अफ़सोस कि दनदां का किया रिज़क़ फ़लक ने जिन लोगों की थी दर-ख़ुर-ए-अक़्द-ए-गुहर अंगुश्त काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना ख़ाली मुझे दिखला के ब-वक़्त-ए-सफ़र अंगुश्त लिखता हूं असद सोज़िश-ए दिल से सुख़न-ए गरम ता रख न सके कोई मिरे हरफ़ पर अनगुशत
आमद-ए सैलाब-ए तूफ़ान-ए सदाए आब है नक़श-ए-पा जो कान में रखता है उंगली जादह से बज़्म-ए-मय वहशत-कदा है किस की चश्म-ए-मस्त का शीशे में नब्ज़-ए-परी पिन्हाँ है मौज-ए-बादा से --- देखता हूं वहशत-ए शौक़-ए-ख़रोश आमादा से फ़ाल-ए रुसवाई सिरिशक-ए सर ब सहरा-दादा से दाम गर सबज़े में पिनहां कीजिये ताऊस हो जोश-ए नैरनग-ए बहार-ए-अरज़-ए सहरा-दादा से ख़ेमह-ए लैला सियाह-ओ-ख़ानह-ए मजनूं ख़राब जोश-ए वीरानी है इश्क़-ए-दाग़-ए-बेरूं-दादा से बज़म-ए हसती वह तमाशा है कि जिस को हम असद देखते हैं चशम-ए अज़ ख़वाब-ए अदम नकशादा से
क्या तंग हम सितमज़दगां का जहान है जिस में कि एक बैज़ा-ए-मोर आसमान है है कायनात को हरकत तेरे ज़ौक़ से परतव से आफ़ताब के ज़ररे में जान है हालांकिह है यह सीली-ए ख़ारा से लालह रनग ग़ाफ़िल को मेरे शीशे पह मै का गुमान है की उस ने गरम सीनह-ए अहल-ए हवस में जा आवे न कयूं पसनद कि ठनडा मकान है क्या ख़ूब तुम ने ग़ैर को बोसह नहीं दिया बस चुप रहो हमारे भी मुंह में ज़बान है बैठा है जो कि सायह-ए दीवार-ए यार में फ़रमां-रवा-ए किशवर-ए हिनदूसतान है हस्ती का ए'तिबार भी ग़म ने मिटा दिया किस से कहूं कि दाग़ जिगर का निशान है है बारे ए'तिमाद-ए वफ़ा-दारी इस क़दर ग़ालिब हम इस में ख़वुश हैं कि ना-मिहरबान है
कहते तो हो तुम सब कि बुत-ए-ग़ालिया-मू आए यक मरतबा घबरा के कहो कोई कि वो आए हूँ कशमकश-ए-नज़ा में हाँ जज़्ब-ए-मोहब्बत कुछ कह न सकूँ पर वो मिरे पूछने को आए है साइक़ा-ओ-शोला-ओ-सीमाब का आलम आना ही समझ में मिरी आता नहीं गो आए ज़ाहिर है कि घबरा के न भागेंगे नकीरें हां मुंह से मगर बादा-ए-दोशीना की बो आए जललाद से डरते हैं न वाइज़ से झगड़ते हम समझे हुए हैं उसे जिस भेस में जो आए हां अहल-ए-तलब कौन सुने ताना-ए-ना-याफ़त देखा कि वह मिलता नहीं अपने ही को खो आए अपना नहीं वह शेवह कि आराम से बैठें उस दर पह नहीं बार तो क`बे ही को हो आए की हम-नफ़सों ने असर-ए गिरयह में तक़रीर अचछे रहे आप उस से मगर मुझ को डुबो आए उस अनजुमन-ए नाज़ की कया बात है ग़ालिब हम भी गए वां और तिरी तक़दीर को रो आए
क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना तअज्जुब से वह बोला यूँ भी होता है ज़माने में दिल-ए-नाज़ुक पे उस के रहम आता है मुझे न कर सरगर्म उस काफ़िर को उल्फ़त आज़माने में
कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है बर्क़-ए-ख़िर्मन-ए-राहत ख़ून-ए-गर्म-ए-दहक़ाँ है ग़ुंचा ता शगुफ़्तन-हा बर्ग-ए-आफ़ियत मालूम बा-वजूद-ए-दिल-जमई ख़्वाब-ए-गुल परेशाँ है हम से रंज-ए-बेताबी किस तरह उठाया जाए दाग़ पुश्त-ए-दस्त-ए-अज्ज़ शोला ख़स-ब-दंदाँ है इश्क़ के तग़ाफ़ुल से हर्ज़ा-गर्द है आलम रू-ए-शश-जिहत-आफ़ाक़ पुश्त-ए-चश्म-ए-ज़िन्दाँ है
कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइए बे-तकल्लुफ़ ऐ शरार-ए-जस्ता क्या हो जाइए बैज़ा-आसा नंग-ए-बाल-ओ-पर है ये कुंज-ए-क़फ़स अज़-सर-ए-नौ ज़िंदगी हो गर रिहा हो जाइए वुसअत-ए-मशरब नियाज़-ए-कुल्फ़त-ए-वहशत असद यक-बयाबाँ साया-ए-बाल-ए-हुमा हो जाइए
गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग यानी बग़ैर-ए-यक-दिल-ए-बे-मुद्दआ न माँग आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद मुझ से मिरे गुनह का हिसाब ऐ ख़ुदा न माँग अय आरज़ू शहीद-ए वफ़ा ख़ूं-बहा न माँग जुज़ बहर-ए दसत-ओ-बाज़ू-ए क़ातिल दुआ न माँग बर-हम है बज़म-ए ग़ुनचह ब यक जुनबिश-ए नशात काशानह बसकि तनग है ग़ाफ़िल हवा न माँग मैं दूर गरद-ए-अरज़-ए-रुसूम-ए-नियाज़ हूँ दुशमन समझ वले निगह-ए आशना न माँग यक-बख़त औज नज़र-ए-सुबुक-बारी-ए असद सर पर वबाल-ए सायह-ए बाल-ए-हुमा न माँग
गरम-ए फ़रयाद रखा शकल-ए निहाली ने मुझे तब अमां हिजर में दी बरद-ए लियाली ने मुझे निसयह-ओ-नक़द-ए दो-आलम की हक़ीक़त म'लूम ले लिया मुझ से मिरी हिममत-ए-आली ने मुझे कसरत-आराई-ए वहदत है परसतारी-ए-वहम कर दिया काफ़िर इन असनाम-ए ख़याली ने मुझे हवस-ए-गुल के तसववुर में भी खटका न रहा अजब आराम दिया बे-पर-ओ-बाली ने मुझे -- ज़िंदगी में भी रहा ज़ौक़-ए-फ़ना का मारा नशशह बख़शा ग़ज़ब उस साग़र-ए ख़ाली ने मुझे बसकि थी फ़सल-ए ख़िज़ान-ए-चमनिसतान-ए-सुख़न रनग-ए शुहरत न दिया ताज़ह-ख़याली ने मुझे जलवा-ए-ख़वुर से फ़ना होती है शबनम ग़ालिब खो दिया सतवत-ए असमा-ए-जलाली ने मुझे
गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज क़ुमरी का तौक़ हल्क़ा-ए-बैरून-ए-दर है आज आता है एक पारा-ए-दिल हर फ़ुग़ाँ के साथ तार-ए-नफ़स कमंद-ए-शिकार-ए-असर है आज ऐ आफ़ियत किनारा कर ऐ इंतिज़ाम चल सैलाब-ए-गिर्या दर पे दीवार-ओ-दर है आज
चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है सुर्मा तो कहवे कि दूद-ए-शोला-ए-आवाज़ है पैकर-ए-उश्शाक़ साज़-ए-ताला-ए-ना-साज़ है नाला गोया गर्दिश-ए-सैय्यारा की आवाज़ है दसत-गाह-ए दीदह-ए ख़ूं-बार-ए मजनूं देखना यक-बयाबां जलवह-ए गुल फ़रश-ए-पा-अंदाज़ है -- चशम-ए ख़ूबां मै-फ़रोश-ए-नशशह-ज़ार-ए-नाज़ है सुरमह गोया मौज-ए दूद-ए शु`लह-ए आवाज़ है है सरीर-ए ख़ामह रेज़िशहा-ए इसतिक़बाल-ए-नाज़ नामह ख़वुद पैग़ाम को बाल-ओ-पर-ए परवाज़ है सर-नविशत-ए इज़तिराब-अनजामी-ए उलफ़त न पूछ नाल-ए ख़ामह ख़ार-ख़ार-ए ख़ातिर-ए आग़ाज़ है शोख़ी-ए इज़हार ग़ैर अज़ वहशत-ए मजनूं नहीं लैला-ए-मानी असद महमिल-निशीन-ए-राज़ है
जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई मुश्किल कि तुझ से राह-ए-सुख़न वा करे कोई आलम ग़ुबार-ए-वहशत-ए-मजनूँ है सर-ब-सर कब तक ख़याल-ए-तुर्रा-ए-लैला करे कोई अफ़सुरदगी नहीं तरब-इनशा-ए इलतिफ़ात हां दरद बन के दिल में मगर जा करे कोई रोने से अय नदीम मलामत न कर मुझे आख़िर कभी तो `उक़दह-ए दिल वा करे कोई चाक-ए-जिगर से जब रह-ए पुरसिश न वा हुई कया फ़ाइदा कि जेब को रुसवा करे कोई लख़त-ए जिगर से है रग-ए हर ख़ार शाख़-ए-गुल ता चनद बाग़-बानी-ए सहरा करे कोई ना-कामी-ए निगाह है बरक़-ए नज़ारा-सोज़ तू वह नहीं कि तुझ को तमाशा करे कोई हर सनग-ओ-ख़िशत है सदफ़-ए गौहर-ए-शिकस्त नुक़सां नहीं जुनूं से जो सौदा करे कोई सर-बर हुई न व`दह-ए सबर-आज़मा से `उमर फ़ुरसत कहां कि तेरी तमनना करे कोई है वहशत-ए तबी`अत-ए ईजाद यास-ख़ेज़ यह दरद वह नहीं कि न पैदा करे कोई बे-कारी-ए-जुनूं को है सर पीटने का शग़ल जब हाथ टूट जाएं तो फिर कया करे कोई हुसन-ए फ़ुरोग़-ए शम-ए सुख़न दूर है असद पहले दिल-ए-गुदाख़ता पैदा करे कोई -- वहशत कहां कि बे-ख़वुदी इनशा करे कोई हसती को लफ़ज़-ए-मानी-ए-अनक़ा करे कोई जो कुछ है महव-ए-शोख़ी-ए-अबरू-ए यार है आंखों को रख के ताक़ पह देखा करे कोई अरज़-ए-सिरिशक पर है फ़ज़ा-ए ज़माना तंग सहरा कहां कि दावत-ए-दरया करे कोई वह शोख़ अपने हुस्न पह मग़रूर है असद दिखला के उस को आइना तोड़ा करे कोई
ज़-बस-कि मश्क़-ए-तमाशा जुनूँ-अलामत है कुशाद-ओ-बस्त-ए-मिज़्हा सीली-ए-नदामत है न जानूँ क्यूँकि मिटे दाग़-ए-तान-ए-बद-अहदी तुझे कि आइना भी वार्ता-ए-मलामत है ब-पेच-ओ-ताब-ए-हवस सिल्क-ए-आफ़ियत मत तोड़ निगाह-ए-अज्ज़ सर-ए-रिश्ता-ए-सलामत है वफ़ा मुक़ाबिल-ओ-दावा-ए-इश्क़ बे-बुनियाद जुनूँ-ए-साख़्ता ओ फ़स्ल-ए-गुल क़यामत है
ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद वगरना हम तो तवक़्क़ो ज़्यादा रखते हैं तन-ए-ब-बंद-ए-हवस दर नदादा रखते हैं दिल-ए-ज़-कार-ए-जहाँ ऊफ़्तादा रखते हैं तमीज़-ए-ज़िश्ती-ओ-नेकी में लाख बातें हैं ब-अक्स-ए-आइना यक-फ़र्द-ए-सादा रखते हैं ब-रंग-ए-साया हमें बंदगी में है तस्लीम कि दाग़-ए-दिल ब-जाबीन-ए-कुशादा रखते हैं ब-ज़ाहिदाँ रग-ए-गर्दन है रिश्ता-ए-ज़ुन्नार सर-ए-ब-पा-ए-बुत-ए-ना-निहादा रखते हैं मुआफ़-ए-बे-हूदा-गोई हैं नासेहान-ए-अज़ीज़ दिल-ए-ब-दस्त-ए-निगारे नदादा रखते हैं ब-रंग-ए-सब्ज़ा अज़ीज़ान-ए-बद-ज़बान यक-दस्त हज़ार तेग़-ए-ब-ज़हर-आब-दादा रखते हैं अदब ने सौंपी हमें सुर्मा-साइ-ए-हैरत ज़-बन-ए-बस्ता-ओ-चश्म-ए-कुशादा रखते हैं
जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी गरेबाँ-चाक का हक़ हो गया है मेरी गर्दन पर बा-रंग-ए-कागज़-ए-आतिश-ज़दा नै-रंग-ए-बेताबी हज़ार आईना दिल बाँधे है बाल-ए-यक-तपीदन पर फ़लक से हम को ऐश-ए-रफ़्ता का क्या क्या तक़ाज़ा है मता-ए-बुर्दा को समझे हुए हैं क़र्ज़ रहज़न पर हम और वो बे-सबब रंज-आशना दुश्मन कि रखता है शुआ-ए-मेहर से तोहमत निगह की चश्म-ए-रौज़न पर फ़ना को सौंप गर मुश्ताक़ है अपनी हक़ीक़त का फ़रोग़-ए-ताला-ए-ख़ाशाक है मौक़ूफ़ गुलख़न पर असद बिस्मिल है किस अंदाज़ का क़ातिल से कहता है कि मश्क़-ए-नाज़ कर ख़ून-ए-दो-आलम मेरी गर्दन पर फ़ुसून-ए-यक-दिली है लज़्ज़त-ए-बेदाद दुश्मन पर कि वजह-ए-बर्क़ ज्यूँ परवाना बाल-अफ़्शाँ है ख़िर्मन पर तकल्लुफ़ ख़ार-ख़ार-ए-इल्तिमास-ए-बे-क़ारारी है कि रिश्ता बाँधता है पैरहन अंगुश्त-ए-सोज़न पर
तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है मिरा सर रंज-ए-बालीं है मिरा तन बार-ए-बिस्तर है सरिश्क-ए-सर ब-सहरा दादा नूर-उल-ऐन-ए-दामन है दिल-ए-बे-दस्त-ओ-पा उफ़्तादा बर-ख़ुरदार-ए-बिस्तर है ख़ुशा इक़बाल-ए-रंजूरी अयादत को तुम आए हो फ़रोग-ए-शम-ए-बालीं ताल-ए-बेदार-ए-बिस्तर है ब-तूफ़ाँ-गाह-ए-जोश-ए-इज़्तिराब-ए-शाम-ए-तन्हाई शुआ-ए-आफ़्ताब-ए-सुब्ह-ए-महशर तार-ए-बिस्तर है अभी आती है बू बालिश से उस की ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं की हमारी दीद को ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा आर-ए-बिस्तर है कहूँ क्या दिल की क्या हालत है हिज्र-ए-यार में ग़ालिब कि बेताबी से हर-यक तार-ए-बिस्तर ख़ार-ए-बिस्तर है
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