जीने का अधिकार || Jeene Ka Adhikar

एक बार राजा अजातशत्रु एक साथ कई मुसीबतों से घिर गए। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि इन आपदाओं को कैसे दूर किया जाए। वह दिन-रात इसी चिंता में डूबे रहते। तभी एक दिन उनकी मुलाकात एक वाममार्गी तांत्रिक से हुई। उन्होंने उस तांत्रिक को अपनी आपदाओं के बारे में बताया।


तांत्रिक ने राजा से कहा कि उन्हें संकट से मुक्ति तभी मिल सकती है जब वह पशुओं की बलि चढ़ाएं। अजातशत्रु ने उस तांत्रिक की बात पर विश्वास कर लिया और बलि देने की योजना बना ली। एक विशेष अनुष्ठान का आयोजन किया गया। बलि के लिए एक भैंसे को मैदान में बांधकर खड़ा कर दिया गया।


वधिक हाथ में तलवार थामे संकेत की प्रतीक्षा कर रहा था। तभी संयोगवश गौतम बुद्ध वहां से गुजरे। उन्होंने मूक पशु को मृत्यु की प्रतीक्षा करते देखा तो उनका हृदय करुणा से भर गया। उन्होंने राजा अजातशत्रु को एक तिनका देते हुए कहा, 'राजन्, इस तिनके को तोड़कर दिखाइए।' बुद्ध के ऐसा कहते ही राजा ने तिनके के दो टुकड़े कर दिए। तिनके के टुकड़े होने पर बुद्ध राजा से बोले, 'अब इन टुकड़ों को जोड़ दीजिए।'


बुद्ध का यह आदेश सुनकर अजातशत्रु हैरान होकर उनसे बोले, 'भगवन् टूटे तिनके कैसे जोड़े जा सकते हैं?' अजातशत्रु का जवाब सुनकर बुद्ध ने कहा, 'राजन् जिस प्रकार आप तिनका तोड़ तो सकते हैं जोड़ नहीं सकते, उसी प्रकार निरीह प्राणी का जीवन लेने के बाद आप उसे जीवित नहीं कर सकते। निरीह प्राणी की हत्या से आपदाएं कम होने के बजाय बढ़ती ही हैं। आपकी तरह इस पशु को भी तो जीने का अधिकार है। समस्याएं कम करने के लिए अपनी बुद्धि और साहस का प्रयोग कीजिए, निरीह प्राणियों का वध मत कीजिए।'


बुद्ध की बात सुनकर अजातशत्रु लज्जित हो गए। उन्होंने उसी समय पशु-बलि बंद करने का आदेश जारी कर दिया ।


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