ता हम को शिकायत की भी बाक़ी न रहे जा सुन लेते हैं गो ज़िक्र हमारा नहीं करते ग़ालिब तिरा अहवाल सुना देंगे हम उन को वो सुन के बुला लें ये इजारा नहीं करते
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो हज़र करो मिरे दिल से कि उस में आग दबी है दिला ये दर्द ओ अलम भी तो मुग़्तनिम है कि आख़िर न गिर्या-ए-सहरी है न आह-ए-नीम-शबी है
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो हज़र करो मिरे दिल से कि उस में आग दबी है दिला ये दर्द ओ अलम भी तो मुग़्तनिम है कि आख़िर न गिर्या-ए-सहरी है न आह-ए-नीम-शबी है
दिल लगा कर लग गया उन को भी तन्हा बैठना बारे अपनी बेकसी की हम ने पाई दाद याँ हैं ज़वाल-आमादा अजज़ा आफ़रीनश के तमाम मेहर-ए-गर्दूं है चराग़-ए-रहगुज़ार-ए-बाद याँ
देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे कर गई वाबस्ता-ए-तन मेरी उर्यानी मुझे बन गया तेग़-ए-निगाह-ए-यार का संग-ए-फ़साँ मरहबा मैं क्या मुबारक है गिराँ-जानी मुझे क्यूँ न हो बे-इल्तिफ़ाती उस की ख़ातिर जम्अ है जानता है महव-ए-पुर्सिश-हा-ए-पिन्हानी मुझे मेरे ग़म-ख़ाने की क़िस्मत जब रक़म होने लगी लिख दिया मिन-जुमला-ए-असबाब-ए-वीरानी मुझे बद-गुमाँ होता है वो काफ़िर न होता काश के इस क़दर ज़ौक़-ए-नवा-ए-मुर्ग़-ए-बुस्तानी मुझे वाए वाँ भी शोर-ए-महशर ने न दम लेने दिया ले गया था गोर में ज़ौक़-ए-तन-आसानी मुझे वादा आने का वफ़ा कीजे ये क्या अंदाज़ है तुम ने क्यूँ सौंपी है मेरे घर की दरबानी मुझे हाँ नशात-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी वाह वाह फिर हुआ है ताज़ा सौदा-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी मुझे दी मिरे भाई को हक़ ने अज़-सर-ए-नौ ज़िंदगी मीरज़ा यूसुफ़ है ग़ालिब यूसुफ़-ए-सानी मुझे
नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच अगर शराब नहीं इन्तज़ार-ए-साग़र खींच कमाल-ए-गरमी-ए सई-ए-तलाश-ए-दीद न पूछ ब रंग-ए-ख़ार मिरे आइने से जौहर खींच तुझे बहाना-ए-राहत है इन्तज़ार ऐ दिल किया है किस ने इशारा कि नाज़-ए-बिस्तर खींच तिरी तरफ़ है ब हसरत नज़ारा-ए-नरगिस ब कोरी-ए-दिल-ओ-चश्म-ए रक़ीब साग़र खींच ब नीम-ग़मज़ा अदा कर हक़-ए वदीअत-ए-नाज़ नियाम-ए --परदा-ए ज़ख्म-ए-जिगर से खंज़र खींच मिरे क़ददा में है सहबा-ए-आतिश-ए-पिनहां ब रू-ए सुफ़रा कबाब-ए-दिल-ए-समन्दर खींच
न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से लगावे ख़ाना-ए-आईना में रू-ए-निगार आतिश फ़रोग़-ए-हुस्न से होती है हल्ल-ए-मुश्किल-ए-आशिक़ न निकलते शम्अ के पा से निकाले गर न ख़ार आतिश
नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब शीशा-ए-मय सर्व-ए-सब्ज़-ए-जू-ए-बार-ए-नग़्मा है हम-नशीं मत कह कि बरहम कर न बज़्म-ए-ऐश-ए-दोस्त वाँ तो मेरे नाले को भी ए'तिबार-ए-नग़्मा है
पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वह मेरे कंधा भी कहारों को बदलने नहीं देते
फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर है दाग़-ए-इश्क़ ज़ीनत-ए-जेब-ए-कफ़न हुनूज़ है नाज़-ए-मुफ़्लिसाँ ज़र-ए-अज़-दस्त-रफ़्ता पर हूँ गुल-फ़रोश-ए-शोख़ी-ए-दाग़-ए-कोहन हुनूज़ मै-ख़ाना-ए-जिगर में यहाँ ख़ाक भी नहीं ख़म्याज़ा खींचे है बुत-ए-बे-दाद-फ़न हुनूज़ जूँ जादा सर-ब-कू-ए-तमन्ना-ए-बे-दिली ज़ंजीर-ए-पा है रिश्ता-ए-हुब्बुल-वतन हुनूज़
है बज़्म-ए-बुताँ में सुख़न आज़ुर्दा-लबों से तंग आए हैं हम ऐसे ख़ुशामद-तलबों से है दौर-ए-क़दह वजह-ए-परेशानी-ए-सहबा यक-बार लगा दो ख़ुम-ए-मय मेरे लबों से रिंदाना-ए-दर-ए-मई-कदा गुस्ताख़ हैं ज़ाहिद ज़िन्हार न होना तरफ़ उन बे-अदबों से बेदाद-ए-वफ़ा देख कि जाती रही आख़िर हर-चंद मिरी जान को था रब्त लबों से
ब-नाला हासिल-ए-दिल-बस्तगी फ़राहम कर मता-ए-ख़ाना-ए-ज़ंजीर जुज़ सदा मालूम ब-क़द्र-ए-हौसला-ए-इश्क़ जल्वा-रेज़ी है वगरना ख़ाना-ए-आईना की फ़ज़ा मालूम 'असद' फ़रेफ्ता-ए-इंतिख़ाब-ए-तर्ज़-ए-जफ़ा वगरना दिलबरी-ए-वादा-ए-वफ़ा मालूम
बर्शकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए खिल गई मानिंद-ए-गुल सौ जा से दीवार-ए-चमन उल्फ़त-ए-गुल से ग़लत है दावा-ए-वारस्तगी सर्व है बा-वस्फ़-ए-आज़ादी गिरफ़्तार-ए-चमन
बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश मजबूर याँ तलक हुए ऐ इख़्तियार हैफ़ जलता है दिल कि क्यूँ न हम इक बार जल गए ऐ ना-तमामी-ए-नफ़स-ए-शोला-बार हैफ़
मस्ती ब-ज़ौक़-ए-ग़फ़लत-ए-साक़ी हलाक है मौज-ए-शराब यक-मिज़ा-ए-ख़्वाब-नाक है जुज़ ज़ख्म-ए-तेग़-ए-नाज़ नहीं दिल में आरज़ू जेब-ए-ख़याल भी तिरे हाथों से चाक है जोश-ए-जुनूँ से कुछ नज़र आता नहीं असद सहरा हमारी आँख में यक-मुश्त-ए-ख़ाक है
मुँद गईं खोलते ही खोलते आँखें ग़ालिब यार लाए मिरी बालीं पे उसे पर किस वक़्त
मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर रख ली मिरे ख़ुदा ने मिरी बेकसी की शर्म वह हल्क़ा-हा-ए-ज़ुल्फ़ कमीं में हैं या ख़ुदा रख लीजो मेरे दावा-ए-वारस्तगी की शर्म
रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है इस साल के हिसाब को बर्क़ आफ़्ताब है मीना-ए-मय है सर्व नशात-ए-बहार से बाल-ए-तदरव जल्वा-ए-मौज-ए-शराब है ज़ख़्मी हुआ है पाश्ना पा-ए-सबात का ने भागने की गूँ न इक़ामत की ताब है जादाद-ए-बादा-नोशी-ए-रिन्दाँ है शश जिहत ग़ाफ़िल गुमाँ करे है कि गीती ख़राब है नज़्ज़ारा क्या हरीफ़ हो उस बर्क़-ए-हुस्न का जोश-ए-बहार जल्वे को जिस के नक़ाब है मैं ना-मुराद दिल की तसल्ली को क्या करूँ माना कि तेरी रुख़ से निगह कामयाब है गुज़रा असद मसर्रत-ए-पैग़ाम-ए-यार से क़ासिद पे मुझ को रश्क-ए-सवाल-ओ-जवाब है
लब-ए-ईसा की जुम्बिश करती है गहवारा-जम्बानी क़यामत कुश्त-ए-लाल-ए-बुताँ का ख़्वाब-ए-संगीं है बयाबान-ए-फ़ना है बाद-ए-सहरा-ए-तलब ग़ालिब पसीना-तौसन-ए-हिम्मत तो सैल-ए-ख़ाना-ए-जीं है
लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले ग़ालिब ये ख़ौफ़ है कि कहाँ से अदा करूँ ख़ुश वहशते कि अर्ज़-ए-जुनून-ए-फ़ना करूँ जूँ गर्द-ए-राह जामा-ए-हस्ती क़बा करूँ आ ऐ बहार-ए-नाज़ कि तेरे ख़िराम से दस्तार गिर्द-ए-शाख़-ए-गुल-ए-नक़्श-ए-पा करूँ ख़ुश उफ़्तादगी कि ब-सहरा-ए-इन्तिज़ार जूँ जादा गर्द-ए-रह से निगह सुर्मा-सा करूँ सब्र और ये अदा कि दिल आवे असीर-ए-चाक दर्द और ये कमीं कि रह-ए-नाला वा करूँ वह बे-दिमाग़-ए-मिन्नत-ए-इक़बाल हूँ कि मैं वहशत ब-दाग़-ए-साया-ए-बाल-ए-हुमा करूँ वह इल्तिमास-ए-लज्ज़त-ए-बे-दाद हूँ कि मैं तेग़-ए-सितम को पुश्त-ए-ख़म-ए-इल्तिजा करूँ वह राज़-ए-नाला हूँ कि ब-शरह-ए-निगाह-ए-अज्ज़ अफ़्शाँ ग़ुबार-ए-सुर्मा से फ़र्द-ए-सदा करूँ
वाँ उस को हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार यानी ये मेरी आह की तासीर से न हो अपने को देखता नहीं ज़ौक़-ए-सितम को देख आईना ता-कि दीदा-ए-नख़चीरर से न हो
वुसअत-ए-सई-ए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक गुज़रे है आबला-पा अब्र-ए-गुहर-बार हुनूज़ यक-क़लम काग़ज़-ए-आतिश-ज़दा है सफ़्हा-ए-दश्त नक़्श-ए-पा में है तब-ए-गर्मी-ए-रफ़्तार हुनूज़
सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर तग़य्युर आब-ए-बर-जा-मांदा का पाता है रंग आख़िर न की सामान-ए-ऐश-ओ-जाह ने तदबीर वहशत की हुआ जाम-ए-ज़मुर्रद भी मुझे दाग़-ए-पलंग आख़िर
सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं तकल्लुफ़ बरतरफ़ मिल जाएगा तुझ सा रक़ीब आख़िर
सियाही जैसे गिर जावे दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर मिरी क़िस्मत में यूँ तस्वीर है शब-हा-ए-हिज्राँ की
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़ दुआ क़ुबूल हो या रब कि उम्र-ए-ख़िज़्र दराज़ न हो ब-हर्ज़ा बयाबाँ-नवर्द-ए-वहम-ए-वुजूद हुनूज़ तेरे तसव्वुर में है नशेब-ओ-फ़राज़ विसाल जल्वा तमाशा है पर दिमाग़ कहाँ कि दीजे आइना-ए-इन्तिज़ार को पर्दाज़ हर एक ज़र्रा-ए-आशिक़ है आफ़ताब-परस्त गई न ख़ाक हुए पर हवा-ए-जल्वा-ए-नाज़ न पूछ वुसअत-ए-मै-ख़ाना-ए-जुनूँ ग़ालिब जहाँ ये कासा-ए-गर्दूं है एक ख़ाक-अंदाज़ फ़रेब-ए-सनअत-ए-ईजाद का तमाशा देख निगाह अक्स-फ़रोश-ओ-ख़याल-ए-आइना-साज़ ज़-बस-कि जल्वा-ए-सय्याद हैरत-आरा है उड़ी है सफ़्हा-ए-ख़ातिर से सूरत-ए-परवाज़ हुजूम-ए-फ़िक्र से दिल मिस्ल-ए-मौज लर्ज़ां है कि शीशा नाज़ुक ओ सहबा है आब-गीन-गुदा असद से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ वो मअनी है कि खींचिए पर-ए-ताइर से सूरत-ए-परवाज़
हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी दिल जोश-ए-गिर्या में है डूबी हुई असामी उस शम्अ की तरह से जिस को कोई बुझा दे मैं भी जले-हुओं में हूँ दाग़-ए-ना-तमामी
हुज़ूर-ए-शाह में अहल-ए सुख़न की आज़माइश है चमन में ख़ुश-नवायान-ए-चमन की आज़माइश है क़द-ओ-गेसू में क़ैस-ओ-कोहकन की आज़माइश है जहां हम हैं वहां दार-ओ-रसन की आज़माइश है करेंगे कोहकन के हौसले का इमतिहां आख़िर अभी उस ख़स्ता के नेरवे-तन की आज़माइश है नसीम-ए मिसर को क्या पीर-ए-कनआं की हवा-ख़वाही उसे यूसुफ़ की बू-ए-पैरहन की आज़माइश है वह आया बज़्म में देखो न कहयो फिर कि ग़ाफ़िल थे शिकेब-ओ-सबर-ए-अहल-ए-अंजुमन की आज़माइश है रहे दिल ही में तीर अच्छा जिगर के पार हो बेहतर ग़रज़ शुस्त-ए-बुत-ए-नावक-फ़गन की आज़माइश है नहीं कुछ सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार के फंदे में गीराई वफ़ादारी में शैख़-ओ-बरहमन की आज़माइश है पड़ा रह ऐ दिल-ए-वाबस्ता बेताबी से क्या हासिल मगर फिर ताब-ए-ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन की आज़माइश है रग ओ पै में जब उतरे ज़हर-ए-ग़म तब देखिए क्या हो अभी तो तल्ख़ी-ए-काम-ओ-दहन की आज़माइश है वो आवेंगे मिरे घर वादा कैसा देखना ग़ालिब नए फ़ित्नों में अब चर्ख़-ए-कुहन की आज़माइश है
हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है ख़मोशी रेशा-ए-सद-नीस्ताँ से ख़स-ब-दंदाँ है तकल्लुफ़-बर-तरफ़ है जाँ-सिताँ-तर लुत्फ़-ए-बद-ख़ूयाँ निगाह-ए-बे-हिजाब-ए-नाज़ तेग़-ए-तेज़-ए-उर्यां है हुई यह कसरत-ए ग़म से तलफ़ कैफ़िययत-ए शादी कि सुबह-ए-ईद मुझ को बद-तर अज़ चाक-ए गरेबां है दिल ओ दीं नक़्द ला साक़ी से गर सौदा किया चाहे कि उस बाज़ार में साग़र माता-ए-दस्त-गर्दां है ग़म आग़ोश-ए-बला में परवरिश देता है आशिक़ को चराग़-ए-रौशन अपना क़ुल्ज़ुम-ए-सरसर का मर्जां है तकल्लुफ़ साज़-ए-रुस्वाई है ग़ाफ़िल शर्म-ए-रानाई दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता दर दस्त-ए-हिना-आलूदा उर्यां है असद जमइयत-ए-दिल दर-किनार-ए-बे-ख़ुदी ख़ुश-तर दो-आलम आगही सामान-ए-यक-ख़्वाब-ए-परेशाँ है
हुस्न-ए-बे-परवा ख़रीदार-ए-माता-ए-जल्वा है आइना ज़ानू-ए-फ़िक्र-ए-इख़्तिरा-ए-जल्वा है ता-कुजा ऐ आगही रंग-ए-तमाशा बाख़्तन चश्म-ए-वा-गर्दीदा आग़ोश-ए-विदा-ए-जल्वा है
नक़्श फ़र्यादी है किस की शोख़ी-ए तह्रीर का काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर-ए तस्वीर का काव-काव-ए सख़्त-जानीहा-ए तन्हाई न पूछ सुब्ह करना शाम का लाना है जू-ए शीर का जज़्बह-ए बे-इख़्तियार-ए शौक़ देखा चाहिये सीनह-ए शम्शीर से बाहर है दम शम्शीर का आगही दाम-ए शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए मुद्द`आ `अन्क़ा है अप्ने `आलम-ए तक़्रीर का बसकि हूं ग़ालिब असीरी में भी आतिश ज़ेर-ए पा मू-ए आतिश-दीदह है हल्क़ह मिरी ज़न्जीर का
हुस्न-ए-माह गरचे बा-हँगाम-ए-कमाल अच्छा है, उससे मेरा मह-ए-ख़ुरशीद जमाल अच्छा है बोसा देते नहीं और दिल है हर लह्ज़ा निगाह, जी में कहते हैं कि मु़फ्त आए तो माल अच्छा है और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया, साग़र-ए-जाम से मेरा जाम-ए-सि़फाल अच्छा है बेतलब दें तो मज़ा उसमें सिवा मिलता है, वो गदा जिसको न हो ख़ू-ए-सवाल अच्छा है हम-सुख़न तेशे ने फ़र्हाद को शीरीं से किया, जिस तरह का कि किसी में हो कमाल अच्छा है क़तरा दरिया में जो मिल जाए तो दरिया हो जाए, काम अच्छा है वो, जिसका कि मआल अच्छा है ख़िज़्र सुल्ताँ को रखे ख़ालिक-ए-अक्बर सर-सब्ज़, शाह के बाग़ में ये ताज़ा निहाल अच्छा है उनके देखे से आ जाती है मुँह पे जो रौनक वो समझते है बीमार का हाल अच्छा है देखिये पाते हैं उश्शाक़ बुतो से क्या फ़ैज इक ब्रहामन ने कहा है कि ये साल अच्छा है हमको मालूम है जन्नत की हकी़क़त लेकिन दिल को बहलाने के लिए 'ग़ालिब', ये खयाल अच्छा है
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