सिंहासन बत्तीसी की अठारहवीं कहानी - तारामती पुतली की कथा
18वीं बार फिर राजा भोज सिंहासन पर बैठने के लिए आगे बढ़ें। उन्होंने सोचा कि इस बार चाहे कुछ भी हो जाए, वो सिंहासन पर बैठकर ही रहेंगे। तभी सिंहासन से 18वीं पुतली तारामती बाहर निकली और राजा भोज को रोकते हुए बोली, “सिंहासन पर बैठने से पहले राजा विक्रमादित्य का यह किस्सा सुनिए।” उसके बाद पुतली तारामती ने कहानी सुनाना शुरू किया।
राजा विक्रमादित्य कलाकारों और विद्वानों का खूब सम्मान किया करते थे। उनके दरबार में कई महान कलाकार थे। अन्य राज्यों से भी योग्य कलाकार उनके दरबार आते-जाते रहते थे। एक दिन राजा विक्रमादित्य के दरबार में दक्षिण भारत से एक विद्वान पहुंचे। उनका मानना था कि किसी को धोखा देना सबसे बुरा और गिरा हुआ काम होता है। अपनी बात सही साबित करने के लिए उस विद्वान ने राजा विक्रमादित्य को एक कहानी सुनाई।
उस विद्वान ने कहा कि सालों पहले आर्यावर्त राज्य में एक राजा राज करता था। उसका भरा-पूरा और सुखी परिवार था। उस राजा ने सत्तर साल की उम्र में एक लड़की से शादी कर ली। वो नई रानी की खूबसूरती से इतना आकर्षित था कि उससे एक पल भी अलग नहीं होता था। राजा चाहता था कि हर वक्त रानी का चेहरा उसके सामने रहे। यहां तक कि राज दरबार में भी वो अपने बगल में नई रानी को बैठाने लगा।
नई रानी को बगल में बैठा देख कई लोग राजा के पीठ पीछे उनका मजाक बनाने लगे। राजा के महामंत्री को इस बात का बहुत बुरा लगता। एक दिन अकेले में महामंत्री ने राजा को इस बात की जानकारी दी। उसने राजा को कहा कि अगर वो हर पल रानी को अपने सामने देखना चाहते हैं, तो उनकी एक सुंदर तस्वीर बनवाकर राज दरबार में सिंहासन के सामने लगवा लें। जैसे कि राज दरबार में राजा के अकेले बैठने की ही परंपरा सालों से चली आ रही है। ऐसे में रानी को राज दरबार ले जाना उन्हें शोभा नहीं देता है।
महामंत्री राजा का खास था, इसलिए राजा ने उसकी बात को गंभीरता से लेते हुए अच्छे चित्रकार से रानी की तस्वीर बनाने को कहा। चित्रकार ने भी राजा का आदेश मिलने के बाद जल्दी रानी की तस्वीर बनाई और उसे राज दरबार लेकर चला गया। राज दरबार में जब लोगों ने रानी का चित्र देखा, तो हर कोई चित्रकार की तारीफ करने लगा। उस चित्रकार ने रानी की तस्वीर ऐसी बनाई थी कि वो तस्वीर एकदम असली लगती थी। राजा को भी रानी की तस्वीर बहुत पसंद आई।
तस्वीर को निहारते हुए राजा की नजर चित्र में रानी की जंघा पर गई। उस जगह पर चित्रकार ने एक तिल बनाया था। राजा को इस बात पर काफी गुस्सा आया। उन्हें लगा कि चित्रकार ने जांघों में तिल कैसे बना दिया। यह सोचकर राजा को बहुत गुस्सा आया और उसने चित्रकार से इसको लेकर सवाल पूछा। जवाब देते हुए चित्रकार ने कहा कि प्रकृति से उसे ऐसा गुण मिला है कि वो छिपी हुई बातें भी जान सकता है। इसी गुण की वजह से उसने यह तिल बनाया। साथ ही तिल से तस्वीर की सुंदरता भी बढ़ती है, इसलिए उसने तिल बनाया है।
राजा को उसकी बात पर भरोसा नहीं हुआ। उसने बिना देर किए जल्लादों को बुलाया और चित्रकार को जंगल ले जाकर मारने का आदेश दे दिया। साथ ही उसकी आंखें निकालकर राजमहल लाने को भी कहा। भले ही राजा को चित्रकार की बात पर भरोसा नहीं था, लेकिन महामंत्री को चित्रकार की विश्वास था। ऐसे में जंगल ले जाने के बाद मंत्री ने जल्लादों को धन का लालच देकर चित्रकार को रिहा करवा दिया। साथ ही उन्हें यह सुझाव दिया कि सबूत के तौर पर वो किसी हिरण की आंखें ले जाकर राजा को दे दें। इसी बीच महामंत्री चित्रकार को अपने घर ले आया और वो रूप बदलकर महामंत्री के घर में रहने लगा।
इतना सब होने के कुछ दिनों बाद राजा का बेटा शिकार करने के लिए जंगल गया। तभी उसके पीछे एक शेर पड़ गया। राजकुमार अपनी जान बचाने के लिए एक पेड़ पर जा चढ़ा। पेड़ पर वह बैठा ही था कि उसकी नजर वहां पहले से ही बैठे भालू पर पड़ी। राजकुमार और डर गया। उसको डरा हुआ देखकर भालू ने कहा, “ तुम डरो मत, मैं भी तुम्हारी तरह ही पेड़ पर शेर को देखकर चढ़ा हूं।” इसी बीच भूखा शेर उसी पेड़ के नीचे उन दोनों पर नजरें जमाकर बैठ गया। काफी देर तक पेड़ पर बैठे-बैठे राजकुमार को नींद आने लगी।
यह देखकर भालू ने राजकुमार को अपनी तरफ आने का इशारा किया और कहा कि वो थोड़ी देर उसका सहारा लेकर सो सकता है। भालू ने राजकुमार से कहा कि जबतक तुम सोओगे मैं तुम्हारी रखवाली करूंगा। फिर तुम जागने के बाद मेरी रखवाली करना और मैं सो जाऊंगा।”
राजकुमार ने भालू की बात मान ली और वो सो गया। इसी बीच शेर ने भालू को फुसलाते हुए कहा कि वो और भालू जंगल के जानवर हैं और उन दोनों को एक दूसरे का साथ देना चाहिए। मनुष्य कभी जंगल के जानवर के दोस्त नहीं हो सकते हैं। यह सब कहते हुए शेर ने राजकुमार को नीचे गिरा देने की बात कही, लेकिन भालू ने शेर की बात नहीं मानी और कहा कि वो राजकुमार के साथ धोखा नहीं कर सकता है।
शेर दुखी होकर चुपचाप वहीं बैठा रहा। इतने में कुछ घंटों की नींद पूरी करके राजकुमार उठ गया। उसके उठने के बाद अब भालू की सोने की बारी आई। जैसे ही भालू सोया, तो शेर ने राजकुमार को बहलाने-फुसलाने की कोशिश की। उसने राजकुमार से कहा कि वो भालू को नीचे गिरा दे, तो शेर उसे खाकर अपनी भूख मिटा लेगा और राजकुमार आराम से राजमहल लौट सकेगा।
राजकुमार शेर की बातों में आ गया और भालू को पेड़ से गिराने की कोशिश करने लगा। इसी बीच भालू की नींद खुल गई और भालू ने राजकुमार को विश्वासघाती बोलकर खूब खरी-खोटी सुनाई। राजकुमार को मन ही मन बहुत बुरा लगा। तभी उसकी आवाज चली गई और वो गूंगा हो गया।
इसी बीच शेर थक-हारकर जंगल की ओर अन्य शिकार ढूंढ़ने के लिए वहां से चला गया। फिर राजकुमार वापस अपने महल पहुंचा। उसकी आवाज जाने की वजह से वो कुछ नहीं बोल पा रहा था। राजकुमार की आवाज जाने से हर कोई परेशान हो गया। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि और वैद्य राजकुमार को देखने के लिए आएं, लेकिन राजकुमार की इस अवस्था का वो पता नहीं लगा पाएं।
इतने में महामंत्री अपने घर में छुपे उस चित्रकार को चिकित्सक बनाकर वहां ले आएं। चिकित्सक बने चित्रकार ने राजकुमार के चेहरे के हाव-भाव से सारी बात जान ली। उसने इशारों-इशारों में राजकुमार से पूछा कि क्या मन ही मन वो खुद को दोषी समझकर अपनी आवाज खो बैठा है?
इशारों में राजकुमार उसकी बात समझ गया और फिर फूट-फूट कर रोने लगा। रोती ही उसकी आवाज वापस आ गई। राजा बहुत हैरान हो गए और उन्होंने सोचा कि यह चिकित्सक राजकुमार का चेहरे देखकर सारी कैसे जान सकता है। तब उस चित्रकार ने कहा कि जैसे एक चित्रकार ने रानी का तिल देख लिया था, वैसे ही मैंने आपके बेटे का चेहरा देखकर ही सब कुछ जान लिया।
यह सुनते ही राजा को समझ आ गया कि वो कोई चिकित्सक नहीं, बल्कि कलाकार है। राजा ने चित्रकार से अपनी गलती की माफी मांगी और उसे कुछ उपहार देकर सम्मानित किया।
इतनी कहानी राजा विक्रमादित्य को सुनाकर विद्वान चुप हो गया। राजा विक्रमादित्य इस कहानी को सुनकर बहुत खुश हुए और उनकी बात मान ली कि धोखा देना सबसे बुरा काम है। इसके बाद राजा ने विद्वान को एक लाख सोने के सिक्कों से सम्मानित किया।
इतना कहते ही अठारहवीं पुतली तारामती ने कहा कि अगर तुम में भी दूसरों की बातों से सहमत होने और दूसरों की बातों का सम्मान करने का गुण है, तो तुम इस सिंहासन पर बैठ सकते हो। इतना कहकर अठारहवीं पुतली तारामती सिंहासन से उड़ गई और राजा भोज एक बार फिर सिंहासन पर बैठते-बैठते रह गए।
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