सेठ का आदेश - मुल्ला नसीरुद्दीन की कहानीयां
बात उस समय की है जब खोजा छोटा था। तब वह किसी गाँव में एक धनी सेठ के यहाँ साफ़-सफाई का
काम करता था।
सेठ उसे भोजन, कपड़ा तो दे देता किन्तु उसका वेतन साल पूरा होने पर देता था और प्रायः वेतन न देने या
उसमें कटौती करने के बहाने ढूंढता रहता था।
एक बार जब साल का अंतिम दिन आ गया तो सेठ ने सुबह-सवेरे ही खोजा को बुला भेजा और उससे बोला,
खोजा।
तुम सफाई करोगे मगर ध्यान रहे, सफाई व धुलाई करते समय एक बूंद भी पानी नहीं छिड़कोगे, पर सफाई
व धुलाई के बाद आंगन गीला-सा लगाना चाहिए।
यदि तुम ऐसा नहीं कर पाए तो तुम्हारी इस साल की पूरी तनख्वाह काट ली जाएगी और अगले साल तुम्हें यहां
का काम नहीं मिलेगा। वह कहकर सेठ नए साल के लिए कुछ आवश्यक चीजें खरीदने के लिए शहर चला
गया।
खोजा ने चुपचाप सेठ के आंगन की सफाई कर डाली और फिर गोदाम से तेल की सभी तुंबिया बाहर
निकालकर सारा तेल आँगन में छिड़क दिया।
जब यह काम पूरा हो गया, तो वह सीढ़ी पर बैठकर सेठ के आने की बाट जोहने लगा।
शाम को सेठ शहर से लौटा। उसने देखा कि खोजा ने उसका सारा तेल आंगन में छिड़क दिया है तो वह
आपे से बाहर होते हुए चिल्लाया अरे ओ उल्लू की औलाद। मेरा सारा तेल तूने आंगन में क्यों फैला दिया ?
तुझे इसका मुआवजा देना पड़ेगा।
गुस्सा क्यों कर रहे हैं सेठजी। खोजा खड़ा होकर बोला, क्या मैंने आपके आंगन में एक बूंद भी पानी छिड़का है ?
क्या आपका आंगन गीला-सा नहीं लग रहा है ? क्या मैंने आपके आदेश के अनुसार काम नहीं किया है।
इस साल की तनख्वाह कृपया तो आप करके आप मुझे दे दें अगले साल हजार हजार-खुशामद करने पर भी
मैं आपके पास हरगिज काम नहीं करूंगा।
सेठ अवाक् रह गया। खोजै को पूरा वेतन देने के आलावा सेठ के सामने अब कोई चारा नहीं रह गया था।
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