साफे का दम
खोजा नसरुद्दीन के बारे में सोचते ही, सोचने वालों के दिमाग में जो छवि उभरती थी,
वह कुछ ऐसी हुआ करती थी - एक बड़ी-सी अचकन पहने, सिर पर गोल टोपी लगाए, चूड़ीदार पायजामा पहने, गधे पर सवार लंबी दाढ़ी वाला आदमी।
खोजा को कुछ नजदीक से जानने वालों के मन में जो उसकी तस्वीर थी, उसमें इतना और जुड़ जाता था कि वह ऐसा आदमी है
जो देखने में तो लगता है, जहाँ से आ रहा है, जहां जा रहा है और जहाँ जब मौजूद है, वहां से बेखबर है, लेकिन हकीकत में
जिसका दिमाग हमेशा चौकन्ना रहता है, जो हर समय हर कहीं नजर रखता है, जो सच को सच और झूठ को झूठ ही कहता है। जो गरीबों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता है।
जो किसी लोभ या लाभ में कभी नहीं फंसता। जिसे किसी भी कीमत पर सच्चाई से नहीं डिगाया जा सकता।
जो न मेहनत से जी चुराता है, न किसी की जी हुजूरी करता है। जो बादशाह या वजीर, सबके हित की सलाह देता है।
लेकिन एक बार हुआ ऐसा कि खोजा ने अपना हुलिया थोड़ा बदल लिया। सिर पर टोपी की बजाए बड़ा-सा साफा बांध लिया।
इस बदले हुए लिबास में वह वह सड़क पर भी निकल आया।
ऐसा साफा आमतौर पर पढ़े-लिखे लोग ही पहनते थे। खोजा इस ने लिबास में घर से निकल कर अभी कुछ दूर ही पहुंचा था कि उसे देखकर एक आदमी ने गुहार की, जनाब आलिम फाजिल साहब। मेरा यह खत तो पढ़ दीजिए।
खोजा ने उससे कहा, माफ़ करना भाई। मेरे लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है।
यह सुनकर वह आदमी बोला, तकल्लुफ क्यों कर रहे हैं, जनाब ?
जब आप इतना बड़ा साफा पहने हुए हैं तो यह कैसे मुमकिन है कि आप लिखना-पढ़ा न जानते हों ?
बहुत अच्छा! अगर आप मेरे सेफ में इतना डैम है कि इसे पहनकर विद्या अपने आप आ जाएगी तो यह साफा तुम पहन लो और अपना खत खुद पढ़ लो।
वह आदमी तब भी मानने को तैयार नहीं था कि साफे वाला यह आदमी सच कह रहा है।
उसने कुछ शिकायती लहजे में कहा, जनाब! आप तो मेरा एक खत पढ़ने के मामले में नखरे दिखा रहे हैं। आपकी जगह यदि मैं खोजा से टकराया होता तो वह न केवल मुझे खत पढ़कर सूना देता बल्कि हाथों-हाथ इसका जवाब भी लिख देता।
उस राहगीर की बात सुनकर खोजा के चेहरे पर हंसी आ गई। हँसते हुए उसने राहगीर से कहा, तुम ठीक कहते हो। खोजा ऐसा ही करता और अभी भी वैसा ही करेगा।
मैं खोजा ही हूँ।
मैं पढ़ना भी जानता हूँ और लिखना भी। मैं तुम्हें यह खत पढ़कर भी सुनाऊंगा और इसका जवाब भी लिखकर दूंगा।
मैं दरसअल आप लोगों को यह बताने के लिए निकला हूँ कि केवल साफा बाँधने से कोई पढ़ा-लिखा नहीं हो जाता।
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