सिंहासन बत्तीसी की 32वीं कहानी - रूपवती पुतली की कथा
सिंहासन पर बैठने के लिए हमेशा उतावले रहने वाले राजा भोज इस बार सिंहासन के लिए थोड़े से भी उत्साहित नहीं थे। यह देख 32वीं पुतली रानी रूपवती वहां प्रकट हुई और राजा भोज से कारण पूछा। राजा भोज ने जवाब दिया, “मैं यह समझ चुका हूं कि राजा विक्रमादित्य में देवताओं वाले गुण थे, जो किसी सामान्य मनुष्य में होना असंभव है। साथ ही मैं यह भी जानता हूं कि मेरे में कई कमियां हैं। इसलिए, मैंने सोचा है कि सिंहासन को इसके पहले स्थान में ही गड़वा दिया जाए, जहां से कोई इसे निकाल न सके।”
राजा भोज का जवाब सुनते ही सिंहासन की सभी पुतली अपनी रानी के पास आ गईं और राजा भोज को उनके इस फैसले के लिए धन्यवाद कहा। पुतलियों ने कहा कि आज वे मुक्त हो गई हैं और यह सिंहासन अब बिना पुतलियों का हो जाएगा। पुतलियों ने राजा भोज को बताया कि उनमें भी राजा विक्रमादित्य जैसे थोड़े गुण दिखाई देते हैं और इसी वजह से उन्हें राजा विक्रमादित्य का यह सिंहासन दिखाई दिया।
पुतलियों ने राजा भोज से यह भी कहा कि आज से सिंहासन के गुण फीके पड़ जाएंगे और यह भी धरती की अन्य वस्तुओं की तरह पुराना होकर नष्ट हो जाएगा। इसके बाद सभी पुतलियों ने राजा भोज से जाने की आज्ञा ली और आकाश में विलीन हो गईं।
इसके बाद राजा भोज ने मजदूरों को बुलाकर एक बड़ा गड्ढा खुदवाया और मंत्रों का पाठ करके सिंहासन को जमीन में गड़वा दिया। उस स्थान पर फिर वैसा ही टीला बनवाया गया, जिस पर बैठकर चरवाहा अपने फैसले सुनाया करता था, लेकिन अब यह टीला पहले वाले की तरह चमत्कारी नहीं रहा।
कहानी की समाप्ति से जुड़ी एक अन्य कथा
सिंहासन बत्तीसी को गड़वाने के बाद सिंहासन का क्या हुआ, इसका जिक्र कहानी की समाप्ति से जुड़ी एक कथा में मिलता है, जो इस प्रकार है –
राजा विक्रमादित्य के सिंहासन को गाड़कर और उस पर टीला बनवाए काफी वर्ष बीत चुके थे। टीले को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। इस बात को सभी लोग जानते थे कि इस टीले के नीचे चमत्कारी सिंहासन दबा हुआ है। इस बात के बारे में चोरों को भी पता चल गया था। चोरों ने एक दिन सिंहासन को चोरी करके उसे बेचने की योजना बनाई। योजना के तहत कई महीनों तक उन्होंने टीले से कुछ ही दूरी पर एक सुरंग बनाई, जो सीधे सिंहासन तक जाती थी। चोर सिंहासन तक पहुंच गए और वहां से सिंहासन को बाहर निकालकर एक सुनसान जगह पर ले गए। चोरों ने सिंहासन को तोड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन तोड़ नहीं पाए। सिंहासन को हथौड़े से भी तोड़ने की कोशिश की गई, लेकिन प्रहार करते ही सिंहासन में से चिंगारी निकली और तोड़ने वाले के हाथ जख्मी हो गए। चोर फिर भी लगातार सिंहासन को तोड़ने की कोशिश करते रहें, क्योंकि सिंहासन में जड़ें कीमती हीरों का लालच वो छोड़ नहीं पा रहे थे।
सिंहासन पर लगे सोने की चमक को देख कर चोरों ने सोचा कि अगर वो इस सोने को बेच देंगे, तो उनके पास बहुत सारा धन आ जाएगा और उनकी आने वाली पीढ़ी को कुछ काम करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, लेकिन सिंहासन को नुकसान पहुंचाने की चोरों की हर कोशिश नाकाम रही। सिंहासन को तोड़ने के चक्कर में उनके हाथ चिंगारी से जल गए। चोर थकान के कारण चुपचाप बैठ कर सोचने लगे और सोचने के बाद उन्हें लगने लगा कि सिंहासन में भूत है। चोर आपस में बात करते हुए कहने लगे कि सिंहासन में भूत होने की वजह से ही राजा भोज ने इसे अपने पास नहीं रखा और इतनी कीमती चीज को जमीन में गाड़ दिया। चोरों ने सिंहासन को छोड़ने का सोचा, तभी चोरों के सरदार ने कहा, “अगर सिंहासन को तोड़ नहीं पा रहे हो, तो इसे दूसरी जगह ले जाकर बेचा जाएगा।”
अपने सरदार की बात सुनकर चोरों ने सिंहासन को कपड़े से ढक दिया और दूर राज्य के लिए रवाना हो गए। वे सिंहासन को लेकर एक ऐसे राज्य में पहुंचे, जहां कोई राजा विक्रमादित्य के सिंहासन को बारे में जानता नहीं था। चोर जौहरी के वेश में राज्य के राजा से मिलने गए और राजा को हीरे-मोती से जड़ित सिंहासन को दिखाते हुए कहा कि वे बहुत दूर रहते हैं और उन्होंने अपना सारा धन इस सिंहासन को तैयार करने में लगा दिया।
राजा ने उनकी बात सुनने के बाद हीरे के व्यापारी को इस सिंहासन की जांच करने के लिए कहा। राजा के आदेश के बाद सुनारों और जौहरियों ने सिंहासन की जांच करने के बाद राजा को इसे खरीदने के लिए कहा। राजा ने सिंहासन का अच्छा-खासा मूल्य देकर खरीद लिया। जैसे ही सिंहासन को दरबार में लगाया गया, तो पूरा दरबार सिंहासन से निकल रही चमत्कारी रोशनी से जगमगा उठा। राजा यह देखकर बहुत खुश हुआ। राजा ने शुभ मुहूर्त निकाल कर सिंहासन का शुद्धीकरण करवाया और इस पर रोज बैठने लगे।
हर तरफ सिंहासन के बारे में बात होने लगी। कई राज्यों के राजाओं ने सिंहासन के दर्शन किए। यह बात राजा भोज के राज्य में भी पहुंची। राजा भोज को शक हुआ कि कहीं ये सिंहासन वो तो नहीं है, जिसे उन्होंने दबा दिया था। राजा भोज ने तुरंत अपने सैनिकों के साथ इस बारे में बात की और मजदूर बुलाकर टीले को खुदवाने का आदेश दिया। आखिरकार राजा भोज को जिस बात का शक था वही हुआ, सिंहासन चोरी हो चुका था। अब राजा भोज मन ही मन यह सोचने लगे कि कोई और राजा इस सिंहासन पर विराजमान कैसे हो गया। क्या उस राजा में विक्रमादित्य के जैसे गुण हैं?
अपने सवालों का जवाब जानने के लिए राजा भोज उस राज्य की ओर रवाना हुए। राजा भोज लंबी यात्रा तय करने के बाद उस राज्य के राजा से मिले। राजा भोज का खूब आदर-सत्कार किया गया और यहां आने का कारण पूछा गया।
राजा भोज ने सारी बातें राजा को सच-सच बताई। राजा भोज की बातों को सुनकर राजा सोच में पड़ गए और कहा “मुझे किसी भी तरह की तकलीफ नहीं हुई इस सिंहासन पर बैठने में।”
राजा भोज ने ज्योतिषियों से सलाह ली और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि शायद अब सिंहासन का चमत्कार खत्म हो चुका है और सिंहासन में अब सोने की जगह कांच के टुकड़े रह गए हैं।
सिंहासन खरीदने वाले राजा को ज्योतिषियों की बात पर भरोसा नहीं हुआ। राजा ने कहा, “सिंहासन लेने से पहले जौहरियों से इसकी अच्छे से जांच की गई थी।” फिर, जब दोबारा इस सिंहासन की जांच करवाई गई, तो पता चला कि सिंहासन की चमक फीकी पड़ चुकी है और सिंहासन में हीरे-मोती नहीं बल्कि अब कांच के टुकड़े लगे हैं। राजा ने अपने पंडितों से सिंहासन को ठीक से देखने के लिए कहा। सिंहासन को देखने के बाद पंडितों का कहना था कि इस सिंहासन का चमत्कार अब खत्म हो चुका है, क्योंकि यह सिंहासन शुद्ध नहीं रहा। पंडितों ने कहा कि अब इस अपवित्र सिंहासन का शास्त्रों के अनुसार विधि-विधान के साथ अंतिम संस्कार कर देना चाहिए। इस सिंहासन का समापन जल में कर देना चाहिए। राजा के आदेश पर सिंहासन को कावेरी नदी में प्रवाहित कर दिया गया।
इसके बाद कई राजाओं ने सिंहासन तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन सिंहासन किसी के हाथ न आया। वहीं, कई लोगों का विश्वास है कि यह सिंहासन उसी को मिलेगा जिसके अंदर राजा विक्रमादित्य जैसी खूबियों होंगी।
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें