Famous Ghazal Of Munavar Rana

 नाम : मुनव्वर राणा

जन्म: 26 नवंबर 1952 (उम्र 68)

रायबरेली, उत्तर प्रदेश, भारत

राष्ट्रीयता भारतीय

व्यवसाय उर्दू कवि, लेखक

उर्दू साहित्य के लिए पुरस्कार साहित्य अकादमी पुरस्कार (2014) 




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ये तेरा घर ये मेरा घर, किसी को देखना हो गर

तो पहले आके माँग ले, मेरी नज़र तेरी नज़र


ये घर बहुत हसीन है

न बादलों की छाँव में, न चाँदनी के गाँव में

न फूल जैसे रास्ते, बने हैं इसके वास्ते


मगर ये घर अजीब है, ज़मीन के क़रीब है

ये ईँट पत्थरों का घर, हमारी हसरतों का घर


जो चाँदनी नहीं तो क्या, ये रोशनी है प्यार की

दिलों के फूल खिल गये, तो फ़िक्र क्या बहार की


हमारे घर ना आयेगी, कभी ख़ुशी उधार की

हमारी राहतों का घर, हमारी चाहतों का घर


यहाँ महक वफ़ाओं की है, क़हक़हों के रंग है

ये घर तुम्हारा ख़्वाब है, ये घर मेरी उमंग है


न आरज़ू पे क़ैद है, न हौसले पर जंग है

हमारे हौसले का घर, हमारी हिम्मतों का घर


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ये बता दे मुझे ज़िन्दगी

प्यार की राह के हमसफ़र

किस तरह बन गये अजनबी

ये बता दे मुझे ज़िन्दगी

फूल क्यूँ सारे मुरझा गये

किस लिये बुझ गई चाँदनी

ये बता दे मुझे ज़िन्दगी


कल जो बाहों में थी

और निगाहों में थी

अब वो गर्मी कहाँ खो गई

न वो अंदाज़ है

न वो आवाज़ है

अब वो नर्मी कहाँ खो गई

ये बता दे मुझे ज़िन्दगी


बेवफ़ा तुम नहीं

बेवफ़ा हम नहीं

फिर वो जज़्बात क्यों सो गये

प्यार तुम को भी है

प्यार हम को भी है

फ़ासले फिर ये क्या हो गये

ये बता दे मुझे ज़िन्दगी


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क्यूँ ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए

इतने हुए करीब कि हम दूर हो गए


ऐसा नहीं कि हमको कोई भी खुशी नहीं

लेकिन ये ज़िन्दगी तो कोई ज़िन्दगी नहीं


क्यों इसके फ़ैसले हमें मंज़ूर हो गए

पाया तुम्हें तो हमको लगा तुमको खो दिया


हम दिल पे रोए और ये दिल हम पे रो दिया

पलकों से ख़्वाब क्यों गिरे क्यों चूर हो गए


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तुमको देखा तो ये ख़याल आया

ज़िन्दगी धूप तुम घना साया


आज फिर दिल ने एक तमन्ना की

आज फिर दिल को हमने समझाया


तुम चले जाओगे तो सोचेंगे

हमने क्या खोया, हमने क्या पाया


हम जिसे गुनगुना नहीं सकते

वक़्त ने ऐसा गीत क्यूँ गाया


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प्यार मुझसे जो किया तुमने तो क्या पाओगी

मेरे हालात की आंधी में बिखर जाओगी


रंज और दर्द की बस्ती का मैं बाशिन्दा हूँ

ये तो बस मैं हूँ के इस हाल में भी ज़िन्दा हूँ


ख़्वाब क्यूँ देखूँ वो कल जिसपे मैं शर्मिन्दा हूँ

मैं जो शर्मिन्दा हुआ तुम भी तो शरमाओगी


क्यूं मेरे साथ कोई और परेशान रहे

मेरी दुनिया है जो वीरान तो वीरान रहे


ज़िन्दगी का ये सफ़र तुमको तो आसान रहे

हमसफ़र मुझको बनाओगी तो पछताओगी


एक मैं क्या अभी आयेंगे दीवाने कितने

अभी गूंजेगे मुहब्बत के तराने कितने


ज़िन्दगी तुमको सुनायेगी फ़साने कितने

क्यूं समझती हो मुझे भूल नही पाओगी


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दर्द अपनाता है पराए कौन

कौन सुनता है और सुनाए कौन


कौन दोहराए वो पुरानी बात

ग़म अभी सोया है जगाए कौन


वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं

कौन दुख झेले आज़माए कौन


अब सुकूँ है तो भूलने में है

लेकिन उस शख़्स को भुलाए कौन


आज फिर दिल है कुछ उदास उदास

देखिये आज याद आए कौन.


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हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है

हँसती आँखों में भी नमी-सी है


दिन भी चुप चाप सर झुकाये था

रात की नब्ज़ भी थमी-सी है


किसको समझायें किसकी बात नहीं

ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है


ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई

गर्द इन पलकों पे जमी-सी है


कह गए हम ये किससे दिल की बात

शहर में एक सनसनी-सी है


हसरतें राख हो गईं लेकिन

आग अब भी कहीं दबी-सी है


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जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया

उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया


उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी

ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया


सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई

और मुझ को एक कश्ती बादबानी दे गया


ख़ैर मैं प्यासा रहा पर उस ने इतना तो किया

मेरी पलकों की कतारों को वो पानी दे गया


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कभी यूँ भी तो हो

दरिया का साहिल हो

पूरे चाँद की रात हो

और तुम आओ


कभी यूँ भी तो हो

परियों की महफ़िल हो

कोई तुम्हारी बात हो

और तुम आओ


कभी यूँ भी तो हो

ये नर्म मुलायम ठंडी हवायें

जब घर से तुम्हारे गुज़रें

तुम्हारी ख़ुश्बू चुरायें

मेरे घर ले आयें


कभी यूँ भी तो हो

सूनी हर मंज़िल हो

कोई न मेरे साथ हो

और तुम आओ


कभी यूँ भी तो हो

ये बादल ऐसा टूट के बरसे

मेरे दिल की तरह मिलने को

तुम्हारा दिल भी तरसे

तुम निकलो घर से


कभी यूँ भी तो हो

तनहाई हो, दिल हो

बूँदें हो, बरसात हो

और तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो


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मैनें दिल से कहा

ऐ दीवाने बता

जब से कोई मिला

तू है खोया हुआ

ये कहानी है क्या

है ये क्या सिलसिला

ऐ दीवाने बता


मैनें दिल से कहा

ऐ दीवाने बता

धड़कनों में छुपी

कैसी आवाज़ है

कैसा ये गीत है

कैसा ये साज़ है

कैसी ये बात है

कैसा ये राज़ है

ऐ दीवाने बता


मेरे दिल ने कहा

जब से कोई मिला

चाँद तारे फ़िज़ा

फूल भौंरे हवा

ये हसीं वादियाँ

नीला ये आसमाँ

सब है जैसे नया

मेरे दिल ने कहा


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सो गया, ये जहाँ, सो गया आसमां

सो गयीं हैं सारी मंज़िलें, सो गया है रस्ता


रात आई तो वो जिनके घर थे, वो घर को गये, सो गये

रात आई तो हम जैसे आवारा फिर निकले, राहों में और खो गये


इस गली, उस गली, इस नगर, उस नगर

जाएँ भी तो कहाँ, जाना चाहें अगर


सो गयीं हैं सारी मंज़िलें, सो गया है रस्ता

कुछ मेरी सुनो, कुछ अपनी कहो


हो पास तो ऐसे चुप न रहो

हम पास भी हैं, और दूर भी हैं


आज़ाद भी हैं, मजबूर भी हैं

क्यों प्यार का मौसम बीत गया


क्यों हम से ज़माना जीत गया

हर घड़ी मेरा दिल गम के घेरे में है


जिंदगी दूर तक अब अंधेरे में है

सो गयीं हैं सारी मंज़िलें सो गया है रस्ता


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इक पल गमों का दरिया, इक पल खुशी का दरिया

रूकता नहीं कभी भी, ये जिंदगी का दरिया


आँखें थीं वो किसी की, या ख़्वाब की ज़ंजीरे

आवाज़ थी किसी की, या रागिनी का दरिया


इस दिल की वादियों में, अब खाक उड़ रही है

बहता यहीं था पहले, इक आशिकी का दरिया


किरनों में हैं ये लहरें, या लहरों में हैं किरनें

दरिया की चाँदनी है, या चाँदनी का दरिया


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आँख खुल मेरी गई हो गया मैं फिर ज़िन्दा

पेट के अन्धेरो से ज़हन के धुन्धलको तक


एक साँप के जैसा रेंगता खयाल आया

आज तीसरा दिन है


आज तीसरा दिन है

एक अजीब खामोशी से भरा हुआ कमरा कैसा खाली-खाली है


मेज़ जगह पर रखी है कुर्सी जगह पर रखी है फर्श जगह पर रखी है

अपनी जगह पर ये छत अपनी जगह दीवारे


मुझसे बेताल्लुक सब, सब मेरे तमाशाई है

सामने की खिड़्की से तीज़ धूप की किरने आ रही है बिस्तर पर


चुभ रही है चेहरे में इस कदर नुकीली है

जैसे रिश्तेदारो के तंज़ मेरी गुर्बत पर


आँख खुल गई मेरी आज खोखला हूँ मै

सिर्फ खोल बाकी है


आज मेरे बिस्तर पर लेटा है मेरा ढाँचा

अपनी मुर्दा आँखो से देखता है कमरे को एक सर्द सन्नाटा


आज तीसरा दिन है

आज तीसरा दिन है


दोपहर की गर्मी में बेरादा कदमों से एक सड़क पर चलता हूँ

तंग सी सड़क पर है दौनो सिम पर दुकाने


खाली-खाली आँखो से हर दुकान का तख्ता

सिर्फ देख सकता हूँ अब पढ़ नहीं जाता


लोग आते-जाते है पास से गुज़रते है

सब है जैसे बेचेहरा

दूर की सदाए है आ रही है दूर


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यास की कैसे लाए ताब कोई

नहीं दरिया तो हो सराब कोई


रात बजती थी दूर शहनाई

रोया पीकर बहुत शराब कोई


कौन सा ज़ख्म किसने बख्शा है

उसका रखे कहाँ हिसाब कोई


फिर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की

आने वाला है फिर अज़ाब कोई


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क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा

कुछ ना होगा तो तज़रूबा होगा


हँसती आँखों में झाँक कर देखो

कोई आँसू कहीं छुपा होगा


इन दिनों ना-उम्मीद  सा हूँ मैं

शायद उसने भी ये सुना होगा


देखकर तुमको सोचता हूँ मैं

क्या किसी ने तुम्हें छुआ होगा


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आज मैंने अपना फिर सौदा किया

और फिर मैं दूर से देखा किया


जिंदगी भर मेरे काम आए असूल

एक एक करके मैं उन्हें बेचा किया


कुछ कमी अपनी वफ़ाओं में भी थी

तुम से क्या कहते कि तुमने क्या किया


हो गई थी दिल को कुछ उम्मीद  सी

खैर तुमने जो किया अच्छा किया


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आप भी आइए हमको भी बुलाते रहिए

दोस्ती ज़ुर्म नहीं दोस्त बनाते रहिए।


ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको

जख्म  भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।


वक़्त ने लूट लीं लोगों की तमनाएँ  भी,

ख़्वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।


शक्ल  तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,

कभी बन जाएगी तसवीर बनाते रहिए।


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तमन्ना फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

यह मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ


मुझे गम है कि मैने जिन्दगी में कुछ नहीं पाया

ये ग़म दिल से निकल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ


नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे

ज़माना मुझसे जल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ


ये दुनिया भर के झगड़े, घर के किससे , काम की बातें

बला हर एक टल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ


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यही हालात इब्तदा से रहे

लोग हमसे ख़फ़ा-ख़फ़ा-से रहे


बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन

ये भी सच है कि बेवफ़ा-से रहे


इन चिराग़ों में तेल ही कम था

क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे


बहस, शतरंज, शेर, मौसीक़ी

तुम नहीं रहे तो ये दिलासे रहे


उसके बंदों को देखकर कहिये

हमको उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे


ज़िन्दगी की शराब माँगते हो

हमको देखो कि पी के प्यासे रहे


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मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में

कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में


वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे

अजीब बात हुई है उसे भुलाने में


जो मुंतज़िर न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा

कि हमने देर लगा दी पलट के आने में


लतीफ़ था वो तख़य्युल से, ख़्वाब से नाज़ुक

गँवा दिया उसे हमने ही आज़माने में


समझ लिया था कभी एक सराब को दरिया

पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में


झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा

ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में


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