Khari Baat || खरी बात

 खरी बात 



एक बार बादशाह अपनी प्रजा का सुख-दुःख जानने के लिए घर-घर घूमने निकला।


वह जहां भी गया, लगा उसे बुरी हालत में मिले, लेकिन डर के मारे सभी ने यही कहा कि वह सब मजे में हैं। उन्हें बादशाह या उसके मुलाजिमों से कोई शिकायत नहीं है।


इसी क्रम में बादशाह खोजा के घर भी पहुंचा। उसने देखा कि खोजा अपने बिना छत वाले घर में हाथ पर हाथ धरे बैठा है।


न तो उसे बादशाह के आने की खुशी है और न कहीं जाने की जल्दी। बादशाह ने खोजा से कहा, खोजा! जरा मुझे अपनी जमीनें तो दिखाओ।


खोजा बोला, जहाँपनाह! जमीनें कहाँ कहाँ से दिखाऊं, मेरी ज्यादातर जमीनें तो तहसीलदार के कब्जे में हैं। कुछ थोड़ी-सी जमीन ही बची है मेरे पास।


ऐसा क्यों ? बादशाह ने पूछा।


खोजा ने बताया कई साल सूखा पड़ने के करण मैं जमीनों का लगाना नहीं दे पाया था।


बादशाह ने आगे पूछा, तुम्हारा अनाज कहाँ है ?


खोजा बोला, जहाँपनाह! जैसा कि मैं बता चुका हूँ, सूखा पड़ने से अनाज ज्यादा नहीं हुआ था, जितना हुआ था, जितना हुआ था जितना हुआ था, वह सारा का सारा आपके महल में पहुंच चुका है।


तुम्हारे मकान की छत कहाँ है ? बादशाह ने अगला सवाल पूछा।


उसे वह साहूकार ले गया जिससे मैंने फसल बोले लिए बीज उधार लिया था। खोजा ने जवाब दिया।


और तुम्हारे घर फर्नीचर, चारपाई आदि, उन सबका क्या हुआ ? बादशाह ने पूछा। वह आयकर न चुका पाने के कारण काजी उठा ले गया। तुम्हारा बेटा कहाँ है ?


बादशाह ने इस नीयत से पूछा कि जैसे ही वह अपने बेटे को हाजिर करेगा, हम उसे अपनी फ़ौज में मुलाजिम रखने का ऐलान करके इसे खुश कर देंगे।


खोजा ने किसी को पुकारने के लिए आवाज देने की गजह स्पाट-सा जवाब दिया, हुजूर! जिला अधिकारी के जुल्म की वजह से उसकी मौत हो गई है।


और तुम्हारी पत्नी, वह कहाँ है ? बादशाह ने थोड़ी मासूमी के साथ पूछा। इस सवाल को करने से पहले सोचा था कि वह इस दुखी आदमी की पत्नी को इसके साथ न छोड़ने के लिए कहेगा।


इस डर से कि उसे देखकर कहीं आप उस पर रीझ न जाएं, मैंने उसे छिपा दिया है। खोजा ने दो टूक लफ्जों में कहा।


तुम्हारी हर बात झूठी है खोजा। आखिर तुम्हारी मेरे सामने झूठ बोलने की हिम्मत कैसे हुई ? बादशाह ने गरजकर कहा।


इस पर खोजा ने उत्तर दिया, नहीं जहाँपनाह! यह बातें सच्ची हैं।


दूसरों की तरह यदि मैं भी आपके सामने झूठ बोलता कि मजे में हूँ, आपकी प्रजा होना गौरव की बात मानता हूँ, आपके मुलाजिम बड़े नेक और इंसाफ परस्तहैं , तो शायद आप इतने गुस्से में न आते। बादशाह मुंह लटकाए खोजा के घर से निकला और किसी का दरवाजा खटखटाने की बजाय वह सीधा अपने महल की और चल पड़ा।


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