Top 25+ Gulzar Shayari || Hindi Gulzar Shayari

खवाइशें कुछ कुछ , यूं भी अधूरी रही पहले उम्र नहीं थी , अब उम्र नहीं रही
जख्म कहाँ कहाँ से मिले हैं छोड़ इन बातों को जिंदगी तु तो बता सफर और कितना बाकी है..
> मूखतसर सा गुरूर भी जरूरी है जीने के लिए ज्यादा झुक के मिलों तो दुनिया पीठ को पायदान बना लेती है |
कुछ रिश्तों में मुनाफा नहीं होता पर जिंदगी को आमिर बना देते हैं ||
जब गीला शिकवा अपनों से हो तो खामोशी ही भली अब हर बात पर जंग हो यह जरूरी तो नहीं
दर्द की अपनी भी एक अदा है वो भी सहने वालों पर फिदा है ||
मिलता तो बहुत कुछ है इस जिंदगी में बस हम गिनती उसी की करते हैं जो हासिल ना हो सका
अब ना मांगेंगे जिंदगी या रब ये गुनाह हमने एक बार किया
इच्छाएँ बड़ी बेवफा होती है कमबख्त पूरी होते ही बदल जाती है
थोड़ा सुकून भी ढूंढिए जनाब , ये जरूरतें तो कभी खत्म ही नहीं होगी
मैंने सिर्फ तुम्हारे कदम गिने थे तुम्हारे कदमों की आहट सुनी थी तुमने आना छोड़ दिया लेकिन मैंने इंतजार करना नहीं छोड़ा
कौन कहता है की हम झूठ नहीं बोलते एक बार खैरियत तो पूछ के देखिए
सहम सी गई है खवाइशें शायद जरूरतों ने ऊंची आवाज में बात की होगी
यूं तो ये जिंदगी तेरे सफर से शिकायतें बहुत थी मगर दर्द जब दर्ज कराने पहुंचे तो कतारें बहुत थी
सुना है काफी पढ़ लिख गए हो तुम कभी वो भी पढ़ो जो हम कह नहीं पाते
सो जाइए सब तकलीफों को सिरहाने रख कर क्योंकि सुबह उठते ही इन्हें फिर से गले लगाना है
थोड़ी थोड़ी गुफ्तगू दोस्तों से करते रहिए जाले लग जाते हैं अक्सर बंद मकानों में
आप के बाद हर घड़ी हम ने, आप के साथ ही गुज़ारी है।
फिर वहीं लौट के जाना होगा, यार ने कैसी रिहाई दी है।
कुछ अलग करना हो तो भीड़ से हट के चलिए, भीड़ साहस तो देती हैं मगर पहचान छिन लेती हैं।
अच्छी किताबें और अच्छे लोग, तुरंत समझ में नहीं आते, उन्हें पढना पड़ता हैं।
बहुत अंदर तक जला देती हैं, वो शिकायते जो बया नहीं होती।
मैंने दबी आवाज़ में पूछा? मुहब्बत करने लगी हो? नज़रें झुका कर वो बोली! बहुत।
कोई पुछ रहा हैं मुझसे मेरी जिंदगी की कीमत, मुझे याद आ रहा है तेरा हल्के से मुस्कुराना।
मैं दिया हूँ! मेरी दुश्मनी तो सिर्फ अँधेरे से हैं, हवा तो बेवजह ही मेरे खिलाफ हैं।
बिगड़ैल हैं ये यादे, देर रात को टहलने निकलती हैं।
सुना हैं काफी पढ़ लिख गए हो तुम, कभी वो भी पढ़ो जो हम कह नहीं पाते हैं।
उसने कागज की कई कश्तिया पानी उतारी और, ये कह के बहा दी कि समन्दर में मिलेंगे।
कभी जिंदगी एक पल में गुजर जाती हैं, और कभी जिंदगी का एक पल नहीं गुजरता।
हम तो अब याद भी नहीं करते, आप को हिचकी लग गई कैसे?
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई, जैसे एहसान उतारता है कोई।
रोई है किसी छत पे, अकेले ही में घुटकर, उतरी जो लबों पर तो वो नमकीन थी बारिश।
कभी तो चौक के देखे कोई हमारी तरफ़, किसी की आँखों में हमको भी को इंतजार दिखे।
दिल अगर हैं तो दर्द भी होंगा, इसका शायद कोई हल नहीं हैं।
तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं, रात भी आयी और चाँद भी था, मगर नींद नहीं।
वो चीज़ जिसे दिल कहते हैं, हम भूल गए हैं रख के कहीं।
कुछ बातें तब तक समझ में नहीं आती, जब तक ख़ुद पर ना गुजरे।

0 Comments:

एक टिप्पणी भेजें