सिंहासन बत्तीसी की इक्कीसवीं कहानी - चन्द्रज्योति पुतली की कथा
इस बार भी राजा भोज सिंहासन पर बैठने के लिए आगे बढ़ते हैं और तभी इक्कीसवीं पुतली चन्द्रज्योति वहां प्रकट होती है। चन्द्रज्योति राजा भोज को रोकती है और साथ ही उन्हें राजा विक्रमादित्य के गुणों से जुड़ी एक कहानी सुनाती है, जो इस प्रकार है –
एक बार राजा विक्रमादित्य ने राज्य में एक यज्ञ कराने का सोचा। वह उस यज्ञ में चंद्र देव को भी बुलाना चाहते थे, लेकिन वो इस सोच में पड़ गए कि आखिर चंद्र देव को बुलाने कौन जाएगा। कुछ देर तक सोचने के बाद उन्होंने इस काम के लिए अपने महामंत्री को चुना।
राजा ने महामंत्री को अपने पास बुलाया और अपने विचार प्रकट किए। तभी एक नौकर दौड़ते-दौड़ते वहां पहुंचा। नौकर को देखकर महामंत्री उसके पास गए। नौकर ने उनके कान में धीरे से कुछ कहा, जिसे सुनने के बाद महामंत्री दुखी हो गए और राजा से विदा लेकर वहां से चले गए।
महामंत्री के यूं अचानक जाने से राजा को लगा कि कुछ परेशानी की बात है। इस बारे में उन्होंने उस नौकर से पूछा। तब नौकर ने बताया, “महामंत्री की एक ही बेटी है, जो लंबे समय से बीमार है। उसका इलाज कई वैद्य-हकीमों से कराया गया, पर वो ठीक नहीं हुई। दुनिया की हर दवाई और औषधि उसे दी गई, पर उसकी तबीयत और खराब होते जा रही है। आज तो उसकी हालत इतनी खराब हो गई कि वह हिल भी नहीं पा रही है, उसका बचना मुश्किल लग रहा है।”
इन बातों को सुनकर राजा बहुत दुखी हुए। उन्होंने तुरंत राजवैद्य को बुलवाया और पूछा, “क्या उन्होंने महामंत्री की बेटी का इलाज किया है?” इसपर राजवैद्य ने कहा, “महामंत्री की बेटी को अब बस ख्वांग बूटी से ही बचाया जा सकता है। इसके अलावा, उसका इलाज किसी और चीजों से नहीं हो सकता है। लेकिन यह बूटी बहुत मुश्किल से मिलती है। उसे खोजने में कई महीने लग जाएंगे।”
यह सुनने के बाद राजा ने वैद्य से पूछा, “वो जगह कौन सी है, जहां यह बूटी मिलती है?” तब राजवैद्य ने बताया, “नील रत्नागिरी की घाटियों में यह बूटी मिलती है, लेकिन इसे खोजना बहुत मुश्किल है। इसका रास्ता बहुत ही कठिन है।” लेकिन राजा इससे डरे नहीं। उन्होंने राज वैद्य से उस बूटी की पहचान पूछी, ताकि वो उसे पहचान सके। राज वैद्य ने बताया, “उस पौधे में आधे नीले और आधे पीले रंग का फूल खिलता है। उसकी पत्तियां लाजवन्ती नामक पौधे की तरह ही होती हैं और छूने से वे सिकुड़ जाती हैं।
इतना सुनने के बाद राजा यज्ञ को छोड़कर बूटी लाने के लिए निकल गए। उन्होंने तुरंत दोनों बैतालों को याद किया। बैताल उन्हें लेकर नील रत्नागिरी पहुंचे। राजा यहां से अकेले बूटी खोजने के लिए आगे बढ़ गए। तभी उन पर एक शेर ने हमला कर दिया। लेकिन राजा इतने ताकतवर थे कि उन्होंने शेर को मार दिया।
इसके बाद वो और आगे बढ़े, तभी एक बड़े से सांप ने उन्हें खा लिया। लेकिन राजा ने उसके पेट में चाकू मार कर खुद को बचा लिया। बूटी खोजते-खोजते शाम हो गई। राज ने सोचा कि थोड़ा आराम कर लिया जाए, फिर बूटी खोजेंगे। रात में उन्होंने सोचा कि काश चंद्र देव बूटी खोजने में उनकी मदद कर दें। तभी एक चमत्कार हुआ और चारों तरफ रोशनी फैल गई।
राजा ने जब उठकर देखा, तो उन्हें वो नीले और पीले रंग का फूल लगा पौधा दिखाई दिया। जब उन्होंने उसकी पत्तियों को छूआ, तो वो सिकुड़ गईं। राजा को समझ आ गया कि यह वही बूटी है, जिसे वो ढूंढने आए थे। उन्होंने तुरंत उस बूटी को अपने झोले में भर लिया। जैसे ही वो जाने लगे, तभी चंद्र देव उनके सामने आ गए और उन्होंने राजा को अमृत दिया। साथ ही कहा कि अब यह अमृत ही महामंत्री की बेटी को ठीक कर सकता है।
चंद्र देव ने राजा को कहा कि तुम्हारी मदद की भावना देख मैं बहुत खुश हूं। उन्होंने राजा को यह भी बताया कि अगर वो यज्ञ में आएंगे, तो दुनिया के कई भागों में अंधेरा छा जाएगा। इसलिए, वो वहां नहीं आ सकते। इसके बाद उन्होंने राजा को आशीर्वाद दिया और वहां से चले गए। इसके बाद राज तुरंत अपने महामंत्री के घर पहुंचे और अमृत पिलाकर उनकी बेटी को ठीक कर दिया। इसके बाद महामंत्री खुश हो गए और उन्होंने राजा को धन्यवाद दिया।
कहानी समाप्त होते ही इक्कीसवीं पुतली चन्द्रज्योति ने राजा भोज से कहा कि अगर आप में भी राजा विक्रमादित्य की तरह हिम्मत और अपनी प्रजा के लिए प्रेम की भावना है, तो ही सिंहासन की ओर आगे बढ़ें। यह कहकर चन्द्रज्योति वहां से उड़ जाती है और राजा भोज सोच में पड़ जाते हैं।
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