1.) आमों की तारीफ़ में
हाँ दिल-ए-दर्दमंद
ज़म-ज़मा साज़
क्यूँ न खोले
दर-ए-ख़ज़िना-ए-राज़
ख़ामे का सफ़्हे पर
रवाँ होना
शाख़-ए-गुल का है
गुल-फ़िशाँ होना
मुझ से क्या पूछता
है क्या लिखिये
नुक़्ता हाये
ख़िरदफ़िशाँ लिखिये
बारे, आमों का कुछ
बयाँ हो जाये
ख़ामा नख़्ले
रतबफ़िशाँ हो जाये
आम का कौन
मर्द-ए-मैदाँ है
समर-ओ-शाख़,
गुवे-ओ-चौगाँ है
ताक के जी में
क्यूँ रहे अर्माँ
आये, ये गुवे और ये
मैदाँ!
आम के आगे पेश जावे
ख़ाक
फोड़ता है जले
फफोले ताक
न चला जब किसी तरह
मक़दूर
बादा-ए-नाब बन गया
अंगूर
ये भी नाचार जी का
खोना है
शर्म से पानी पानी
होना है
मुझसे पूछो,
तुम्हें ख़बर क्या है
आम के आगे नेशकर
क्या है
न गुल उस में न
शाख़-ओ-बर्ग न बार
जब ख़िज़ाँ आये तब
हो उस की बहार
और दौड़ाइए क़यास
कहाँ
जान-ए-शीरीँ में ये
मिठास कहाँ
जान में होती गर ये
शीरीनी
'कोहकन'
बावजूद-ए-ग़मगीनी
2) ख़ुश हो ऐ बख़्त कि है आज तेरे सर सेहरा
ख़ुश हो ऐ
बख़्त कि है आज तेरे सर सेहरा
बाँध शहज़ादा जवाँ
बख़्त के सर पर सेहरा
क्या ही इस चाँद-से
मुखड़े पे भला लगता है
है तेरे हुस्ने-दिल
अफ़रोज़ का ज़ेवर सेहरा
सर पे चढ़ना तुझे फबता है पर ऐ तर्फ़े-कुलाह
मुझको डर है कि न
छीने तेरा लंबर सेहरा
नाव भर कर ही पिरोए
गए होंगे मोती
वर्ना क्यों लाए
हैं कश्ती में लगाकर सेहरा
सात दरिया के
फ़राहम किए होंगे मोती
तब बना होगा इस
अंदाज़ का ग़ज़ भर सेहरा
रुख़ पे दूल्हा
के जो गर्मी से पसीना टपका
है
रगे-अब्रे-गुहरबार सरासर सेहरा
ये भी इक बेअदबी थी
कि क़बा से बढ़ जाए
रह गया आन के दामन
के बराबर सेहरा
जी में इतराएँ न
मोती कि हमीं हैं इक चीज़
चाहिए फूलों का भी
एक मुक़र्रर सेहरा
जब कि अपने में
समावें न ख़ुशी के मारे
गूँथें फूलों का
भला फिर कोई क्योंकर सेहरा
रुख़े-रौशन की
दमक गौहरे-ग़ल्ताँ की चमक
क्यूँ न दिखलाए
फ़रोग़े-मह-ओ-अख़्तर सेहरा
तार रेशम का नहीं है ये रगे-अब्रे-बहार
लाएगा
ताबे-गिराँबारि-ए गौहर सेहरा
हम सुख़नफ़हम हैं ‘ग़ालिब’ के तरफ़दार नहीं
देखें इस सेहरे से
कह दे कोई बढ़कर सेहरा
3) फिर हुआ वक़्त कि हो बाल कुशा मौजे-शराब
फिर हुआ वक़्त कि हो बालकुशा मौजे-शराब
दे बते मय को
दिल-ओ-दस्ते शना मौजे-शराब
पूछ मत वजहे-सियहमस्ती-ए-अरबाबे-चमन
साया-ए-ताक में
होती है हवा मौजे-शराब
है ये बरसात वो
मौसम कि अजब क्या है अगर
मौजे-हस्ती को
करे फ़ैज़े-हवा मौजे शराब
जिस क़दर रूहे-नबाती है जिगर तश्ना-ए-नाज़
दे है
तस्कीं ब-दमे- आबे-बक़ा मौजे-शराब
बस कि दौड़े है
रगे-ताक में ख़ूँ हो-हो कर
शहपरे-रंग से
है बालकुशा मौजे-शराब
मौज-ए-गुल से चराग़ाँ है गुज़रगाहे ख़याल
है तसव्वुर में
जिबस जल्वानुमा मौजे-शराब
नश्शे के पर्दे में
है मह्वे तमाशा -ए-दिमाग़
बस कि रखती है सरे-
नश-ओ-नुमा मौजे शराब
एक आलम पे है तूफ़ानी-ए-कैफ़ीयते-फ़स्ल
मौज
-ए-सब्ज़ा-ए-नौख़ेज़ से ता मौजे-शराब
शरहे -हंगामा-ए-हस्ती है, ज़हे मौसमे-गुल
रहबरे-क़तरा
ब-दरिया है ख़ुशा मौजे-शराब
होश उड़ते हैं मेरे
जल्वा-ए-गुल देख असद
फिर हुआ वक़्त कि
हो बालकुशा मौजे-शराब
4) हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझसे
हर क़दम
दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझसे
मेरी रफ़्तार से
भागे है बयाबाँ मुझसे
दर्से-उन्वाने-तमाशा बा-तग़ाफ़ुल ख़ुशतर
है निगहे- रिश्ता-ए-शीराज़ा-ए-मिज़गाँ
वहशते-आतिशे-दिल से
शबे-तन्हाई में
सूरते-दूद रहा
साया गुरेज़ाँ मुझसे
ग़मे-उश्शाक़ न हो सादगी आमोज़े-बुताँ
किस क़दर ख़ाना-ए-
आईना है वीराँ मुझसे
असरे-आब्ला से है जादा-ए-सहरा-ए-जुनूँ
सूरते-रिश्ता-ए-गोहर है
चराग़ाँ मुझसे
बेख़ुदी
बिस्तरे-तम्हीदे-फ़राग़त हो जो
पुर है साये की तरह
मेरा शस्बिस्ताँ मुझसे
शौक़े-दीदार में गर
तू मुझे गर्दन मारे
हो निगह
मिस्ले-गुले-शम्मअ परीशाँ मुझसे
बेकसी हाए
शबे-हिज्र की वहशत है ये
साया ख़ुरशीदे-क़यामत में है पिन्हाँ मुझसे
गर्दिशे-साग़रे-सद
जल्वा-ए-रंगीं तुझसे
आईना दारी-ए-यक
दीद-ए-हैराँ मुझसे
निगह-ए-गर्म से इक
आग टपकती है ‘असद’
है चराग़ाँ
ख़स-ओ-ख़ाशाके-गुलिस्ताँ मुझसे
5) नवेदे-अम्न है बेदादे दोस्त जाँ के लिए
नवेदे-अम्न है
बेदादे दोस्त जाँ के लिए
रही न
तर्ज़े-सितम कोई आसमाँ के लिए
बला से गर
मिज़्गाँ-ए-यार तश्ना-ए-ख़ूँ है
रखूँ कुछ अपनी भी
मि़ज़्गाँने-ख़ूँफ़िशाँ के लिए
वो ज़िन्दा हम हैं कि हैं रूशनासे-ख़ल्क़- ए -ख़िज्र
न तुम कि चोर बने उम्रे-जाविदाँ के
लिए
रहा बला में भी मैं मुब्तिला-ए-आफ़ते-रश्क
बला-ए-जाँ है
अदा तेरी इक जहाँ, के लिए
फ़लक न दूर रख उससे
मुझे, कि मैं ही नहीं
दराज़-ए-दस्ती-ए-क़ातिल के
इम्तिहाँ के लिए
मिसाल यह मेरी कोशिश की है कि मुर्ग़े-असीर
सरे क़फ़स में
फ़राहम ख़स आशियाँ के लिए
गदा समझ के वो
चुप था मेरी जो शामत आए
उठा और उठ के क़दम,
मैंने पासबाँ के लिए
बक़द्रे-शौक़ नहीं ज़र्फ़े-तंगना-ए-ग़ज़ल
कुछ और चाहिए
वुसअत मेरे बयाँ के लिए
दिया है ख़ल्क को
भी ता उसे नज़र न लगे
बना है ऐश तजम्मल
हुसैन ख़ाँ के लिए
ज़बाँ पे
बारे-ख़ुदाया ये किसका नाम आया
कि मेरे नुत्क़ ने बोसे मेरी ज़ुबाँ के लिए
नसीरे-दौलत-ओ-दीं और मुईने-मिल्लत-ओ-मुल्क़
बना है
चर्ख़े-बरीं जिसके आस्ताँ के लिए
ज़माना अह्द में उसके है मह्वे आराइश
बनेंगे और सितारे
अब आसमाँ के लिए
वरक़ तमाम हुआ
और मदह बाक़ी है
सफ़ीना चाहिए इस
बह्रे- बेक़राँ के लिए
अदा-ए-ख़ास से ‘ग़ालिब’ हुआ है नुक़्ता-सरा
सला-ए-आम है
याराने-नुक़्ता-दाँ के लिए
6) शुमार-ए सुबह मरग़ूब-ए बुत-ए-मुश्किल पसंद आया
शुमार-ए सुबह
मरग़ूब-ए बुत-ए-मुश्किल पसंद आया
तमाशा-ए बयक-कफ़
बुरदन-ए सद दिल पसंद आया
ब फ़ैज़-ए बे-दिली
नौमीदी-ए जावेद आसां है
कुशायिश को हमारा
`उक़द-ए मुश्किल पसंद आया
हवा-ए सैर-ए गुल
आईना-ए बे-मिहरी-ए क़ातिल
कि अंदाज़-ए ब
ख़ूं-ग़लतीदन-ए बिस्मिल पसंद आया
रवानियाँ -ए मौज-ए
ख़ून-ए बिस्मिल से टपकता है
कि लुतफ़-ए
बे-तहाशा-रफ़तन-ए क़ातिल पसंद आया
असद हर जा सुख़न ने
तरह-ए बाग़-ए-तज़ डाली है
मुझे रंग-ए
बहार-ईजादी-ए बेदिल पसंद आया
7) हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
हर एक बात पे कहते
हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये
अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है
न शोले में ये
करिश्मा न बर्क़ में ये अदा
कोई बताओ कि वो
शोखे-तुंदख़ू क्या है
ये रश्क है कि वो
होता है हमसुख़न हमसे
वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू
क्या है
चिपक रहा है बदन पर
लहू से पैराहन
हमारी ज़ेब को अब
हाजत-ए-रफ़ू क्या है
जला है जिस्म जहाँ
दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब
राख जुस्तजू क्या है
रगों में दौड़ते
फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न
टपका तो फिर लहू क्या है
वो चीज़ जिसके लिये
हमको हो बहिश्त अज़ीज़
सिवाए
बादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है
पियूँ शराब अगर
ख़ुम भी देख लूँ दो चार
ये
शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है
रही न
ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे
कहिये के आरज़ू क्या है
बना है शह का मुसाहिब,
फिरे है इतराता
वगर्ना शहर में
"ग़ालिब" की आबरू क्या है
8) आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है
आ कि मेरी जान को
क़रार नहीं है
ताक़ते-बेदादे-इन्तज़ार
नहीं है
देते हैं जन्नत
हयात-ए-दहर के बदले
नश्शा
बअन्दाज़-ए-ख़ुमार नहीं है
गिरिया निकाले है
तेरी बज़्म से मुझ को
हाये! कि रोने पे
इख़्तियार नहीं है
हम से अबस है
गुमान-ए-रन्जिश-ए-ख़ातिर
ख़ाक में उश्शाक़
की ग़ुब्बार नहीं है
दिल से उठा
लुत्फे-जल्वाहा-ए-म'आनी
ग़ैर-ए-गुल
आईना-ए-बहार नहीं है
क़त्ल का मेरे किया
है अहद तो बारे
वाये! अगर अहद
उस्तवार नहीं है
तू ने क़सम मैकशी
की खाई है "ग़ालिब"
तेरी क़सम का कुछ
ऐतबार नहीं है
9) फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
फिर मुझे दीदा-ए-तर
याद आया
दिल जिगर
तश्ना-ए-फ़रियाद आया
दम लिया था न क़यामत ने हनोज़
फिर तेरा
वक़्त-ए-सफ़र याद आया
सादगी हाये तमन्ना
यानी
फिर वो नैइरंग-ए-नज़र
याद आया
उज़्र-ए-वामाँदगी
अए हस्रत-ए-दिल
नाला करता था जिगर
याद आया
ज़िन्दगी यूँ भी
गुज़र ही जाती
क्यों तेरा
राहगुज़र याद आया
क्या ही रिज़वान से
लड़ाई होगी
घर तेरा ख़ुल्द में गर याद आया
आह वो
जुर्रत-ए-फ़रियाद कहाँ
दिल से तंग आके
जिगर याद आया
फिर तेरे कूचे को
जाता है ख़्याल
दिल-ए-ग़ुमगश्ता
मगर याद आया
कोई
वीरानी-सी-वीरानी है
दश्त को देख के घर
याद आया
मैंने मजनूँ पे
लड़कपन में 'असद'
संग उठाया था के सर
याद आया
10) तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है
तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश
हर तार-ए-बिस्तर है
मिरा सर
रंज-ए-बालीं है मिरा तन बार-ए-बिस्तर है
सरिश्क-ए-सर ब-सहरा
दादा नूर-उल-ऐन-ए-दामन है
दिल-ए-बे-दस्त-ओ-पा
उफ़्तादा बर-ख़ुरदार-ए-बिस्तर है
ख़ुशा
इक़बाल-ए-रंजूरी अयादत को तुम आए हो
फ़रोग-ए-शम-ए-बालीं
ताल-ए-बेदार-ए-बिस्तर है
ब-तूफ़ाँ-गाह-ए-जोश-ए-इज़्तिराब-ए-शाम-ए-तन्हाई
शुआ-ए-आफ़्ताब-ए-सुब्ह-ए-महशर
तार-ए-बिस्तर है
अभी आती है बू
बालिश से उस की ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं की
हमारी दीद को
ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा आर-ए-बिस्तर है
कहूँ क्या दिल की
क्या हालत है हिज्र-ए-यार में ग़ालिब
कि बेताबी से हर-यक
तार-ए-बिस्तर ख़ार-ए-बिस्तर है
11) नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच
नफ़स न
अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच
अगर शराब नहीं
इन्तज़ार-ए-साग़र खींच
कमाल-ए-गरमी-ए
सई-ए-तलाश-ए-दीद न पूछ
ब रंग-ए-ख़ार मिरे
आइने से जौहर खींच
तुझे बहाना-ए-राहत
है इन्तज़ार ऐ दिल
किया है किस ने
इशारा कि नाज़-ए-बिस्तर खींच
तिरी तरफ़ है ब
हसरत नज़ारा-ए-नरगिस
ब
कोरी-ए-दिल-ओ-चश्म-ए रक़ीब साग़र खींच
ब नीम-ग़मज़ा अदा
कर हक़-ए वदीअत-ए-नाज़
नियाम-ए --परदा-ए
ज़ख्म-ए-जिगर से खंज़र खींच
मिरे क़ददा में है
सहबा-ए-आतिश-ए-पिनहां
ब रू-ए सुफ़रा
कबाब-ए-दिल-ए-समन्दर खींच
12) हुज़ूर-ए-शाह में अहल-ए-सुख़न की आज़माइश है
हुज़ूर-ए-शाह में
अहल-ए सुख़न की आज़माइश है
चमन में
ख़ुश-नवायान-ए-चमन की आज़माइश है
क़द-ओ-गेसू में
क़ैस-ओ-कोहकन की आज़माइश है
जहां हम हैं वहां
दार-ओ-रसन की आज़माइश है
करेंगे कोहकन के
हौसले का इमतिहां आख़िर
अभी उस ख़स्ता के
नेरवे-तन की आज़माइश है
नसीम-ए मिसर को
क्या पीर-ए-कनआं की हवा-ख़वाही
उसे यूसुफ़ की
बू-ए-पैरहन की आज़माइश है
वह आया बज़्म में
देखो न कहयो फिर कि ग़ाफ़िल थे
शिकेब-ओ-सबर-ए-अहल-ए-अंजुमन
की आज़माइश है
रहे दिल ही में तीर
अच्छा जिगर के पार हो बेहतर
ग़रज़
शुस्त-ए-बुत-ए-नावक-फ़गन की आज़माइश है
नहीं कुछ
सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार के फंदे में गीराई
वफ़ादारी में
शैख़-ओ-बरहमन की आज़माइश है
पड़ा रह ऐ
दिल-ए-वाबस्ता बेताबी से क्या हासिल
मगर फिर
ताब-ए-ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन की आज़माइश है
रग ओ पै में जब
उतरे ज़हर-ए-ग़म तब देखिए क्या हो
अभी तो
तल्ख़ी-ए-काम-ओ-दहन की आज़माइश है
वो आवेंगे मिरे घर
वादा कैसा देखना ग़ालिब
नए फ़ित्नों में अब
चर्ख़-ए-कुहन की आज़माइश है
13) हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुशकिल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल
नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
दुआ क़ुबूल हो या
रब कि उम्र-ए-ख़िज़्र दराज़
न हो ब-हर्ज़ा
बयाबाँ-नवर्द-ए-वहम-ए-वुजूद
हुनूज़ तेरे
तसव्वुर में है नशेब-ओ-फ़राज़
विसाल जल्वा तमाशा
है पर दिमाग़ कहाँ
कि दीजे
आइना-ए-इन्तिज़ार को पर्दाज़
हर एक
ज़र्रा-ए-आशिक़ है आफ़ताब-परस्त
गई न ख़ाक हुए पर
हवा-ए-जल्वा-ए-नाज़
न पूछ
वुसअत-ए-मै-ख़ाना-ए-जुनूँ ग़ालिब
जहाँ ये
कासा-ए-गर्दूं है एक ख़ाक-अंदाज़
फ़रेब-ए-सनअत-ए-ईजाद
का तमाशा देख
निगाह
अक्स-फ़रोश-ओ-ख़याल-ए-आइना-साज़
ज़-बस-कि
जल्वा-ए-सय्याद हैरत-आरा है
उड़ी है
सफ़्हा-ए-ख़ातिर से सूरत-ए-परवाज़
हुजूम-ए-फ़िक्र से
दिल मिस्ल-ए-मौज लर्ज़ां है
कि शीशा नाज़ुक ओ
सहबा है आब-गीन-गुदा
असद से तर्क-ए-वफ़ा
का गुमाँ वो मअनी है
कि खींचिए
पर-ए-ताइर से सूरत-ए-परवाज़
14) हुश्न-ए-बेपरवा ख़रीदार-ए-मता-ए-जलवा है
हुस्न-ए-बे-परवा
ख़रीदार-ए-माता-ए-जल्वा है
आइना
ज़ानू-ए-फ़िक्र-ए-इख़्तिरा-ए-जल्वा है
ता-कुजा ऐ आगही
रंग-ए-तमाशा बाख़्तन
चश्म-ए-वा-गर्दीदा
आग़ोश-ए-विदा-ए-जल्वा है
15) वां उस को हौल-ए-दिल है तो यां मैं हूं शरम-सार
वाँ उस को
हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार
यानी ये मेरी आह की
तासीर से न हो
अपने को देखता नहीं
ज़ौक़-ए-सितम को देख
आईना ता-कि दीदा-ए-नख़चीरर से न हो
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