Famous Ghazals of Gautam Rajrishi

 गौतम राजऋषि का जन्म 1975 में बिहार के सहरसा में हुआ था।उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खडगवासला, पुणे, महाराष्ट्र जाने से पहले सहरसा में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। गौतम की ज्यादातर पोस्टिंग कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित इलाकों में हुई है. गौतम को सेना पदक और पराक्रम पदक से सम्मानित किया जा चुका है, जो उन्होंने देश के दुश्मनों और आतंकवादियों से लड़ाई के दौरान कई बार प्रदर्शित की थी। हालांकि वह एक कर्नल के रूप में भारतीय सेना की सेवा करते हैं, लेकिन बंदूकों और तोपों की आवाज़ उन्हें कविता और शायरी के संगीत से दूर नहीं कर पाई है। वे कई वर्षों से लिख रहे हैं। बंदूक और कलम के बीच एक सौहार्दपूर्ण बंधन...



💙💙💙💚💚💚💚💚💚💛💛💛


एक मुद्दत से हुये हैं वो हमारे यूँ तो

चाँद के साथ ही रहते हैं सितारे, यूँ तो


तू नहीं तो न शिकायत कोई, सच कहता हूँ

बिन तेरे वक्त ये गुजरे न गुजारे यूँ तो


राह में संग चलूँ ये न गवारा उसको

दूर रहकर वो करे खूब इशारे यूँ तो


नाम तेरा कभी आने न दिया होठों पर

हाँ, तेरे जिक्र से कुछ शेर सँवारे यूँ तो


तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्जी

हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूँ तो


ये अलग बात है तू हो नहीं पाया मेरा

हूँ युगों से तुझे आँखों में उतारे यूँ तो


साथ लहरों के गया छोड़ के तू साहिल को

अब भी जपते हैं तेरा नाम किनारे यूँ तो


😋😘😍😗🥰🙂🥰😙😜🙂😝😗😗😗😙


उँड़स ली तू ने जब साड़ी में गुच्छी चाभियों वाली

हुई ये जिंदगी इक चाय ताजी चुस्कियों वाली


कहाँ वो लुत्फ़ शहरों में भला डामर की सड़कों पर

मजा देती है जो घाटी कोई पगडंडियों वाली


जिन्हें झुकना नहीं आया, शजर वो टूट कर बिखरे

हवाओं ने झलक दिखलायी जब भी आँधियों वाली


भरे-पूरे से घर में तब से ही तन्हा हुआ हूँ मैं

गुमी है पोटली जब से पुरानी चिट्ठियों वाली


बरस बीते गली छोड़े, मगर है याद वो अब भी

जो इक दीवार थी कोने में नीली खिड़कियों वाली


खिली-सी धूप में भी बज उठी बरसात की रुन-झुन

उड़ी जब ओढ़नी वो छोटी-छोटी घंटियों वाली


दुआओं का हमारे हाल होता है सदा ऐसा

कि जैसे लापता फाइल हो कोई अर्जियों वाली


लड़ा तूफ़ान से वो खुश्क पत्ता इस तरह दिन भर

हवा चलने लगी है चाल अब बैसाखियों वाली


बहुत दिन हो चुके रंगीनियों में शहर की 'गौतम'

चलो चल कर चखें फिर धूल वो रणभूमियों वाली


😗🥰😇😍😇🥰🙂😊😇😍😇😍😇🥰😗


खबर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है

नशे में तब से चाँद है, सितारों में खुमार है


मैं रोऊँ अपने कत्ल पर, या इस खबर पे रोऊँ मैं

कि कातिलों का सरगना तो हाय मेरा यार है


ये जादू है लबों का तेरे या सरूर इश्क का

कि तू कहे है झूठ और हमको ऐतबार है


सुलगती ख्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलायें और

कुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो जार-जार है


ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की

वो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है


बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ

न भाये अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है


भरी-भरी निगाह से वो देखना तेरा हमें

नसों में जलतरंग जैसा बज उठा सितार है


तेरे वो तीरे-नीमकश में बात कुछ रही न अब

खलिश तो दे है तीर, जो जिगर के आर-पार है


😝😍😇😍😇😍😇🥰🙃😘🙃🥰🙂😙😘


जल गई है फ़स्ल सारी पूछती अब आग क्या

राख पर पसरा है 'होरी', सोचता निज भाग क्या


ड्योढ़ी पर बैठी निहारे शहर से आती सड़क

'बन्तो' की आँखों में सब है, जोग क्या बैराग क्या


खेत सारे सूद में देकर 'रघू' आया नगर

देखता है गाँव को मुड़-मुड़, लगी है लाग क्या


चाँद को मुंडेर से 'राधा' लगाये टकटकी

इश्क के बीमार को दिखता है कोई दाग क्या


क्लास में हर साल जो आता था अव्वल 'मोहना'

पूछता रिक्शा लिये, 'चलना है मोतीबाग क्या'


किरणों के रथ से उतर क्या आयेगा कोई कुँवर

सोचती है 'निर्मला', देहरी पे कुचड़े काग क्या


जब से सीमा पर हरी वर्दी पहन कर वो गये

घर में 'सूबेदारनी' के क्या दिवाली फाग क्या


🥰🙂🥰🙂🥰🙂🥰🙃🥰🙃😘😅😘🙃😘😘


वो जब अपनी खबर दे है

जहाँ भर का असर दे है


चुराकर कौन सूरज से

ये चंदा को नजर दे है


है मेरी प्यास का रुतबा

जो दरिया में लहर दे है


कहाँ है जख्म औ मालिक

यहाँ मरहम किधर दे है


रगों में गश्त कुछ दिन से

कोई आठों पहर दे है


जरा-सा मुस्कुरा कर वो

नयी मुझको उमर दे है


रदीफ़ो-काफ़िया निखरे

गजल जब से बहर दे है


😙😘🙂🥰🙂🥰🙃😇🙂😊🙂🥰🙃😘😇🥰


दूर क्षितिज पर सूरज चमका, सुबह खड़ी है आने को

धुंध हटेगी, धूप खिलेगी, वक़्त  नया है छाने को


प्रत्यंचा की टंकारों से सारी दुनिया गुँजेगी

देश खड़ा अर्जुन बन कर गांडीव पे बाण चढ़ाने को


साहिल पर यूं सहमे-सहमे वक्त गँवाना क्या यारों

लहरों से टकराना होगा पार समन्दर जाने को


पेड़ों की फुनगी पर आकर बैठ गई जो धूप जरा

आँगन में ठिठकी सर्दी भी आए तो गरमाने को


हुस्नो-इश्क पुरानी बातें, कैसे इनसे शेर सजे

आज गज़ल तो तेवर लाई सोती रूह जगाने को


टेढ़ी भौंहों से तो कोई बात नहीं बनने वाली

मुट्ठी कब तक भीचेंगे हम, हाथ मिले याराने को


वक्त गुज़रता सिखलाता है, भूल पुरानी बातें सब

साज नया हो, गीत नया हो, छेड़ नए अफ़साने को


अपने हाथों की रेखाएँ कर ले तू अपने वश में

तेरी रूठी किस्मत 'गौतम' आए कौन मनाने को


😝😗🥰😇🥰🙂😘🙃🥰🙂🥰🙂🥰😗


सीखो आँखें पढ़ना साहिब

होगी मुश्किल वरना साहिब


सम्भल कर इल्जामें देना

उसने खद्दर पहना साहिब


तिनके से सागर नापेगा

रख ऐसे भी हठ ना साहिब


दीवारें किलकारी मारें

घर में झूले पलना साहिब


पूरे घर को महकाता है

माँ का माला जपना साहिब


सब को दूर सुहाना लागे

ढ़ोलों का यूँ बजना साहिब


कितनी कयनातें ठहरा दे

उस आँचल का ढ़लना साहिब


😝😍😇🥰🙂🥰😇😍🙂😘🙃😘🙃😘😍


हवा जब किसी की कहानी कहे है

नए मौसमों की जुबानी कहे है


फ़साना लहर का जुड़ा है जमीं से

समन्दर मगर आसमानी कहे है


कटी रात सारी तेरी करवटों में

कि ये सिलवटों की निशानी कहे है


नई बात हो अब नए गीत छेड़ो

गुज़रती घड़ी हर पुरानी कहे है


मुहल्ले की सारी गली मुझको घूरे

हुई जब से बेटी सयानी कहे है


यहाँ ना गुज़ारा सियासत बिना अब

मेरे मुल्क की राजधानी कहे है


'रिवाज़ों से हट कर नहीं चल सकोगे'

कि ये जड़ मेरी खानदानी कहे है


😝😗🥰🙂🥰😙😘🙃😘🙃😘🙃😘😘🙃


खोल ना गर मुख ज़रा तू, सब तेरा हो जाएगा

गर कहेगा सच यहाँ तो हादसा हो जाएगा


भेद की ये बात है यों उठ गया पर्दा अगर

तो सरे-बाज़ार कोई माजरा हो जाएगा


इक ज़रा जो राय दें हम तो बनें गुस्ताख-दिल

वो अगर दें धमकियाँ भी, मशवरा हो जाएगा


है नियम बाज़ार का ये जो न बदलेगा कभी

वो है सोना जो कसौटी पर खरा हो जाएगा


भीड़ में यों भीड़ बनकर गर चलेगा उम्र भर

बढ़ न पाएगा कभी तू, गुमशुदा हो जाएगा


सोचना क्या ये तो तेरे जेब की सरकार है

जो भी चाहे, जो भी तू ने कह दिया, हो जाएगा


तेरी आँखों में छुपा है दर्द का सैलाब जो

एक दिन ये इस जहाँ का तजकिरा हो जाएगा


यों निगाहों ही निगाहों में न हमको छेड़ तू

भोला-भाला मन हमारा मनचला हो जाएगा

🥰🙂🥰🙂🥰😇😌😇🙂☺😁😄😆😁😅


0 Comments:

एक टिप्पणी भेजें