मुद्दत हुई है यार को मिह्मां किये हुए जोश-ए क़दह से बज़्म चिराग़ां किये हुए कर्ता हूं जम`अ फिर जिगर-ए लख़्त-लख़्त को `अर्सह हुआ है द`वत-ए मिज़ह्गां किये हुए फिर वज़`-ए इह्तियात से रुक्ने लगा है दम बर्सों हुए हैं चाक-ए गरेबां किये हुए फिर गर्म-ए नालह्हा-ए शरर-बार है नफ़स मुद्दत हुई है सैर-ए चिराग़ां किये हुए फिर पुर्सिश-ए जराहत-ए दिल को चला है `इश्क़ सामान-ए सद-हज़ार नमक्दां किये हुए फिर भर रहा हूं ख़ामह-ए मिज़ह्गां ब ख़ून-ए दिल साज़-ए चमन-तराज़ी-ए दामां किये हुए बा-हम-दिगर हुए हैं दिल-ओ-दीदह फिर रक़ीब नज़्ज़ारह-ए जमाल का सामां किये हुए दिल फिर तवाफ़-ए कू-ए मलामत को जाए है पिन्दार का सनम-कदह वीरां किये हुए फिर शौक़ कर रहा है ख़रीदार की तलब `अर्ज़-ए मत`-ए `अक़्ल-ओ-दिल-ओ-जां किये हुए दौड़े है फिर हर एक गुल-ओ-लालह पर ख़ियाल सद गुल्सितां निगाह का सामां किये हुए फिर चाह्ता हूं नामह-ए दिल्दार खोल्ना जां नज़्र-ए दिल-फ़रेबी-ए `उन्वां किये हुए मांगे है फिर किसी को लब-ए बाम पर हवस ज़ुल्फ़-ए सियाह रुख़ पह परेशां किये हुए चाहे है फिर किसी को मुक़ाबिल में आर्ज़ू सुर्मे से तेज़ दश्नह-ए मिज़ह्गां किये हुए इक नौ-बहार-ए नाज़ को ताके है फिर निगाह चह्रह फ़ुरोग़-ए मै से गुलिस्तां किये हुए फिर जी में है कि दर पर किसी के पड़े रहें सर ज़ेर-बार-ए मिन्नत-ए दर्बां किये हुए जी ढूंड्ता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन बैठे रहें तसव्वुर-ए जानां किये हुए ग़ालिब हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए अश्क से बैठे हैं हम तहीयह-ए तूफ़ां किये हुए
नुक्तह-चीं है ग़म-ए दिल उस को सुनाए न बने क्या बने बात जहां बात बनाए न बने मैं बुलाता तो हूं उस को मगर अय जज़्बह-ए दिल उस पह बन जाए कुछ ऐसी कि बिन आए न बने खेल सम्झा है कहीं छोड़ न दे भूल न जाए काश यूं भी हो कि बिन मेरे सताए न बने ग़ैर फिर्ता है लिये यूं तिरे ख़त को कि अगर कोई पूछे कि यह क्या है तो छुपाए न बने इस नज़ाकत का बुरा हो वह भले हैं तो क्या हाथ आवें तो उंहें हाथ लगाए न बने कह सके कौन कि यह जल्वह-गरी किस की है पर्दह छोड़ा है वह उस ने कि उठाए न बने मौत की राह न देखूं कि बिन आए न रहे तुम को चाहूं कि न आओ तो बुलाए न बने बोझ वह सर से गिरा है कि उठाए न उठे काम वह आन पड़ा है कि बनाए न बने `इश्क़ पर ज़ोर नहीं है यह वह आतिश ग़ालिब कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई मेरे दुख की दवा करे कोई शरअ ओ आईन पर मदार सही ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई चाल जैसे कड़ी कमान का तीर दिल में ऐसे के जा करे कोई बात पर वाँ ज़बान कटती है वो कहें और सुना करे कोई बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई न सुनो गर बुरा कहे कोई न कहो गर बुरा करे कोई रोक लो गर ग़लत चले कोई बख़्श दो गर ख़ता करे कोई कौन है जो नहीं है हाजत-मंद किस की हाजत रवा करे कोई क्या किया ख़िज़्र ने सिकंदर से अब किसे रहनुमा करे कोई जब तवक़्क़ो ही उठ गई ग़ालिब क्यूँ किसी का गिला करे कोई
ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए ग़म का जोश है इक शम`अ है दलील-ए सहर सो ख़मोश है ने मुज़ह्दह-ए विसाल न नज़्ज़ारह-ए जमाल मुद्दत हुई कि आश्ती-ए चश्म-ओ-गोश है मैने किया है हुस्न-ए ख़्वुद-आरा को बे-हिजाब अय शौक़ हां इजाज़त-ए तस्लीम-ए होश है गौहर को `उक़्द-ए गर्दन-ए ख़ूबां में देख्ना क्या औज पर सितारह-ए गौहर-फ़रोश है दीदार बादह हौस्लह साक़ी निगाह मस्त बज़्म-ए ख़याल मै-कदह-ए बे-ख़रोश है अय ताज़ह-वारिदान-ए बिसात-ए हवा-ए दिल ज़िन्हार अगर तुम्हें हवस-ए नै-ओ-नोश है देखो मुझे जो दीदह-ए `इब्रत-निगाह हो मेरी सुनो जो गोश-ए नसीहत-नियोश है साक़ी ब जल्वह दुश्मन-ए ईमान-ओ-आगही मुत्रिब ब नग़्मह रह्ज़न-ए तम्कीन-ओ-होश है या शब को देख्ते थे कि हर गोशह-ए बिसात दामान-ए बाग़्बान-ओ-कफ़-ए गुल-फ़रोश है लुत्फ़-ए ख़िराम-ए साक़ी-ओ-ज़ौक़-ए सदा-ए चन्ग यह जन्नत-ए निगाह वह फ़िर्दौस-ए गोश है या सुब्ह-दम जो देखिये आ कर तो बज़्म में ने वह सुरूर-ओ-सोज़ न जोश-ओ-ख़रोश है दाग़-ए फ़िराक़-ए सुह्बत-ए शब की जलि हुई इक शम`अ रह गई है सो वह भी ख़ामोश है आते हैं ग़ैब से यह मज़ामीं ख़याल में ग़ालिब सरीर-ए ख़ामह नवा-ए सरोश है
दिल-ए नादां तुझे हुआ क्या है आखिर इस दर्द की दवा क्या है हम हैं मुश्ताक़ और वह बेज़ार या इलाही यह माजरा क्या है मैं भी मुंह में ज़बान रखता हूँ काश पूछो कि मुद्दा क्या है जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद फिर ये हंगामा-ए- ख़ुदा क्या है ये परी-चेहरा लोग कैसे हैं ग़मजा-ओ-`इशवा- ओ-अदा क्या है शिकन-ए-ज़ुल्फ़-ए-अम्बरी क्यों है निगह-ए-चश्म-ए-सुर्मा सा क्या है सबज़ा-ओ-गुल कहाँ से आये हैं अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद जो नहीं जानते वफ़ा क्या है हाँ भला कर तेरा भला होगा और दर्वेश की सदा क्या है जान तुम पर निसार करता हूँ मैं नहीं जानता दुआ क्या है मैंने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब' मुफ़्त हाथ आये तो बुरा क्या है
रोने से और् इश्क़ में बेबाक हो गए धोए गए हम ऐसे कि बस पाक हो गए सर्फ़-ए-बहा-ए-मै हुए आलात-ए-मैकशी थे ये ही दो हिसाब सो यों पाक हो गए रुसवा-ए-दहर गो हुए आवार्गी से तुम बारे तबीयतों के तो चालाक हो गए कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बेअसर पर्दे में गुल के लाख जिगर चाक हो गए पूछे है क्या वजूद-ओ-अदम अहल-ए-शौक़ का आप अपनी आग से ख़स-ओ-ख़ाशाक हो गए करने गये थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला की एक् ही निगाह कि बस ख़ाक हो गए इस रंग से उठाई कल उसने 'असद' की नाश दुश्मन भी जिस को देख के ग़मनाक हो गए
वह फ़िराक़ और वह विसाल कहां वह शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहां फ़ुर्सत-ए कारोबार-ए शौक़ किसे ज़ौक़-ए नज़्ज़ारह-ए जमाल कहां दिल तो दिल वह दिमाग़ भी न रहा शोर-ए सौदा-ए ख़त्त-ओ-ख़ाल कहां थी वह इक शख़्स के तसव्वुर से अब वह र`नाई-ए ख़याल कहां ऐसा आसां नहीं लहू रोना दिल में ताक़त जिगर में हाल कहां हम से छूटा क़िमार-ख़ानह-ए `इश्क़ वां जो जावें गिरिह में माल कहां फ़िक्र-ए दुन्या में सर खपाता हूं मैं कहां और यह वबाल कहां मुज़्महिल हो गए क़ुवा ग़ालिब वह `अनासिर में इ`तिदाल कहां
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया दिल जिगर तश्ना-ए-फ़रियाद आया दम लिया था न क़यामत ने हनोज़ फिर तेरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया सादगी हाये तमन्ना यानी फिर वो नैइरंग-ए-नज़र याद आया उज़्र-ए-वामाँदगी अए हस्रत-ए-दिल नाला करता था जिगर याद आया ज़िन्दगी यूँ भी गुज़र ही जाती क्यों तेरा राहगुज़र याद आया क्या ही रिज़वान से लड़ाई होगी घर तेरा ख़ुल्द में गर याद आया आह वो जुर्रत-ए-फ़रियाद कहाँ दिल से तंग आके जिगर याद आया फिर तेरे कूचे को जाता है ख़्याल दिल-ए-ग़ुमगश्ता मगर याद् आया कोई वीरानी-सी-वीराँई है दश्त को देख के घर याद आया मैंने मजनूँ पे लड़कपन में 'असद' संग उठाया था के सर याद आया
फिर कुछ इस दिल् को बेक़रारी है सीना ज़ोया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है फिर जिगर खोदने लगा नाख़ून आमद-ए-फ़स्ल-ए-लालाकारी है क़िब्ला-ए-मक़्सद-ए-निगाह-ए-नियाज़ फिर वही पर्दा-ए-अम्मारी है चश्म-ए-दल्लल-ए-जिन्स-ए-रुसवाई दिल ख़रीदार-ए-ज़ौक़-ए-ख़्बारी है वही सदरंग नाला फ़र्साई वही सदगूना अश्क़बारी है दिल हवा-ए-ख़िराम-ए-नाज़ से फिर महश्रिस्ताँ-ए-बेक़रारी है जल्वा फिर अर्ज़-ए-नाज़ करता है रोज़-ए-बाज़ार-ए-जाँसुपारी है फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं फिर वही ज़िन्दगी हमारी है
आईना क्यूँ न दूँ के तमाशा कहें जिसे ऐसा कहाँ से लाऊँ के तुझसा कहें जिसे हसरत ने ला रखा तेरी बज़्म-ए-ख़्याल में गुलदस्ता-ए-निगाह सुवेदा कहें जिसे फूँका है किसने गोशे मुहब्बत में ऐ ख़ुदा अफ़सून-ए-इन्तज़ार तमन्ना कहें जिसे सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी से डलिये वो एक मुश्त-ए-ख़ाक के सहरा कहें जिसे है चश्म-ए-तर में हसरत-ए-दीदार से निहाँ शौक़-ए-इनाँ गुसेख़ता दरिया कहें जिसे दरकार है शिगुफ़्तन-ए-गुल हाये ऐश को सुबह-ए-बहार पंबा-ए-मीना कहें जिसे 'ग़ालिब' बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे ऐसा भी कोई है के सब अच्छा कहें जिसे
दिया है दिल अगर उस को, बशर है क्या कहिये हुआ रक़ीब तो हो, नामाबर है, क्या कहिये ये ज़िद्, कि आज न आवे और आये बिन न रहे क़ज़ा से शिकवा हमें किस क़दर है, क्या कहिये रहे है यूँ गह-ओ-बेगह के कू-ए-दोस्त को अब अगर न कहिये कि दुश्मन का घर है, क्या कहिये ज़िह-ए-करिश्म के यूँ दे रखा है हमको फ़रेब कि बिन कहे ही उंहें सब ख़बर है, क्या कहिये समझ के करते हैं बाज़ार में वो पुर्सिश-ए-हाल कि ये कहे कि सर-ए-रहगुज़र है, क्या कहिये तुम्हें नहीं है सर-ए-रिश्ता-ए-वफ़ा का ख़्याल हमारे हाथ में कुछ है, मगर है क्या कहिये उंहें सवाल पे ज़ओम-ए-जुनूँ है, क्यूँ लड़िये हमें जवाब से क़तअ-ए-नज़र है, क्या कहिये हसद सज़ा-ए-कमाल-ए-सुख़न है, क्या कीजे सितम, बहा-ए-मतअ-ए-हुनर है, क्या कहिये कहा है किसने कि 'ग़ालिब' बुरा नहीं लेकिन सिवाय इसके कि आशुफ़्तासर है क्या कहिये
आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है ताक़ते-बेदादे-इन्तज़ार नहीं है देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले नश्शा बअन्दाज़-ए-ख़ुमार नहीं है गिरिया निकाले है तेरी बज़्म से मुझ को हाये! कि रोने पे इख़्तियार नहीं है हम से अबस है गुमान-ए-रन्जिश-ए-ख़ातिर ख़ाक में उश्शाक़ की ग़ुब्बार नहीं है दिल से उठा लुत्फे-जल्वाहा-ए-म'आनी ग़ैर-ए-गुल आईना-ए-बहार नहीं है क़त्ल का मेरे किया है अहद तो बारे वाये! अगर अहद उस्तवार नहीं है तूने क़सम मैकशी की खाई है 'ग़ालिब' तेरी क़सम का कुछ ऐतबार नहीं है
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