सिंहासन बत्तीसी की दसवीं कहानी - प्रभावती पुतली की कथा
दसवें दिन दोबारा राजा भोज सिंहासन पर बैठने के लिए दरबार पहुंचे, तभी दसवीं पुतली प्रभावती ने सिंहासन से निकलकर उन्हें वहां बैठने से रोक दिया। प्रभावती ने कहा कि पहले आप राजा विक्रमादित्य की दयालुता की कथा सुनिए। अगर आप भी विक्रमादित्य जैसे दयालु होंगे, तो सिंहासन पर बैठ जाना। इतना कहने के बाद दसवीं पुतली राजा भोज को कहानी सुनाना शुरू करती है।
एक बार की बात है, जब राजा विक्रमादित्य शिकार करने अपने सैनिकों के साथ जंगल गए। चलते-चलते राजा इतना आगे निकल गए कि उन्हें दूर-दूर तक सैनिक नहीं दिखे। तभी उनकी नजर एक पेड़ पर गई, जहां एक लड़का रस्सी डालकर उससे लटकने की कोशिश कर रहा था। यह देखकर विक्रमादित्य तुरंत उस पेड़ के पास पहुंचे और लड़के को समझाया कि आत्महत्या करना पाप है।
राजा ने आगे कहा कि खुद को मारना पाप ही नहीं, बल्कि अपराध भी है और इसके लिए मैं तुम्हें सजा भी दे सकता हूं। तुम इतने स्वस्थ हो, लेकिन ऐसी डरपोक जैसी हरकत करने के पीछे क्या कारण है। वह लड़का सहमी आवाज में बोला कि मैं अपने प्रेम की वजह से जान देना चाहता हूं।
इतना सुनकर राजा विक्रमादित्य ने लड़के से पूछा कि आखिर उसके साथ ऐसा क्या हुआ है? तब लड़के ने बताया कि उसका नाम वसु है और वह कलिंग का रहने वाला है। एक दिन वह जंगल से गुजर रहा था, तभी उसकी नजर एक लड़की पर पड़ी। युवती को देखते ही उसने शादी करने का प्रस्ताव रख दिया, लेकिन लड़की ने विवाह करने से मना कर दिया। इसकी वजह उसके पंडित की भविष्यवाणी थी कि वो जिससे भी प्यार करेगी उसकी मौत हो जाएगी। इसी वजह से उसके पिता ने भी उसे पैदा होते ही दूर एक कुटिया में भेज दिया था।
दर्द भरी आवाज में युवक ने आगे कहा कि लड़की से विवाह करने के लिए मुझे गर्म तेल की कड़ाही में कूदकर जिंदा निकलना होगा, जो संभव नहीं है। इसी वजह से अब मैं जीना नहीं चाहता।
वसु की बातों को सुनने के बाद राजा विक्रमादित्य ने उसे वचन दिया कि वो उसका विवाह उसी लड़की से कराएंगे, जिससे वो प्यार करता है। इतना कहकर राजा अपने साथ वसु को लेकर लड़की की कुटिया में पहुंच गए। वहां पहुंचते ही विक्रमादित्य ने कुटिया के तपस्वी से उस युवती का विवाह वसु से करने की बात कही।
इस प्रस्ताव को सुनते ही तपस्वी ने कहा, “खौलते तेल की कड़ाही से जिंदा बाहर आने वाला ही उस युवती से विवाह कर सकता है।” फिर राजा ने कहा कि लड़के की जगह वह तेल की कड़ाही में कूदने को तैयार हैं।
राजा के इस आत्मविश्वास को देखने के बाद तपस्वी ने गर्म तेल की कड़ाही मंगवाई। कड़ाही के आते ही महाराज विक्रमादित्य ने मां काली को याद किया और उसमें कूद पड़े। खौलते तेल की वजह से राजा की मौत हो गई। यह सब देखकर मां काली को अपने प्रिय भक्त पर दया आई और उन्होंने तुरंत बेतालों से राजा को जिंदा करने को कहा। काली मां का आदेश मिलते ही बेतालों ने अमृत की कुछ बूंदें महाराज विक्रमादित्य के मुंह में डालीं, जिससे राजा तुरंंत जीवित हो गए।
विक्रमादित्य ने जिंदा होते ही वसु के लिए उस सुंदर लड़की का हाथ मांगा। तपस्वी ने तुरंत इसकी सूचना सुंदरी के पिता को भेजी और दोनों की शादी करा दी। विवाह संपन्न होते ही वसु ने राजा विक्रमादित्य को शुक्रिया कहा और खुशी-खुशी लड़की के साथ अपने घर की ओर निकल पड़ा।
इतनी कहानी सुनाने के बाद दसवीं पुतली सिंहासन से उड़ गई।
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