Sinhashan Battishi Ki Bisvin Kahani - Gyanvati Putli || सिंहासन बत्तीसी की बीसवीं कहानी - ज्ञानवती पुतली की कथा

 सिंहासन बत्तीसी की बीसवीं कहानी - ज्ञानवती पुतली की कथा



उन्नीसवीं पुतली की कहानी सुनने के बाद राजा भोज अगले दिन फिर से सिंहासन बत्तीसी पर बैठने आते हैं, तभी बीसवीं पुतली ज्ञानवती प्रकट होती है और उन्हें रोकती है। ज्ञानवती कहती है, “रुको राजन! इसपर बैठने से पहले राजा विक्रमादित्य के इस गुण के बारे में तो जान लो। इतना कहने के बाद बीसवीं पुतली ज्ञानवती कहानी सुनाना शुरू करती है, जो इस प्रकार है –



एक समय की बात है, राजा विक्रमादित्य जंगल में भ्रमण के लिए निकले थे। इसी दौरान उन्होंने दो लोगों को आपस में बातें करते सुना, जिनमें से एक ज्योतिषी था। ज्योतिषी ने वहां मौजूद अपने दोस्त से कहा, “मुझे ज्योतिष विद्या का पूरा ज्ञान प्राप्त है। मैं तुम्हारे भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में सब कुछ बता सकता हूं।” लेकिन, उसके दोस्त को उसकी बातों में कोई रुचि नहीं थी। इसलिए, उसने ज्योतिषी से कहा, “तुम्हें मेरे भूत और वर्तमान के बारे में पूरी जानकारी है, इसलिए तुम ये सब बता सकते हो और भविष्य के बारे में जानने की मेरी कोई इच्छा नहीं है। इसलिए, अच्छा होगा अगर तुम अपने ज्ञान का बखान न करो।”


ज्योतिषी इतने पर भी नहीं चुप हुआ। उसने आगे कहा, “जंगल में बिखरी हुई इन हड्डियों को देखकर मैं यह बता सकता हूं कि यह कौन से जानवर की है और उसकी मृत्यु कैसे हुई।” इस बात में भी उसके दोस्त ने रुचि नहीं ली।


इसी दौरान उस ज्योतिषी की नजर जमीन पर छपे पंजों के निशानों पर पड़ी। यह देख उसने कहा, “ये पंजों के निशान किसी राजा के हैं, तुम चाहो तो इसकी जांच कर सकते हो।” ज्योतिषी ने बताया, “राजा-महाराजा के पैरों पर कमल के निशान होते हैं, जो यहां भी हैं। ये बात बिल्कुल सत्य है।” इस पर उसके दोस्त ने सोचा कि क्यों ने इस बार ज्योतिषी की बात की जांच कर ली जाए, नहीं तो वो अपने ज्ञान का बखान ऐसे ही करता रहेगा।



इसके बाद दोनों दोस्तों ने उन निशानों का पीछा करना शुरू किया और चलते-चलते उसकी समाप्ति तक पहुंचे। वहां उन्होंने एक लकड़हारे को देखा। ज्योतिषी ने उसे अपने पैरों को दिखाने को कहा। जब लकड़हारे ने अपना पैर दिखाया, तो ज्योतिषी चौंक गया। उसके पैरों पर वो कमल के निशान मौजूद थे। ज्योतिषी को लगा कि वह किसी राजा का ही पुत्र होगा, लेकिन शायद वो किसी कारण वश इस काम को करने के लिए मजबूर होगा। इसलिए, उसने लकड़हारे से उसका परिचय पूछा। तब लकड़हारे में बताया कि उसका जन्म लकड़हारे के घर में ही हुआ है। सदियों से उसके यहां यही काम चलता आ रहा है।


यह सुनने के बाद ज्योतिषी को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसका भरोसा ज्योतिष विद्या से उठने लगा। उसका दोस्त भी उसकी इस विद्या का मजाक उड़ाने लगा। इसपर ज्योतिषी ने कहा, “ऐसा कैसे हो सकता है, चलो एक बार चलकर राजा विक्रमादित्य के पैरों को देखते हैं। अगर उनके पैरों पर ये निशान नहीं हुए, तो मैं अपनी हार स्वीकार कर लूंगा और समझूंगा कि ये सब बेकार है।” इस पर उसका दोस्त भी राजी हो गया और दोनों राजमहल की ओर चल दिए।


राज दरबार पहुंचकर उन्होंने महाराजा विक्रमादित्य से मिलने की इच्छा जताई। राजा ने दोनों को अंदर आने का आदेश दिया। यहां उस ज्योतिष ने राजा से अपना पैर दिखाने का आग्रह किया। राजा विक्रमादित्य ने जब अपने पैर दिखाए, तो ज्योतिषी फिर चकित हुआ। उसके बताए अनुसार राजा के पैरों पर किसी प्रकार के कोई चिन्ह नहीं थे, बल्कि उनका पैर भी आम लोगों जैसा ही था।



यह देखने बाद उस ज्योतिषी का भरोसा पूरे ज्योतिष विज्ञान से उठ गया। उसने राजा को बताया, “ज्योतिष विद्या के अनुसार, राजा-महाराजा के पैरों पर कमल का निशान होता है, लेकिन यहां ऐसा नहीं है। जबकि जंगल में एक लकड़हारे के पैरों पर ऐसा निशान मौजूद है, जिसका संबंध किसी भी राजघराने से नहीं है।”


ज्योतिषी की बातों को सुनने के बाद राजा विक्रमादित्य को बहुत हंसी आई। उन्होंने उससे पूछा, “ये सब देखने के बाद क्या तुम्हारा विश्वास ज्योतिष विद्या से उठ गया?” ज्योतिषी ने कहा, “जी महाराज, ये सब कुछ अपनी आंखों से देखने के बाद मेरा अब ज्योतिष विद्या पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं रहा।” इतना कहकर उसने राजा को प्रणाम किया और अपने दोस्त के साथ जाने की आज्ञा ली।


तभी राजा विक्रमादित्य ने दोनों को रुकने का आदेश दिया। फिर उन्होंने अपने सेवक से एक चाकू मंगवाया और अपने पैरों को कुरेदने लगे। जैसे-जैसे उनके पैरों की नकली चमड़ी हटती गई, कमल का निशान दिखने लगा। यह देखकर ज्योतिषी और उसका दोस्त चकित रह गए। उन्होंने राजा से पूछा, “हे राजन ये सब क्या है।” इस पर राजा ने कहा, “आप बहुत बड़े ज्ञानी हैं। आपके ज्ञान की सीमा बहुत बड़ी है, लेकिन यह तब तक अधूरी रहेगी जब तक आप इसका बखान करते रहेंगे।”


राजा ने बताया, “जंगल में आप दोनों की बातें मैंने सुन ली थी। वन में आपने जिस लकड़हारे से मुलाकात की वह मैं ही था। यह सब मैंने इसलिए किया ताकि आपको यह समझा सकूं कि एक ज्ञानी को कभी अपने ज्ञान का बखान करने की आवश्यकता नहीं होती।”


इस कहानी को सुनाने के बाद बीसवीं पुतली ज्ञानवती ने राजा भोज से कहा कि अगर आप भी राजा विक्रमादित्य की तरह गुणवान हैं, तो ही सिंहासन की ओर बढ़ें। इतना कहकर बीसवीं पुतली ज्ञानवती वहां से उड़ जाती है।


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