10 सितंबर 1976 को भारतीय पंजाब के पठानकोट शहर के मोहल्ला रड़ा में पैदा हुए रविकांत ‘अनमोल’ हिंदी उर्दू व पंजाबी के कवि और शायर हैं। हिंदी में उनकी एक किताब टहलते-टहलते अंजुमन प्रकाशन इलाहबाद से नवंबर 2014 में प्रकाशित हुई है। मुशाइरों में बहुत कम नज़र आने के बाद भी रवि कांत ‘अनमोल’ अपनी दमदार उर्दू ग़ज़ल के कारण ग़ज़ल प्रेमियों में पहचाने जाते हैं। उनकी ग़ज़ल ‘उसे मस्जिद बनानी है, इसे मंदिर बनाना है। मुझे बस एक चिंता कैसे अपना घर चलाना है॥‘ 2013 दिल्ली विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया पर काफ़ी चर्चित रही। मई 2014 में तेलुगू के प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक डॉ० ग़ज़ल श्रीनिवास की पहली उर्दू ग़ज़ल अल्बम ‘रू-ब-रू’ में रविकांत ‘अनमोल’ की लिखी चार ग़ज़लें शामिल थीं। रवि कांत ‘अनमोल’ की ग़ज़लों और गीतों को गाने वाले गायकों में डॉ० ग़ज़ल श्रीनिवास श्री संजय वत्सल, श्री संजय मिश्रा, श्री रतिश नायर, श्री अपूर्व शाह और श्री प्रवेश कालिया इत्यादि गायक शामिल हैं।
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लकड़ी के ये खिलौने, दिल को लुभा रहे हैं
बचपन के दिन सुहाने, फिर याद आ रहे हैं
बचपन जहाँ पे बीता, वो घर यहीं कहीं है
वो रीछ वो मदारी, बंदर यहीं कहीं है
बच्चे कहीं पे मिल के, हल्ला मचा रहे हैं
बचपन के दिन सुहाने, फिर याद आ रहे हैं
नादान से वो सपने, छुटपन में जो बुने थे
किस्से बड़े मज़े के, दादी से जो सुने थे
किस्से वो याद आ कर, फिर गुदगुदा रहे हैं
बचपन के दिन सुहाने, फिर याद आ रहे हैं
भाई ने प्यार से ज्यूँ, आवाज़ दी है मुझको
काका ने जैसे कोई, ताक़ीद की है मुझको
ऐसा लगा पिताजी मुझको बुला रहे हैं
बचपन के दिन सुहाने, फिर याद आ रहे हैं
ये किसकी गुनगुनाहट, लोरी सुना रही है
जैसे कि माँ थपक के, मुझको सुला रही है
क्यूँ नींद में ये आँसू, बहते ही जा रहे हैं
बचपन के दिन सुहाने, फिर याद आ रहे हैं
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दो घड़ी इस दिल को बहलाए कहां
आदमी जाए तो अब जाए कहां
सरह्दें ही सरहदें हैं हर तरफ़
क्या जगह है? मुझको ले आए कहां?
झड़ गए पत्ते तो शाख़ें कट गई
अब दरख़्तों में हैं वो साए कहां
आम का वो पेड़ कब का कट चुका
कोयल अब गाए भी तो गाए कहां
खेल कर होली हमारे ख़ून से
पल में खो जाते हैं वो साए कहां
जिनमें कुछ इनसानियत हो, प्यार हो
अब मिलेंगे ऐसे हमसाए कहां
जिनको गाने के लिए आए थे हम
हमने अब तक गीत वो गाए कहां
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मोहब्बत का सिला पूछो, न दुनिया की हवा पूछो
वही बातें पुरानी पूछते हो कुछ नया पूछो
तरक्की के म'आनी जानने की हो अगर चाहत
तो जिसने जांफ़िशानी की है, उसको क्या मिला पूछो
हमारा हौसला देखो, न पूछो पैर के छाले
हमारी इब्तिदा क्या देखते हो इंतिहा पूछो
जलाओ घर कोई इस आग से या प्यार के दीपक
मगर ये क्या कि जलती आग से उसकी रज़ा पूछो
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किसी राधा के मोहन हो गए हो
किसी के दिल की धड़कन हो गए हो
मेरा आंगन महक उठ्ठा है तुमसे
मेरा आंगन का चंदन हो गए हो
हमें कल तक दिलो-जां मानते थे
हमारी जां के दुश्मन हो गए हो
तुम्हीं में बस गए हैं सारे अरमां
हमारे मन का आंगन हो गए हो
तुम्हें बनना था चलने की तमन्ना
तुम्हीं पैरों का बंधन हो गए हो
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उनसे मिलते हैं ग़म सारे क्या कीजे
फिर भी वो लगते हैं प्यारे क्या कीजे
सर ढकने को छत मिलती तो अच्छा था
किस्मत में हैं चंद सितारे क्या कीजे
टूटे सपने अंधी आँखों में लेकर
मर जाते हैं कुछ बेचारे क्या कीजे
जिन लोगों ने दुनिया की ख़ातिर सोचा
वो फिरते हैं मारे मारे क्या कीजे
या तो वो बहरे हैं जिनको सुनना था
या गूँगे हैं गीत हमारे क्या कीजे
शायर की आँखों में आग न पानी है
प्यासे हैं हम नदी किनारे क्या कीजे
ग़ैरों ने हर बार हमारा साथ दिया
जब हारे अपनों से हारे क्या कीजे
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बाग़ में कोयल बोल रही है
भेद किसी का खोल रही है
मेरे देस की मिट्टी है जो
रंग फिजा में घोल रही है
जीवन की नन्ही सी चिड़िया
उड़ने को पर खोल रही है
कोई मीठी बात अभी तक
कानों में रस घोल रही है
मोल नहीं कुछ उस दौलत का
जो कल तक अनमोल रही है
बाहर उसकी गूँज ज़ियादा
जिसके अंदर पोल रही है
देखें क्या होता है आगे
अब तक धरती गोल रही है
तू भी उसके पीछे हो ले
जिसकी तूती बोल रही है
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'अनमोल' अपने आप से कब तक लड़ा करें
जो हो सके तो अपने भी हक़ में दुआ करें
हम से ख़ता हुई है कि इंसान हैं हम भी
नाराज़ अपने आप से कब तक रहा करें
अपने हज़ार चेहरे हैं, सारे हैं दिलनशीं
किसके वफ़ा निभाएं हम किससे जफ़ा करें
नंबर मिलाया फ़ोन पर दीदार कर लिया
मिलना सहल हुआ है तो अक्सर मिला करें
तेरे सिवा तो अपना कोई हमज़ुबां नहीं
तेरे सिवा करें भी तो किस से ग़िला करें
दी है कसम उदास न रहने की तो बता
जब तू न हो तो कैसे हम ये मोजिज़ा करें
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लुटे तुम मौलवी से तो हमें पंडित ने लूटा है
चलें हम साथ मिल कर हाल अपना एक जैसा है
मुहम्मद कृष्ण या जीसस कहां लड़वाते हैं हम को
सभी चरवाहे हैं, पूछो तो किस का किस से झगड़ा है
अज़ल ही से रहे हैं आदमी के सिर्फ़ दो मजहब
जिसे लूटा गया है और इक वो जिस ने लूटा है
ये जन्नत किस तरफ़ है मौलवी से पूछ कर देखो
ये बातें स्वर्ग की बस पादरी, पंडित का धोका है
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कोई ताज़ा ख़्याल दे मौला
दिल से ग़फ़्लत निकाल दे मौला
हर तरफ़ अम्न हो महब्बत हो
कोई ऐसा भी साल दे मौला
शुक्र दे सब्र दे सदाकत दे
चाहे रंजो-मलाल दे मौला
अम्न का रास्ता दिखे सब को
हाथ में वो मशाल दे मौला
उसका चेहरा नज़र में दे हर पल
हिज्र दे या विसाल दे मौला
सारी दुनिया मुझे लगे अपनी
ऐसे सांचे में ढाल दे मौला
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उसे मस्जिद बनानी है इसे मंदिर बनाना है
मुझे बस एक चिंता,कैसे अपना घर चलाना है
सियासी लोग सब चालाकियों में हैं बहुत माहिर
इन्हें मालूम है कब शाहर में दंगा कराना है
किसी का ख़ाब है मां-बाप को कुछ काम मिल जाए
किसी की सोच है बेटे को सिंहासन दिलाना है
भले अल्लाह वालों का हो झगड़ा राम वालों से
मगर पंडित का मौलाना का यारो इक घराना है
लड़ाई धर्म पर हो, जात पर हो या कि भाषा पर
लड़ाई हो! सियासत का तो बस अब ये निशाना है
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