Badshah Ki kimat || बादशाह की कीमत

 बादशाह की कीमत




एक दिन बादशाह और खोजा एक साथ नहाने गए।


रास्ते में एक जगह बिकने के लिए लाइन लगा कर बैठे गुलामों को देखकर बादशाह ने खोजा से पूछा, अगर मुझे बाजार में एक गुलाम के तौर पर बेचा जाए तो क्या कीमत मिलेगी ?


खोजा ने बोला, ज्यादा से ज्यादा दस रूपये।


यह सुनकर बादशाह गुस्से से आग-बबूला हो गया। बौखला कर बोला, तुम निहायत बेवकूफ आदमी हो।


जान पड़ता है तुम्हारी अक्ल घास चरने गई हुई है।


यह ठीक है कि इस समय मैंने हीरे-जवाहरात नहीं पहने हुए है, लेकिन मैंने जो रेशमी गाउन पहना हुआ है, उस अकेले की कीमत ही दस रुपयों से कहीं ज्यादा होगी।


खोजा ने कहा, आपने सही अंदाजा लगाया, जहाँपनाह!


यकीनन इस गाउन की कीमत दस रूपये से कहीं ज्यादा हो सकती है लेकिन वह क्या है कि बाजार का चलन ही कुछ ऐसा है कि जो भी पुरानी चीज बिकने आती है, उसकी पूरी कीमत कोई नहीं देता।


आधी-पौनी ही देता है। मैंने दरसअल इस गाउन की ही तो कीमत लगाई थी।


और मेरी ? ....... बादशाह ने पूछ।


आपकी भला कोई क्या कीमत लगाएगा ? इस मुल्क में कोई इतना अक्लमंद नहीं जो यह जान सके कि आपका क्या इस्तेमाल हो सकता है।


खोजा के कथन का बादशाह ने यह अर्थ लिया कि वह तो बेशकीमती है, इसलिए कोई उसे नहीं खरीदेगा।


इसी खुशफहमी में फूलकर कुम्पा हुए बादशाह ने बात बदलते हुए कहा, खोजा तुम्हें अगर कभी धन और न्याय में से किसी एक चीज को चुनता पड़े, तो तुम किसे चुनोगे ?


खोजा ने उत्तर दिया, धन को चुनूंगा।


बादशाह ने हैरान होते हुए अगला सवाल किया, आखिर क्यों ?


तुम्हारी जगह अगर मैं होता तो जरूर न्याय को चुनता, धन को नहीं।


धन तो आसानी से हासिल हो जाता है, पर न्याय मुश्किल से मिलता है। है कि नहीं ?


खोजा ने सफाई दी, जहाँपनाह! आदमी दो किस्म की चीजों को पाने की तमन्ना पालता है।


पहली तो वह चीज जिसका उसके पास अभाव हो और दूसरी वह चीज जिसके मिलने की उसे थोड़ी-बहुत उम्मीद हो।


जो चीज जिस मुल्क में मिल ही न सके, उस पाने की तमन्ना पालने का लोभ क्या ?


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