na ho, Kal mein aaj jaisi baat ho na ho, Aapki dosti hamesha iss dil mein rahegi, Chahe puri umar mulaqat ho na ho.
ऐ ‪‎दोस्त‬ अब क्या लिखूं तेरी ‪‎तारीफ‬ में, बड़ा ‪‎खास‬ है तू मेरी ‪‎जिंदगी‬ में।
Dosti Nazro Se Ho To Use Kudrat Kehte Hai, Sitaron Se Ho To Jannat Kehte Hai, Aankhon Se Ho To Mohabbat Kehte Hai, Aur Dosti Aap Se Ho To Kismat Kehte Hai.
लोग पूछते हैं इतने गम में भी खुश क्युँ हो.. मैने कहा दुनिया साथ दे न दे मेरा दोस्त तो साथ हैं.
हर ख़ुशी से ख़ूबसूरत तेरी शाम कर दूँ, अपना प्यार और दोस्ती तेरे नाम कर दूँ, मिल जाये अगर दुबारा यह ज़िन्दगी दोस्त, हर बार मैं ये ज़िन्दगी तुझ पर कुर्बान कर दूँ।
दोस्ती नाम है सुख-दुख की कहानी का, दोस्ती राज है सदा ही मुस्कुराने का, यह कोई पल भर की पहचान नहीं है, दोस्ती वाला है उम्र भर साथ निभाने का!!
Dosti mein dooriyan to aati rehti hai, Phir bhi Dosti Dilo ko mila deti hai, Wo Dosti hi kya jo naraz na ho, Per sacchi Dosti dilo ko mana hi leti hai.
आपकी पलकों पर रह जाये कोई, आपकी सांसो पर नाम लिख जाये कोई, चलो वादा रहा भूल जाना हमें, अगर हमसे अच्छा दोस्त मिल जाये कोई।
Hum kabhi apno se khafa ho nahi sakte, dosti ke rishte bewafa ho nahi sakte, Aap bhale hume bhool ke soo jao, hum aapko yaad kiye bina soo nahi sakte.
❤❤❤❤🌹🌹 छोटे से दिल में गम बहुत है, जिन्दगी में मिले जख्म बहुत हैं,👬😀 मार ही डालती कब की ये दुनियाँ हमें, कम्बखत दोस्तों की दुआओं में दम बहुत है.👬😀 ❤❤❤❤🌹🌹
आदतें अलग हैं मेरी दुनिया वालों से, दोस्त कम रखता हूँ पर लाजवाब रखता हूँ।
किस हद तक जाना है ये कौन जानता है, किस मंजिल को पाना है ये कौन जानता है, दोस्ती के दो पल जी भर के जी लो, किस रोज़ बिछड जाना है ये कौन जानता है.!
देखी जो नब्ज मेरी तो हँस कर बोला हकीम, तेरे मर्ज़ का इलाज महफ़िल है तेरे दोस्तों की।
Dil lagi dosto ke naam hoti hai, Dil daari dosto ki shaan hoti hai, rahoge dil mein jo mere hamesa tum, Yahi sachi dosti ki pehchaan hoti hai.
न कोई गिला करता हूँ न शिकवा करता हूँ, तुम सलामत रहो बस यही दुआ करता हूँ।

|| मोक्षसन्न्यासयोग ||




|| श्लोक 1 ||

सन्न्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्‌ ।
त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन ॥ 

 

भावार्थ : अर्जुन बोले- हे महाबाहो! हे अन्तर्यामिन्‌! हे वासुदेव! मैं संन्यास और त्याग के तत्व को पृथक्‌-पृथक्‌ जानना चाहता हूँ ॥




|| श्लोक 2 ||

काम्यानां कर्मणा न्यासं सन्न्यासं कवयो विदुः । 
सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः ॥ 

 

भावार्थ : श्री भगवान बोले- कितने ही पण्डितजन तो काम्य कर्मों के (स्त्री, पुत्र और धन आदि प्रिय वस्तुओं की प्राप्ति के लिए तथा रोग-संकटादि की निवृत्ति के लिए जो यज्ञ, दान, तप और उपासना आदि कर्म किए जाते हैं, उनका नाम काम्यकर्म है।) त्याग को संन्यास समझते हैं तथा दूसरे विचारकुशल पुरुष सब कर्मों के फल के त्याग को (ईश्वर की भक्ति, देवताओं का पूजन, माता-पितादि गुरुजनों की सेवा, यज्ञ, दान और तप तथा वर्णाश्रम के अनुसार आजीविका द्वारा गृहस्थ का निर्वाह एवं शरीर संबंधी खान-पान इत्यादि जितने कर्तव्यकर्म हैं, उन सबमें इस लोक और परलोक की सम्पूर्ण कामनाओं के त्याग का नाम सब कर्मों के फल का त्याग है) त्याग कहते हैं ॥




|| श्लोक 3 ||

त्याज्यं दोषवदित्येके कर्म प्राहुर्मनीषिणः ।
यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यमिति चापरे ॥ 

 

भावार्थ : कई एक विद्वान ऐसा कहते हैं कि कर्ममात्र दोषयुक्त हैं, इसलिए त्यागने के योग्य हैं और दूसरे विद्वान यह कहते हैं कि यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्यागने योग्य नहीं हैं ॥




|| श्लोक 4 ||

निश्चयं श्रृणु में तत्र त्यागे भरतसत्तम ।
त्यागो हि पुरुषव्याघ्र त्रिविधः सम्प्रकीर्तितः ॥ 

 

भावार्थ : हे पुरुषश्रेष्ठ अर्जुन ! संन्यास और त्याग, इन दोनों में से पहले त्याग के विषय में तू मेरा निश्चय सुन। क्योंकि त्याग सात्विक, राजस और तामस भेद से तीन प्रकार का कहा गया है ॥





|| श्लोक 5 ||

यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्‌ । 
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्‌ ॥ 

 

भावार्थ : यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्याग करने के योग्य नहीं है, बल्कि वह तो अवश्य कर्तव्य है, क्योंकि यज्ञ, दान और तप -ये तीनों ही कर्म बुद्धिमान पुरुषों को (वह मनुष्य बुद्धिमान है, जो फल और आसक्ति को त्याग कर केवल भगवदर्थ कर्म करता है।) पवित्र करने वाले हैं ॥




|| श्लोक 6 ||

एतान्यपि तु कर्माणि सङ्‍गं त्यक्त्वा फलानि च ।
कर्तव्यानीति में पार्थ निश्चितं मतमुत्तमम्‌ ॥ 

 

भावार्थ : इसलिए हे पार्थ! इन यज्ञ, दान और तपरूप कर्मों को तथा और भी सम्पूर्ण कर्तव्यकर्मों को आसक्ति और फलों का त्याग करके अवश्य करना चाहिए, यह मेरा निश्चय किया हुआ उत्तम मत है ॥




|| श्लोक 7 ||

नियतस्य तु सन्न्यासः कर्मणो नोपपद्यते । 
मोहात्तस्य परित्यागस्तामसः परिकीर्तितः ॥ 

 

भावार्थ : (निषिद्ध और काम्य कर्मों का तो स्वरूप से त्याग करना उचित ही है) परन्तु नियत कर्म का (इसी अध्याय के श्लोक 48 की टिप्पणी में इसका अर्थ देखना चाहिए।) स्वरूप से त्याग करना उचित नहीं है। इसलिए मोह के कारण उसका त्याग कर देना तामस त्याग कहा गया है ॥





|| श्लोक 8 ||

दुःखमित्येव यत्कर्म कायक्लेशभयात्त्यजेत्‌ ।
स कृत्वा राजसं त्यागं नैव त्यागफलं लभेत्‌ ॥ 

 

भावार्थ : जो कुछ कर्म है वह सब दुःखरूप ही है- ऐसा समझकर यदि कोई शारीरिक क्लेश के भय से कर्तव्य-कर्मों का त्याग कर दे, तो वह ऐसा राजस त्याग करके त्याग के फल को किसी प्रकार भी नहीं पाता ॥








|| श्लोक 9 ||

कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेअर्जुन ।
सङ्‍गं त्यक्त्वा फलं चैव स त्यागः सात्त्विको मतः ॥ 

 

भावार्थ : हे अर्जुन! जो शास्त्रविहित कर्म करना कर्तव्य है- इसी भाव से आसक्ति और फल का त्याग करके किया जाता है- वही सात्त्विक त्याग माना गया है ॥








|| श्लोक 10 ||

न द्वेष्ट्यकुशलं कर्म कुशले नानुषज्जते । 
त्यागी सत्त्वसमाविष्टो मेधावी छिन्नसंशयः ॥

 

भावार्थ : जो मनुष्य अकुशल कर्म से तो द्वेष नहीं करता और कुशल कर्म में आसक्त नहीं होता- वह शुद्ध सत्त्वगुण से युक्त पुरुष संशयरहित, बुद्धिमान और सच्चा त्यागी है ॥








|| श्लोक 11 ||

न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः ।
यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते ॥ 

 

भावार्थ : क्योंकि शरीरधारी किसी भी मनुष्य द्वारा सम्पूर्णता से सब कर्मों का त्याग किया जाना शक्य नहीं है, इसलिए जो कर्मफल त्यागी है, वही त्यागी है- यह कहा जाता है ॥









|| श्लोक 12 ||

अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मणः फलम्‌ ।
भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु सन्न्यासिनां क्वचित्‌ ॥

 

भावार्थ : कर्मफल का त्याग न करने वाले मनुष्यों के कर्मों का तो अच्छा, बुरा और मिला हुआ- ऐसे तीन प्रकार का फल मरने के पश्चात अवश्य होता है, किन्तु कर्मफल का त्याग कर देने वाले मनुष्यों के कर्मों का फल किसी काल में भी नहीं होता ॥








|| श्लोक 13 ||

पञ्चैतानि महाबाहो कारणानि निबोध मे ।
साङ्ख्ये कृतान्ते प्रोक्तानि सिद्धये सर्वकर्मणाम्‌ ॥ 

 

भावार्थ : हे महाबाहो! सम्पूर्ण कर्मों की सिद्धि के ये पाँच हेतु कर्मों का अंत करने के लिए उपाय बतलाने वाले सांख्य-शास्त्र में कहे गए हैं, उनको तू मुझसे भलीभाँति जान ॥







|| श्लोक 14 ||

अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्‌ ।
विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम्‌ ॥

 

भावार्थ : इस विषय में अर्थात कर्मों की सिद्धि में अधिष्ठान (जिसके आश्रय कर्म किए जाएँ, उसका नाम अधिष्ठान है) और कर्ता तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के करण (जिन-जिन इंद्रियादिकों और साधनों द्वारा कर्म किए जाते हैं, उनका नाम करण है) एवं नाना प्रकार की अलग-अलग चेष्टाएँ और वैसे ही पाँचवाँ हेतु दैव (पूर्वकृत शुभाशुभ कर्मों के संस्कारों का नाम दैव है) है ॥







|| श्लोक 15 ||

शरीरवाङ्‍मनोभिर्यत्कर्म प्रारभते नरः ।
न्याय्यं वा विपरीतं वा पञ्चैते तस्य हेतवः॥

 

भावार्थ : मनुष्य मन, वाणी और शरीर से शास्त्रानुकूल अथवा विपरीत जो कुछ भी कर्म करता है- उसके ये पाँचों कारण हैं ॥






|| श्लोक 16 ||

तत्रैवं सति कर्तारमात्मानं केवलं तु यः । 
पश्यत्यकृतबुद्धित्वान्न स पश्यति दुर्मतिः ॥ 

 

भावार्थ : परन्तु ऐसा होने पर भी जो मनुष्य अशुद्ध बुद्धि (सत्संग और शास्त्र के अभ्यास से तथा भगवदर्थ कर्म और उपासना के करने से मनुष्य की बुद्धि शुद्ध होती है, इसलिए जो उपर्युक्त साधनों से रहित है, उसकी बुद्धि अशुद्ध है, ऐसा समझना चाहिए।) होने के कारण उस विषय में यानी कर्मों के होने में केवल शुद्ध स्वरूप आत्मा को कर्ता समझता है, वह मलीन बुद्धि वाला अज्ञानी यथार्थ नहीं समझता ॥







|| श्लोक 17 ||

यस्य नाहङ्‍कृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते ।
हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते ॥

 

भावार्थ : जिस पुरुष के अन्तःकरण में 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा भाव नहीं है तथा जिसकी बुद्धि सांसारिक पदार्थों में और कर्मों में लिपायमान नहीं होती, वह पुरुष इन सब लोकों को मारकर भी वास्तव में न तो मरता है और न पाप से बँधता है। (जैसे अग्नि, वायु और जल द्वारा प्रारब्धवश किसी प्राणी की हिंसा होती देखने में आए तो भी वह वास्तव में हिंसा नहीं है, वैसे ही जिस पुरुष का देह में अभिमान नहीं है और स्वार्थरहित केवल संसार के हित के लिए ही जिसकी सम्पूर्ण क्रियाएँ होती हैं, उस पुरुष के शरीर और इन्द्रियों द्वारा यदि किसी प्राणी की हिंसा होती हुई लोकदृष्टि में देखी जाए, तो भी वह वास्तव में हिंसा नहीं है क्योंकि आसक्ति, स्वार्थ और अहंकार के न होने से किसी प्राणी की हिंसा हो ही नहीं सकती तथा बिना कर्तृत्वाभिमान के किया हुआ कर्म वास्तव में अकर्म ही है, इसलिए वह पुरुष 'पाप से नहीं बँधता'।) ॥








|| श्लोक 18 ||

ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना । 
करणं कर्म कर्तेति त्रिविधः कर्मसङ्ग्रहः ॥ 

 

भावार्थ : ज्ञाता (जानने वाले का नाम 'ज्ञाता' है।), ज्ञान (जिसके द्वारा जाना जाए, उसका नाम 'ज्ञान' है। ) और ज्ञेय (जानने में आने वाली वस्तु का नाम 'ज्ञेय' है।)- ये तीनों प्रकार की कर्म-प्रेरणा हैं और कर्ता (कर्म करने वाले का नाम 'कर्ता' है।), करण (जिन साधनों से कर्म किया जाए, उनका नाम 'करण' है।) तथा क्रिया (करने का नाम 'क्रिया' है।)- ये तीनों प्रकार का कर्म-संग्रह है ॥






|| श्लोक 19 ||

ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदतः । 
प्रोच्यते गुणसङ्ख्याने यथावच्छ्णु तान्यपि ॥ 

 

भावार्थ : गुणों की संख्या करने वाले शास्त्र में ज्ञान और कर्म तथा कर्ता गुणों के भेद से तीन-तीन प्रकार के ही कहे गए हैं, उनको भी तु मुझसे भलीभाँति सुन ॥








|| श्लोक 20 ||

सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते । 
अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम् ॥ 

 

भावार्थ : जिस ज्ञान से मनुष्य पृथक-पृथक सब भूतों में एक अविनाशी परमात्मभाव को विभागरहित समभाव से स्थित देखता है, उस ज्ञान को तू सात्त्विक जान ॥







|| श्लोक 21 ||

पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृथग्विधान्‌ । 
वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम्‌ ॥ 

 

भावार्थ : किन्तु जो ज्ञान अर्थात जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य सम्पूर्ण भूतों में भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना भावों को अलग-अलग जानता है, उस ज्ञान को तू राजस जान ॥






|| श्लोक 22 ||

यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्ये सक्तमहैतुकम्‌।
अतत्त्वार्थवदल्पंच तत्तामसमुदाहृतम्‌॥ 

 

भावार्थ : परन्तु जो ज्ञान एक कार्यरूप शरीर में ही सम्पूर्ण के सदृश आसक्त है तथा जो बिना युक्तिवाला, तात्त्विक अर्थ से रहित और तुच्छ है- वह तामस कहा गया है ॥







|| श्लोक 23 ||

नियतं सङ्‍गरहितमरागद्वेषतः कृतम। 
अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत्सात्त्विकमुच्यते॥ 

 

भावार्थ : जो कर्म शास्त्रविधि से नियत किया हुआ और कर्तापन के अभिमान से रहित हो तथा फल न चाहने वाले पुरुष द्वारा बिना राग-द्वेष के किया गया हो- वह सात्त्विक कहा जाता है ॥






|| श्लोक 24 ||

यत्तु कामेप्सुना कर्म साहङ्‍कारेण वा पुनः। 
क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम्‌॥ 
 

भावार्थ : परन्तु जो कर्म बहुत परिश्रम से युक्त होता है तथा भोगों को चाहने वाले पुरुष द्वारा या अहंकारयुक्त पुरुष द्वारा किया जाता है, वह कर्म राजस कहा गया है ॥24॥






|| श्लोक 25 ||

अनुबन्धं क्षयं हिंसामनवेक्ष्य च पौरुषम्‌ । 
मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते॥ 

 

भावार्थ : जो कर्म परिणाम, हानि, हिंसा और सामर्थ्य को न विचारकर केवल अज्ञान से आरंभ किया जाता है, वह तामस कहा जाता है ॥






|| श्लोक 26 ||

मुक्तसङ्‍गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः । 
सिद्धयसिद्धयोर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते॥ 

 

भावार्थ : जो कर्ता संगरहित, अहंकार के वचन न बोलने वाला, धैर्य और उत्साह से युक्त तथा कार्य के सिद्ध होने और न होने में हर्ष -शोकादि विकारों से रहित है- वह सात्त्विक कहा जाता है ॥






|| श्लोक 27 ||

रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचिः। 
हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः॥ 

 

भावार्थ : जो कर्ता आसक्ति से युक्त कर्मों के फल को चाहने वाला और लोभी है तथा दूसरों को कष्ट देने के स्वभाववाला, अशुद्धाचारी और हर्ष-शोक से लिप्त है वह राजस कहा गया है ॥






|| श्लोक 28 ||

आयुक्तः प्राकृतः स्तब्धः शठोनैष्कृतिकोऽलसः । 
विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते॥ 

 

भावार्थ : जो कर्ता अयुक्त, शिक्षा से रहित घमंडी, धूर्त और दूसरों की जीविका का नाश करने वाला तथा शोक करने वाला, आलसी और दीर्घसूत्री (दीर्घसूत्री उसको कहा जाता है कि जो थोड़े काल में होने लायक साधारण कार्य को भी फिर कर लेंगे, ऐसी आशा से बहुत काल तक नहीं पूरा करता। ) है वह तामस कहा जाता है ॥







|| श्लोक 29 ||

बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं श्रृणु । 
प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनंजय ॥ 

 

भावार्थ : हे धनंजय ! अब तू बुद्धि का और धृति का भी गुणों के अनुसार तीन प्रकार का भेद मेरे द्वारा सम्पूर्णता से विभागपूर्वक कहा जाने वाला सुन ॥






|| श्लोक 30 ||

प्रवत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये।
बन्धं मोक्षं च या वेति बुद्धिः सा पार्थ सात्त्विकी ॥ 

 

भावार्थ : हे पार्थ ! जो बुद्धि प्रवृत्तिमार्ग (गृहस्थ में रहते हुए फल और आसक्ति को त्यागकर भगवदर्पण बुद्धि से केवल लोकशिक्षा के लिए राजा जनक की भाँति बरतने का नाम 'प्रवृत्तिमार्ग' है।) और निवृत्ति मार्ग को (देहाभिमान को त्यागकर केवल सच्चिदानंदघन परमात्मा में एकीभाव स्थित हुए श्री शुकदेवजी और सनकादिकों की भाँति संसार से उपराम होकर विचरने का नाम 'निवृत्तिमार्ग' है।), कर्तव्य और अकर्तव्य को, भय और अभय को तथा बंधन और मोक्ष को यथार्थ जानती है- वह बुद्धि सात्त्विकी है ॥







|| श्लोक 31 ||

यया धर्ममधर्मं च कार्यं चाकार्यमेव च। 
अयथावत्प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी॥ 

 

भावार्थ : हे पार्थ! मनुष्य जिस बुद्धि के द्वारा धर्म और अधर्म को तथा कर्तव्य और अकर्तव्य को भी यथार्थ नहीं जानता, वह बुद्धि राजसी है ॥





|| श्लोक 32 ||

अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसावृता। 
सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी॥ 

 

भावार्थ : हे अर्जुन! जो तमोगुण से घिरी हुई बुद्धि अधर्म को भी 'यह धर्म है' ऐसा मान लेती है तथा इसी प्रकार अन्य संपूर्ण पदार्थों को भी विपरीत मान लेती है, वह बुद्धि तामसी है ॥





|| श्लोक 33 ||

धृत्या यया धारयते मनःप्राणेन्द्रियक्रियाः। 
योगेनाव्यभिचारिण्या धृतिः सा पार्थ सात्त्विकी ॥ 

 

भावार्थ : हे पार्थ! जिस अव्यभिचारिणी धारण शक्ति (भगवद्विषय के सिवाय अन्य सांसारिक विषयों को धारण करना ही व्यभिचार दोष है, उस दोष से जो रहित है वह 'अव्यभिचारिणी धारणा' है।) से मनुष्य ध्यान योग के द्वारा मन, प्राण और इंद्रियों की क्रियाओं ( मन, प्राण और इंद्रियों को भगवत्प्राप्ति के लिए भजन, ध्यान और निष्काम कर्मों में लगाने का नाम 'उनकी क्रियाओं को धारण करना' है।) को धारण करता है, वह धृति सात्त्विकी है ॥






|| श्लोक 34 ||

यया तु धर्मकामार्थान्धत्या धारयतेऽर्जुन। 
प्रसङ्‍गेन फलाकाङ्क्षी धृतिः सा पार्थ राजसी॥ 

 

भावार्थ : परंतु हे पृथापुत्र अर्जुन! फल की इच्छावाला मनुष्य जिस धारण शक्ति के द्वारा अत्यंत आसक्ति से धर्म, अर्थ और कामों को धारण करता है, वह धारण शक्ति राजसी है ॥





|| श्लोक 35 ||

यया स्वप्नं भयं शोकं विषादं मदमेव च। 
न विमुञ्चति दुर्मेधा धृतिः सा पार्थ तामसी॥ 

 

भावार्थ : हे पार्थ! दुष्ट बुद्धिवाला मनुष्य जिस धारण शक्ति के द्वारा निद्रा, भय, चिंता और दु:ख को तथा उन्मत्तता को भी नहीं छोड़ता अर्थात धारण किए रहता है- वह धारण शक्ति तामसी है ॥






|| श्लोक 36,37 ||

सुखं त्विदानीं त्रिविधं श्रृणु मे भरतर्षभ।
 अभ्यासाद्रमते यत्र दुःखान्तं च निगच्छति॥ 
यत्तदग्रे विषमिव परिणामेऽमृतोपमम्‌। 
तत्सुखं सात्त्विकं प्रोक्तमात्मबुद्धिप्रसादजम्‌॥ 

 

भावार्थ : हे भरतश्रेष्ठ! अब तीन प्रकार के सुख को भी तू मुझसे सुन। जिस सुख में साधक मनुष्य भजन, ध्यान और सेवादि के अभ्यास से रमण करता है और जिससे दुःखों के अंत को प्राप्त हो जाता है, जो ऐसा सुख है, वह आरंभकाल में यद्यपि विष के तुल्य प्रतीत (जैसे खेल में आसक्ति वाले बालक को विद्या का अभ्यास मूढ़ता के कारण प्रथम विष के तुल्य भासता है वैसे ही विषयों में आसक्ति वाले पुरुष को भगवद्भजन, ध्यान, सेवा आदि साधनाओं का अभ्यास मर्म न जानने के कारण प्रथम 'विष के तुल्य प्रतीत होता' है) होता है, परन्तु परिणाम में अमृत के तुल्य है, इसलिए वह परमात्मविषयक बुद्धि के प्रसाद से उत्पन्न होने वाला सुख सात्त्विक कहा गया है ॥







|| श्लोक 38 ||

विषयेन्द्रियसंयोगाद्यत्तदग्रेऽमृतोपमम्‌। 
परिणामे विषमिव तत्सुखं राजसं स्मृतम्‌॥ 

 

भावार्थ : जो सुख विषय और इंद्रियों के संयोग से होता है, वह पहले- भोगकाल में अमृत के तुल्य प्रतीत होने पर भी परिणाम में विष के तुल्य (बल, वीर्य, बुद्धि, धन, उत्साह और परलोक का नाश होने से विषय और इंद्रियों के संयोग से होने वाले सुख को 'परिणाम में विष के तुल्य' कहा है) है इसलिए वह सुख राजस कहा गया है ॥






|| श्लोक 39 ||

यदग्रे चानुबन्धे च सुखं मोहनमात्मनः। 
निद्रालस्यप्रमादोत्थं तत्तामसमुदाहृतम्‌॥ 

 

भावार्थ : जो सुख भोगकाल में तथा परिणाम में भी आत्मा को मोहित करने वाला है, वह निद्रा, आलस्य और प्रमाद से उत्पन्न सुख तामस कहा गया है ॥






|| श्लोक 40 ||

न तदस्ति पृथिव्यां वा दिवि देवेषु वा पुनः। 
सत्त्वं प्रकृतिजैर्मुक्तं यदेभिःस्यात्त्रिभिर्गुणैः॥ 

 

भावार्थ : पृथ्वी में या आकाश में अथवा देवताओं में तथा इनके सिवा और कहीं भी ऐसा कोई भी सत्त्व नहीं है, जो प्रकृति से उत्पन्न इन तीनों गुणों से रहित हो ॥







|| श्लोक 41 ||

ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परन्तप। 
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः॥ 

 

भावार्थ : हे परंतप! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के तथा शूद्रों के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों द्वारा विभक्त किए गए हैं ॥







|| श्लोक 42 ||

शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च। 
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्‌ ॥ 

 

भावार्थ : अंतःकरण का निग्रह करना, इंद्रियों का दमन करना, धर्मपालन के लिए कष्ट सहना, बाहर-भीतर से शुद्ध (गीता अध्याय 13 श्लोक 7 की टिप्पणी में देखना चाहिए) रहना, दूसरों के अपराधों को क्षमा करना, मन, इंद्रिय और शरीर को सरल रखना, वेद, शास्त्र, ईश्वर और परलोक आदि में श्रद्धा रखना, वेद-शास्त्रों का अध्ययन-अध्यापन करना और परमात्मा के तत्त्व का अनुभव करना- ये सब-के-सब ही ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म हैं ॥






|| श्लोक 43 ||

शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्‌। 
दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्‌॥ 

 

भावार्थ : शूरवीरता, तेज, धैर्य, चतुरता और युद्ध में न भागना, दान देना और स्वामिभाव- ये सब-के-सब ही क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं ॥







|| श्लोक 44 ||

कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम्‌। 
परिचर्यात्मकं कर्म शूद्रस्यापि स्वभावजम्‌॥ 

 

भावार्थ : खेती, गोपालन और क्रय-विक्रय रूप सत्य व्यवहार (वस्तुओं के खरीदने और बेचने में तौल, नाप और गिनती आदि से कम देना अथवा अधिक लेना एवं वस्तु को बदलकर या एक वस्तु में दूसरी या खराब वस्तु मिलाकर दे देना अथवा अच्छी ले लेना तथा नफा, आढ़त और दलाली ठहराकर उससे अधिक दाम लेना या कम देना तथा झूठ, कपट, चोरी और जबरदस्ती से अथवा अन्य किसी प्रकार से दूसरों के हक को ग्रहण कर लेना इत्यादि दोषों से रहित जो सत्यतापूर्वक पवित्र वस्तुओं का व्यापार है उसका नाम 'सत्य व्यवहार' है।) ये वैश्य के स्वाभाविक कर्म हैं तथा सब वर्णों की सेवा करना शूद्र का भी स्वाभाविक कर्म है ॥






|| श्लोक 45 ||

स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः। 
स्वकर्मनिरतः सिद्धिं यथा विन्दति तच्छृणु॥ 

 

भावार्थ : अपने-अपने स्वाभाविक कर्मों में तत्परता से लगा हुआ मनुष्य भगवत्प्राप्ति रूप परमसिद्धि को प्राप्त हो जाता है। अपने स्वाभाविक कर्म में लगा हुआ मनुष्य जिस प्रकार से कर्म करके परमसिद्धि को प्राप्त होता है, उस विधि को तू सुन ॥






|| श्लोक 46 ||

यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्‌।
स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः॥ 

 

भावार्थ : जिस परमेश्वर से संपूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति हुई है और जिससे यह समस्त जगत्‌ व्याप्त है (जैसे बर्फ जल से व्याप्त है, वैसे ही संपूर्ण संसार सच्चिदानंदघन परमात्मा से व्याप्त है), उस परमेश्वर की अपने स्वाभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके (जैसे पतिव्रता स्त्री पति को सर्वस्व समझकर पति का चिंतन करती हुई पति के आज्ञानुसार पति के ही लिए मन, वाणी, शरीर से कर्म करती है, वैसे ही परमेश्वर को ही सर्वस्व समझकर परमेश्वर का चिंतन करते हुए परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार मन, वाणी और शरीर से परमेश्वर के ही लिए स्वाभाविक कर्तव्य कर्म का आचरण करना 'कर्म द्वारा परमेश्वर को पूजना' है) मनुष्य परमसिद्धि को प्राप्त हो जाता है ॥






|| श्लोक 47 ||

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्‌। 
स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्‌॥ 

 

भावार्थ : अच्छी प्रकार आचरण किए हुए दूसरे के धर्म से गुणरहित भी अपना धर्म श्रेष्ठ है, क्योंकि स्वभाव से नियत किए हुए स्वधर्मरूप कर्म को करता हुआ मनुष्य पाप को नहीं प्राप्त होता ॥





|| श्लोक 48 ||

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्‌। 
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः॥ 

 

भावार्थ : अतएव हे कुन्तीपुत्र! दोषयुक्त होने पर भी सहज कर्म (प्रकृति के अनुसार शास्त्र विधि से नियत किए हुए वर्णाश्रम के धर्म और सामान्य धर्मरूप स्वाभाविक कर्म हैं उनको ही यहाँ स्वधर्म, सहज कर्म, स्वकर्म

नियत कर्म, स्वभावज कर्म, स्वभावनियत कर्म इत्यादि नामों से कहा है) को नहीं त्यागना चाहिए, क्योंकि धूएँ से अग्नि की भाँति सभी कर्म किसी-न-किसी दोष से युक्त हैं ॥






|| श्लोक 49 ||

असक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृहः। 
नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां सन्न्यासेनाधिगच्छति॥ 

 

भावार्थ : सर्वत्र आसक्तिरहित बुद्धिवाला, स्पृहारहित और जीते हुए अंतःकरण वाला पुरुष सांख्ययोग के द्वारा उस परम नैष्कर्म्यसिद्धि को प्राप्त होता है ॥






|| श्लोक 50 ||

सिद्धिं प्राप्तो यथा ब्रह्म तथाप्नोति निबोध मे। 
समासेनैव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा॥ 

 

भावार्थ : जो कि ज्ञान योग की परानिष्ठा है, उस नैष्कर्म्य सिद्धि को जिस प्रकार से प्राप्त होकर मनुष्य ब्रह्म को प्राप्त होता है, उस प्रकार को हे कुन्तीपुत्र! तू संक्षेप में ही मुझसे समझ ॥





|| श्लोक 51,52,53 ||

बुद्ध्‌या विशुद्धया युक्तो धृत्यात्मानं नियम्य च। 
शब्दादीन्विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च॥ 
विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानस। 
ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः॥ 
अहङकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्‌।
विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते॥ 

 

भावार्थ : विशुद्ध बुद्धि से युक्त तथा हलका, सात्त्विक और नियमित भोजन करने वाला, शब्दादि विषयों का त्याग करके एकांत और शुद्ध देश का सेवन करने वाला, सात्त्विक धारण शक्ति के (इसी अध्याय के श्लोक 33 में जिसका विस्तार है) द्वारा अंतःकरण और इंद्रियों का संयम करके मन, वाणी और शरीर को वश में कर लेने वाला, राग-द्वेष को सर्वथा नष्ट करके भलीभाँति दृढ़ वैराग्य का आश्रय लेने वाला तथा अहंकार, बल, घमंड, काम, क्रोध और परिग्रह का त्याग करके निरंतर ध्यान योग के परायण रहने वाला, ममतारहित और शांतियुक्त पुरुष सच्चिदानन्दघन ब्रह्म में अभिन्नभाव से स्थित होने का पात्र होता है ॥






|| श्लोक 54 ||

ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति। 
समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्‌॥ 

 

भावार्थ : फिर वह सच्चिदानन्दघन ब्रह्म में एकीभाव से स्थित, प्रसन्न मनवाला योगी न तो किसी के लिए शोक करता है और न किसी की आकांक्षा ही करता है। ऐसा समस्त प्राणियों में समभाव वाला (गीता अध्याय 6 श्लोक 29 में देखना चाहिए) योगी मेरी पराभक्ति को ( जो तत्त्व ज्ञान की पराकाष्ठा है तथा जिसको प्राप्त होकर और कुछ जानना बाकी नहीं रहता वही यहाँ पराभक्ति, ज्ञान की परानिष्ठा, परम नैष्कर्म्यसिद्धि और परमसिद्धि इत्यादि नामों से कही गई है) प्राप्त हो जाता है ॥




|| श्लोक 55 ||

भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः। 
ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्‌॥ 

 

भावार्थ : उस पराभक्ति के द्वारा वह मुझ परमात्मा को, मैं जो हूँ और जितना हूँ, ठीक वैसा-का-वैसा तत्त्व से जान लेता है तथा उस भक्ति से मुझको तत्त्व से जानकर तत्काल ही मुझमें प्रविष्ट हो जाता है ॥





|| श्लोक 56 ||

सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः। 
मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम्‌॥ 

 

भावार्थ : मेरे परायण हुआ कर्मयोगी तो संपूर्ण कर्मों को सदा करता हुआ भी मेरी कृपा से सनातन अविनाशी परमपद को प्राप्त हो जाता है ॥






|| श्लोक 57 ||

चेतसा सर्वकर्माणि मयि सन्न्यस्य मत्परः। 
बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित्तः सततं भव॥ 

 

भावार्थ : सब कर्मों को मन से मुझमें अर्पण करके (गीता अध्याय 9 श्लोक 27 में जिसकी विधि कही है) तथा समबुद्धि रूप योग को अवलंबन करके मेरे परायण और निरंतर मुझमें चित्तवाला हो ॥







|| श्लोक 58 ||

मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि। 
अथ चेत्वमहाङ्‍कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि॥ 

 

भावार्थ : उपर्युक्त प्रकार से मुझमें चित्तवाला होकर तू मेरी कृपा से समस्त संकटों को अनायास ही पार कर जाएगा और यदि अहंकार के कारण मेरे वचनों को न सुनेगा तो नष्ट हो जाएगा अर्थात परमार्थ से भ्रष्ट हो जाएगा ॥






|| श्लोक 59 ||

यदहङ्‍कारमाश्रित्य न योत्स्य इति मन्यसे । 
मिथ्यैष व्यवसायस्ते प्रकृतिस्त्वां नियोक्ष्यति ॥ 

 

भावार्थ : जो तू अहंकार का आश्रय लेकर यह मान रहा है कि 'मैं युद्ध नहीं करूँगा' तो तेरा यह निश्चय मिथ्या है, क्योंकि तेरा स्वभाव तुझे जबर्दस्ती युद्ध में लगा देगा ॥





|| श्लोक 60 ||

स्वभावजेन कौन्तेय निबद्धः स्वेन कर्मणा ।
कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात्करिष्यस्यवशोऽपि तत्‌ ॥ 

 

भावार्थ : हे कुन्तीपुत्र! जिस कर्म को तू मोह के कारण करना नहीं चाहता, उसको भी अपने पूर्वकृत स्वाभाविक कर्म से बँधा हुआ परवश होकर करेगा ॥







|| श्लोक 61 ||

ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽजुर्न तिष्ठति। 
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया॥ 

 

भावार्थ : हे अर्जुन! शरीर रूप यंत्र में आरूढ़ हुए संपूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी माया से उनके कर्मों के अनुसार भ्रमण कराता हुआ सब प्राणियों के हृदय में स्थित है ॥







|| श्लोक 62 ||

तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत। 
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्‌॥ 

 

भावार्थ : हे भारत! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में (लज्जा, भय, मान, बड़ाई और आसक्ति को त्यागकर एवं शरीर और संसार में अहंता, ममता से रहित होकर एक परमात्मा को ही परम आश्रय, परम गति और सर्वस्व समझना तथा अनन्य भाव से अतिशय श्रद्धा, भक्ति और प्रेमपूर्वक निरंतर भगवान के नाम, गुण, प्रभाव और स्वरूप का चिंतन करते रहना एवं भगवान का भजन, स्मरण करते हुए ही उनके आज्ञा अनुसार कर्तव्य कर्मों का निःस्वार्थ भाव से केवल परमेश्वर के लिए आचरण करना यह 'सब प्रकार से परमात्मा के ही शरण' होना है) जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परमधाम को प्राप्त होगा ॥






|| श्लोक 63 ||

इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्‍गुह्यतरं मया । 
विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु ॥ 

 

भावार्थ : इस प्रकार यह गोपनीय से भी अति गोपनीय ज्ञान मैंने तुमसे कह दिया। अब तू इस रहस्ययुक्त ज्ञान को पूर्णतया भलीभाँति विचार कर, जैसे चाहता है वैसे ही कर ॥






|| श्लोक 64 ||

सर्वगुह्यतमं भूतः श्रृणु मे परमं वचः । 
इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम्‌ ॥ 

 

भावार्थ : संपूर्ण गोपनीयों से अति गोपनीय मेरे परम रहस्ययुक्त वचन को तू फिर भी सुन। तू मेरा अतिशय प्रिय है, इससे यह परम हितकारक वचन मैं तुझसे कहूँगा ॥





|| श्लोक 65 ||

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ॥ 

 

भावार्थ : हे अर्जुन! तू मुझमें मनवाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो और मुझको प्रणाम कर। ऐसा करने से तू मुझे ही प्राप्त होगा, यह मैं तुझसे सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ क्योंकि तू मेरा अत्यंत प्रिय है ॥





|| श्लोक 66 ||

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज । 
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥ 

 

भावार्थ : संपूर्ण धर्मों को अर्थात संपूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझमें त्यागकर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण (इसी अध्याय के श्लोक 62 की टिप्पणी में शरण का भाव देखना चाहिए।) में आ जा। मैं तुझे संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर ॥






|| श्लोक 67 ||

इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन । 
न चाशुश्रूषवे वाच्यं न च मां योऽभ्यसूयति ॥ 

 

भावार्थ : तुझे यह गीत रूप रहस्यमय उपदेश किसी भी काल में न तो तपरहित मनुष्य से कहना चाहिए, न भक्ति-(वेद, शास्त्र और परमेश्वर तथा महात्मा और गुरुजनों में श्रद्धा, प्रेम और पूज्य भाव का नाम 'भक्ति' है।)-रहित से और न बिना सुनने की इच्छा वाले से ही कहना चाहिए तथा जो मुझमें दोषदृष्टि रखता है, उससे तो कभी भी नहीं कहना चाहिए ॥






|| श्लोक 68 ||

य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति । 
भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशयः ॥ 

 

भावार्थ : जो पुरुष मुझमें परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीताशास्त्र को मेरे भक्तों में कहेगा, वह मुझको ही प्राप्त होगा- इसमें कोई संदेह नहीं है ॥






|| श्लोक 69 ||

न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः । 
भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि ॥ 

 

भावार्थ : उससे बढ़कर मेरा प्रिय कार्य करने वाला मनुष्यों में कोई भी नहीं है तथा पृथ्वीभर में उससे बढ़कर मेरा प्रिय दूसरा कोई भविष्य में होगा भी नहीं ॥






|| श्लोक 70 ||

अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः । 
ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्टः स्यामिति मे मतिः ॥ 

 

भावार्थ : जो पुरुष इस धर्ममय हम दोनों के संवाद रूप गीताशास्त्र को पढ़ेगा, उसके द्वारा भी मैं ज्ञानयज्ञ (गीता अध्याय 4 श्लोक 33 का अर्थ देखना चाहिए।) से पूजित होऊँगा- ऐसा मेरा मत है ॥







|| श्लोक 71 ||

श्रद्धावाननसूयश्च श्रृणुयादपि यो नरः । 
सोऽपि मुक्तः शुभाँल्लोकान्प्राप्नुयात्पुण्यकर्मणाम्‌ ॥ 

 

भावार्थ : जो मनुष्य श्रद्धायुक्त और दोषदृष्टि से रहित होकर इस गीताशास्त्र का श्रवण भी करेगा, वह भी पापों से मुक्त होकर उत्तम कर्म करने वालों के श्रेष्ठ लोकों को प्राप्त होगा ॥






|| श्लोक 72 ||

कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा । 
कच्चिदज्ञानसम्मोहः प्रनष्टस्ते धनञ्जय ॥ 

 

भावार्थ : हे पार्थ! क्या इस (गीताशास्त्र) को तूने एकाग्रचित्त से श्रवण किया? और हे धनञ्जय! क्या तेरा अज्ञानजनित मोह नष्ट हो गया?॥




|| श्लोक 73 ||

नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वप्रसादान्मयाच्युत ।
स्थितोऽस्मि गतसंदेहः करिष्ये वचनं तव ॥ 

 

भावार्थ : अर्जुन बोले- हे अच्युत! आपकी कृपा से मेरा मोह नष्ट हो गया और मैंने स्मृति प्राप्त कर ली है, अब मैं संशयरहित होकर स्थिर हूँ, अतः आपकी आज्ञा का पालन करूँगा ॥




|| श्लोक 74 ||

इत्यहं वासुदेवस्य पार्थस्य च महात्मनः । 
संवादमिममश्रौषमद्भुतं रोमहर्षणम्‌ ॥ 

 

भावार्थ : संजय बोले- इस प्रकार मैंने श्री वासुदेव के और महात्मा अर्जुन के इस अद्‍भुत रहस्ययुक्त, रोमांचकारक संवाद को सुना ॥





|| श्लोक 75 ||

व्यासप्रसादाच्छ्रुतवानेतद्‍गुह्यमहं परम्‌ । 
योगं योगेश्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः स्वयम्‌॥ 

 

भावार्थ : श्री व्यासजी की कृपा से दिव्य दृष्टि पाकर मैंने इस परम गोपनीय योग को अर्जुन के प्रति कहते हुए स्वयं योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण से प्रत्यक्ष सुना ॥





|| श्लोक 76 ||

राजन्संस्मृत्य संस्मृत्य संवादमिममद्भुतम्‌ । 
केशवार्जुनयोः पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहुः ॥ 

 

भावार्थ : हे राजन! भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के इस रहस्ययुक्त, कल्याणकारक और अद्‍भुत संवाद को पुनः-पुनः स्मरण करके मैं बार-बार हर्षित हो रहा हूँ ॥





|| श्लोक 77 ||

तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः । 
विस्मयो मे महान्‌ राजन्हृष्यामि च पुनः पुनः ॥ 

 

भावार्थ : हे राजन्‌! श्रीहरि (जिसका स्मरण करने से पापों का नाश होता है उसका नाम 'हरि' है) के उस अत्यंत विलक्षण रूप को भी पुनः-पुनः स्मरण करके मेरे चित्त में महान आश्चर्य होता है और मैं बार-बार हर्षित हो रहा हूँ ॥






|| श्लोक 78 ||

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः । 
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥ 

 

भावार्थ : हे राजन! जहाँ योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीव-धनुषधारी अर्जुन है, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है- ऐसा मेरा मत है ॥


ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे

 श्रीकृष्णार्जुनसंवादे मोक्षसन्न्यासयोगो नामाष्टादशोऽध्यायः॥

 

 || श्रद्धात्रयविभागयोग ||



|| श्लोक 1 ||

ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विताः।
तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः॥ 

 

भावार्थ : अर्जुन बोले- हे कृष्ण! जो मनुष्य शास्त्र विधि को त्यागकर श्रद्धा से युक्त हुए देवादिका पूजन करते हैं, उनकी स्थिति फिर कौन-सी है? सात्त्विकी है अथवा राजसी किंवा तामसी? ॥




|| श्लोक 2 ||

त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा।
सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां श्रृणु॥ 

 

भावार्थ : श्री भगवान्‌ बोले- मनुष्यों की वह शास्त्रीय संस्कारों से रहित केवल स्वभाव से उत्पन्न श्रद्धा (अनन्त जन्मों में किए हुए कर्मों के सञ्चित संस्कार से उत्पन्न हुई श्रद्धा ''स्वभावजा'' श्रद्धा कही जाती है।) सात्त्विकी और राजसी तथा तामसी- ऐसे तीनों प्रकार की ही होती है। उसको तू मुझसे सुन ॥




|| श्लोक 3 ||

सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत। 
श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः॥ 

 

भावार्थ : हे भारत! सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अन्तःकरण के अनुरूप होती है। यह पुरुष श्रद्धामय है, इसलिए जो पुरुष जैसी श्रद्धावाला है, वह स्वयं भी वही है ॥




|| श्लोक 4 ||

यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः। 
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये जयन्ते तामसा जनाः॥ 

 

भावार्थ : सात्त्विक पुरुष देवों को पूजते हैं, राजस पुरुष यक्ष और राक्षसों को तथा अन्य जो तामस मनुष्य हैं, वे प्रेत और भूतगणों को पूजते हैं ॥




|| श्लोक 5 ||

अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।
दम्भाहङ्‍कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः॥ 

 

भावार्थ : जो मनुष्य शास्त्र विधि से रहित केवल मनःकल्पित घोर तप को तपते हैं तथा दम्भ और अहंकार से युक्त एवं कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से भी युक्त हैं ॥




|| श्लोक 6 ||

कर्शयन्तः शरीरस्थं भूतग्राममचेतसः। 
मां चैवान्तःशरीरस्थं तान्विद्ध्‌यासुरनिश्चयान्‌॥ 

 

भावार्थ : जो शरीर रूप से स्थित भूत समुदाय को और अन्तःकरण में स्थित मुझ परमात्मा को भी कृश करने वाले हैं (शास्त्र से विरुद्ध उपवासादि घोर आचरणों द्वारा शरीर को सुखाना एवं भगवान्‌ के अंशस्वरूप जीवात्मा को क्लेश देना, भूत समुदाय को और अन्तर्यामी परमात्मा को ''कृश करना'' है।), उन अज्ञानियों को तू आसुर स्वभाव वाले जान ॥




|| श्लोक 7 ||

आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रियः।
यज्ञस्तपस्तथा दानं तेषां भेदमिमं श्रृणु॥ 

 

भावार्थ : भोजन भी सबको अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार का प्रिय होता है। और वैसे ही यज्ञ, तप और दान भी तीन-तीन प्रकार के होते हैं। उनके इस पृथक्‌-पृथक्‌ भेद को तू मुझ से सुन ॥




|| श्लोक 8 ||

आयुः सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः। 
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः॥ 

 

भावार्थ : आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले, रसयुक्त, चिकने और स्थिर रहने वाले (जिस भोजन का सार शरीर में बहुत काल तक रहता है, उसको स्थिर रहने वाला कहते हैं।) तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय- ऐसे आहार अर्थात्‌ भोजन करने के पदार्थ सात्त्विक पुरुष को प्रिय होते हैं ॥




|| श्लोक 9 ||

कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः।
आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः॥ 

 

भावार्थ : कड़वे, खट्टे, लवणयुक्त, बहुत गरम, तीखे, रूखे, दाहकारक और दुःख, चिन्ता तथा रोगों को उत्पन्न करने वाले आहार अर्थात्‌ भोजन करने के पदार्थ राजस पुरुष को प्रिय होते हैं ॥




|| श्लोक 10 ||

यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्‌।
उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्‌॥ 

 

 भावार्थ : जो भोजन अधपका, रसरहित, दुर्गन्धयुक्त, बासी और उच्छिष्ट है तथा जो अपवित्र भी है, वह भोजन तामस पुरुष को प्रिय होता है ॥




|| श्लोक 11 ||

अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते।
यष्टव्यमेवेति मनः समाधाय स सात्त्विकः॥ 

 

भावार्थ : जो शास्त्र विधि से नियत, यज्ञ करना ही कर्तव्य है- इस प्रकार मन को समाधान करके, फल न चाहने वाले पुरुषों द्वारा किया जाता है, वह सात्त्विक है ॥




|| श्लोक 12 ||

अभिसन्धाय तु फलं दम्भार्थमपि चैव यत्‌।
इज्यते भरतश्रेष्ठ तं यज्ञं विद्धि राजसम्‌॥ 

 

भावार्थ : परन्तु हे अर्जुन! केवल दम्भाचरण के लिए अथवा फल को भी दृष्टि में रखकर जो यज्ञ किया जाता है, उस यज्ञ को तू राजस जान ॥





|| श्लोक 13 ||

विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम्‌।
श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते॥ 

 

भावार्थ : शास्त्रविधि से हीन, अन्नदान से रहित, बिना मन्त्रों के, बिना दक्षिणा के और बिना श्रद्धा के किए जाने वाले यज्ञ को तामस यज्ञ कहते हैं ॥




|| श्लोक 14 ||

देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्‌। 
ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते॥ 

 

भावार्थ : देवता, ब्राह्मण, गुरु (यहाँ 'गुरु' शब्द से माता, पिता, आचार्य और वृद्ध एवं अपने से जो किसी प्रकार भी बड़े हों, उन सबको समझना चाहिए।) और ज्ञानीजनों का पूजन, पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा- यह शरीर- सम्बन्धी तप कहा जाता है ॥





|| श्लोक 15 ||

अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्‌।
स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्‍मयं तप उच्यते॥ 

 

भावार्थ : जो उद्वेग न करने वाला, प्रिय और हितकारक एवं यथार्थ भाषण है (मन और इन्द्रियों द्वारा जैसा अनुभव किया हो, ठीक वैसा ही कहने का नाम 'यथार्थ भाषण' है।) तथा जो वेद-शास्त्रों के पठन का एवं परमेश्वर के नाम-जप का अभ्यास है- वही वाणी-सम्बन्धी तप कहा जाता है ॥




|| श्लोक 16 ||

मनः प्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।
भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते॥ 

 

भावार्थ : मन की प्रसन्नता, शान्तभाव, भगवच्चिन्तन करने का स्वभाव, मन का निग्रह और अन्तःकरण के भावों की भलीभाँति पवित्रता, इस प्रकार यह मन सम्बन्धी तप कहा जाता है ॥





|| श्लोक 17 ||

श्रद्धया परया तप्तं तपस्तत्त्रिविधं नरैः।
अफलाकाङ्क्षिभिर्युक्तैः सात्त्विकं परिचक्षते॥ 

 

भावार्थ : फल को न चाहने वाले योगी पुरुषों द्वारा परम श्रद्धा से किए हुए उस पूर्वोक्त तीन प्रकार के तप को सात्त्विक कहते हैं ॥





|| श्लोक 18 ||

सत्कारमानपूजार्थं तपो दम्भेन चैव यत्‌। 
क्रियते तदिह प्रोक्तं राजसं चलमध्रुवम्‌॥ 

 

भावार्थ : जो तप सत्कार, मान और पूजा के लिए तथा अन्य किसी स्वार्थ के लिए भी स्वभाव से या पाखण्ड से किया जाता है, वह अनिश्चित ('अनिश्चित फलवाला' उसको कहते हैं कि जिसका फल होने न होने में शंका हो।) एवं क्षणिक फलवाला तप यहाँ राजस कहा गया है ॥




|| श्लोक 19 ||

मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः। 
परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम्‌॥ 

 

भावार्थ : जो तप मूढ़तापूर्वक हठ से, मन, वाणी और शरीर की पीड़ा के सहित अथवा दूसरे का अनिष्ट करने के लिए किया जाता है- वह तप तामस कहा गया है ॥




|| श्लोक 20 ||

दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे। 
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्‌॥ 

 

भावार्थ : दान देना ही कर्तव्य है- ऐसे भाव से जो दान देश तथा काल (जिस देश-काल में जिस वस्तु का अभाव हो, वही देश-काल, उस वस्तु द्वारा प्राणियों की सेवा करने के लिए योग्य समझा जाता है।) और पात्र के (भूखे, अनाथ, दुःखी, रोगी और असमर्थ तथा भिक्षुक आदि तो अन्न, वस्त्र और ओषधि एवं जिस वस्तु का जिसके पास अभाव हो, उस वस्तु द्वारा सेवा करने के लिए योग्य पात्र समझे जाते हैं और श्रेष्ठ आचरणों वाले विद्वान्‌ ब्राह्मणजन धनादि सब प्रकार के पदार्थों द्वारा सेवा करने के लिए योग्य पात्र समझे जाते हैं।) प्राप्त होने पर उपकार न करने वाले के प्रति दिया जाता है, वह दान सात्त्विक कहा गया है ॥





|| श्लोक 21 ||

यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः।
दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतम्‌॥

 

भावार्थ : किन्तु जो दान क्लेशपूर्वक (जैसे प्रायः वर्तमान समय के चन्दे-चिट्ठे आदि में धन दिया जाता है।) तथा प्रत्युपकार के प्रयोजन से अथवा फल को दृष्टि में (अर्थात्‌ मान बड़ाई, प्रतिष्ठा और स्वर्गादि की प्राप्ति के लिए अथवा रोगादि की निवृत्ति के लिए।) रखकर फिर दिया जाता है, वह दान राजस कहा गया है ॥





|| श्लोक 22 ||

अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते। 
असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम्‌॥ 

 

भावार्थ : जो दान बिना सत्कार के अथवा तिरस्कारपूर्वक अयोग्य देश-काल में और कुपात्र के प्रति दिया जाता है, वह दान तामस कहा गया है ॥




|| श्लोक 23 ||

ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः। 
ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा॥ 

 

भावार्थ : ॐ, तत्‌, सत्‌-ऐसे यह तीन प्रकार का सच्चिदानन्दघन ब्रह्म का नाम कहा है, उसी से सृष्टि के आदिकाल में ब्राह्मण और वेद तथा यज्ञादि रचे गए ॥





|| श्लोक 24 ||

तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपः क्रियाः। 
प्रवर्तन्ते विधानोक्तः सततं ब्रह्मवादिनाम्‌॥ 

 

भावार्थ : इसलिए वेद-मन्त्रों का उच्चारण करने वाले श्रेष्ठ पुरुषों की शास्त्र विधि से नियत यज्ञ, दान और तपरूप क्रियाएँ सदा 'ॐ' इस परमात्मा के नाम को उच्चारण करके ही आरम्भ होती हैं ॥






|| श्लोक 25 ||

तदित्यनभिसन्दाय फलं यज्ञतपःक्रियाः।
दानक्रियाश्चविविधाः क्रियन्ते मोक्षकाङ्क्षिभिः॥ 

 

भावार्थ : तत्‌ अर्थात्‌ 'तत्‌' नाम से कहे जाने वाले परमात्मा का ही यह सब है- इस भाव से फल को न चाहकर नाना प्रकार के यज्ञ, तपरूप क्रियाएँ तथा दानरूप क्रियाएँ कल्याण की इच्छा वाले पुरुषों द्वारा की जाती हैं ॥




|| श्लोक 26 ||

सद्भावे साधुभावे च सदित्यतत्प्रयुज्यते। 
प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्दः पार्थ युज्यते॥ 

 

भावार्थ : 'सत्‌'- इस प्रकार यह परमात्मा का नाम सत्यभाव में और श्रेष्ठभाव में प्रयोग किया जाता है तथा हे पार्थ! उत्तम कर्म में भी 'सत्‌' शब्द का प्रयोग किया जाता है ॥




|| श्लोक 27 ||

यज्ञे तपसि दाने च स्थितिः सदिति चोच्यते। 
कर्म चैव तदर्थीयं सदित्यवाभिधीयते॥ 

 

भावार्थ : तथा यज्ञ, तप और दान में जो स्थिति है, वह भी 'सत्‌' इस प्रकार कही जाती है और उस परमात्मा के लिए किया हुआ कर्म निश्चयपूर्वक सत्‌-ऐसे कहा जाता है ॥




|| श्लोक 28 ||

अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत्‌। 
असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह॥ 

 

भावार्थ : हे अर्जुन! बिना श्रद्धा के किया हुआ हवन, दिया हुआ दान एवं तपा हुआ तप और जो कुछ भी किया हुआ शुभ कर्म है- वह समस्त 'असत्‌'- इस प्रकार कहा जाता है, इसलिए वह न तो इस लोक में लाभदायक है और न मरने के बाद ही ॥


ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे

श्री कृष्णार्जुनसंवादे श्रद्धात्रयविभागयोगो नाम सप्तदशोऽध्याय : ॥