जावेद अख्तर (जन्म 17 जनवरी 1945) एक भारतीय राजनीतिक कार्यकर्ता, कवि, गीतकार और पटकथा लेखक हैं। वह मूल रूप से ग्वालियर क्षेत्र का रहने वाला है। वह पद्म श्री (1999),पद्म भूषण (2007), साहित्य अकादमी पुरस्कार के साथ-साथ पांच राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारप्राप्तकर्ता हैं। अपने करियर के शुरुआती दौर में, वह एक पटकथा लेखक थे, जिन्होंने दीवार, जंजीर और शोले जैसी फिल्में बनाईं। बाद में, उन्होंने पटकथा-लेखन छोड़ दिया और गीतकार और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता बन गए। वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 2020 में, उन्हें धर्मनिरपेक्षता में उनके योगदान, स्वतंत्र सोच, आलोचनात्मक सोच, धार्मिक हठधर्मिता को जांच के लिए रखने, मानव प्रगति और मानवतावादी मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए रिचर्ड डॉकिन्स पुरस्कार मिला। जावेद अख्तर को रिचर्ड डॉकिन्स पुरस्कार के प्राप्तकर्ता के रूप में "एक अंधेरे समय में कारण, स्वतंत्र विचार और नास्तिकता के लिए उज्ज्वल प्रकाश" के लिए चुना गया था।
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आँखों में मंज़र कोई बसाया जाए,
नफ़रत का काला धुआं हटाया जाए।
आलम कोई भी हो बदल जायेगा,
जाम लबों से कोई लगाया जाए।
कोई तो अपना भीड़ में आयेगा नज़र,
झुकी पलकों का फिर उठाया जाए।
शायद वो आये किसी रोज सजदा करने,
आँचल इसी उम्मीद से बिछाया जाए।
दिल से दुआ निकल आयेगी दोस्तों,
सिसकते होंठों को गर हंसाया जाए।
फर्ज इन्सान का यही कहता है - 'आस'
डूबते को साहिल से लगाया जाए।
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होंठों पे नाम तेरा, आंखों में पैगाम है,
हमसे रूठने वाले तुझको सलाम है।
तेरी उल्फ़त ने बस ग़म ही दिये,
तुझसे दिल लगाने का अच्छा इनाम है।
घर को लूटने वाले मुआफ़ हों गए,
हमपे घर सजाने के बहुत इल्जाम है।
तेरे मैख़ाने में साकी क्यूं आये भला?
अब तो हाथों में हमारे अश्कों के जाम हैं।
दिल के मारो से न पूछिए उनका ठिकाना,
कहीं सुबह उनकी कहीं उनकी शाम है।
अब तो मतलब, फ़रेब, बेईमानी है 'आस',
आदमी के दिल में न अल्लाह, न राम है।
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जिंदगी इंतकाम ले रही कि इम्तिहान क्या पता,
जान में आफत है कि आफत में जान क्या पता।
इसीलिए खुले छोड़े हैं हमने दिल के दरवाजे,
जाने कब कहां से आये कोई मेहमान क्या पता।
गम के सहरा में कहां तक जाओगे।
राहें-मुश्किल है बड़ी थक जाओगे।
कब तक परदे में छुपा रहा है कोई?
प्यारी नजरों को कभी तो झलक जाओगे।
हम गलत हैं कि सही आजमा तो लेते,
कभी महफिल में अपनी बुला तो लेते।
फिर कहते कि कम्बख्त चीज है बुरी,
पहले जाम होठों से लगा तो लेते।
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ये अश्क हैं किसके ये किसके निशां हैं,
पिघलती मोम है ज़िंदगी किसके बयां हैं।
यहां तो खामोशी के सिवा कुछ भी नहीं,
कौन रहते हैं यहां, ये किसके मकां हैं।
अजब शहर की हालत नज़र है आती,
हर तरफ़ हाथों में मौत के सामां है।
उठ गई हैं दीवारें रिश्तों के दरमियां,
रह गए घरों में रिश्तों के गुमां हैं
ज़रा सोचकर यहां दिल लगाइए साहब,
मुहब्बत हवा का झोंका नहीं तूफ़ां है।
मिलता नहीं प्यार अदब, सलीका कहीं,
दिल सभी के यहां मतलबों के दुकां है।
ऐतबार करना मगर ज़रा संभल के 'आस',
कब वादों से मुकर जाये ये जुबां है।
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तेरे खयालों की रोशनी रही पास हमेशा,
ज़िदगी मेरी फिर भी रही उदास हमेशा।
ये अलग बात थी कि तू न सुन पाया,
तुझको आवाज़ देती रही मेरी हर सांस हमेशा।
पतझड़ में भी हंसने की कोशिश कर ले,
मिलता नहीं किसी को भी मधुमास हमेशा।
बेइमानों के ही हक़ में होते रहे फ़ैसले,
वो चलते रहे हैं चाल कुछ खास हमेशा।
न पूछ क्यूं रिश्तों के जाल में उलझकर,
दम तोड़ती रही मेरी हर 'आस' हमेशा।
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जब तेरे ख़त सिरहाने रखते हैं,
लगता है जैसे खज़ाने रखते हैं।
तुमको तन्हा चलने की आदत क्यों,
हम तो साथ अपने ज़माने रखते हैं।
उसकी बेरूखी का ग़म नहीं होता,
दिल को बहलाने के बहाने रखते हैं।
हमको नहीं गरज किसी मयख़ाने की,
आंखों में अश्कों के पैमाने रखते हैं।
अब भी उठती है महक तेरी यादों की
सूखे गुलाबों में अफ़साने रखते हैं।
कभी तो मिलेगा 'आस' का मुकाम,
यही सोचकर सीने में उड़ानें रखते हैं।
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चलन जिंदगी का बदला जाए तो अच्छा है,
किसी के ग़म में अश्क बहाए तो अच्छा है।
हादसा है क्या और रंजे-हालात है क्या?
किताबें ग़म की पढ़ी जाए तो अच्छा है।
और भी आसान हो जाएगी मंज़िलें,
कांटों को राहों से हटाए तो अच्छा है।
तूफां नफ़रतों का उठने लगे इससे पहले,
नांव प्यार की साहिल से लगाए तो अच्छा है।
उम्र खिलोनों से खेलने की कहां रह गई,
नादानियां बाज़ार में बेच आए तो अच्छा है।
घरौंदे रेत के बनाकर थक चुके हैं 'आस',
अब किसी दिल में घर बनाए तो अच्छा है।
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वक्त की हवाओं का यारों असर देख लो,
बिख़रे हुए पत्तों का ये मंज़र देख लो।
शौक से छुप जाओ बेवफाई के जंगल में,
पहले मेरी आंखों में वफ़ा का खंज़र देख लो।
अश्कों से उभर आये हैं हथेली पर छालें,
है इंतज़ार में तपिश किस कदर देख लो।
पल-पल में हुस्नें रंगत उड़ती नजर आयेगी,
आईने में शक्ल गौर से अगर देख लो।
ठोकरों में आये, तो मंदिरों में सज गए,
रास्तों के पत्थरों के भी मुकद्दर देख लो।
'आस' यूं तो रहते हैं घरों में रिश्ते लेकिन,
दिलों के दरमियां है कितना अंतर देख लो।
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आंधियों ने जलाये हो चराग ऐसे मंजर नहीं देखे,
हमने दरिया से मिलते कभी समंदर नहीं देखे।
गैरों तक ही सिमट के रहगई निगाहें उनकी,
भूलकर भी रूख उनके हम पर नहीं देखे।
सौगात जख्मों की हर कोई देके चला है,
मरहम दिल पे लगाये ऐसे चारागर नहीं देखे।
चीज बूरी है बात अक्सर वो ही करते हैं,
जाम लबों से जिसने लगाकर नहीं देखे।
दिल में दर्द और आंखों में आंसू देखे हैं 'आस'
हमने वफादारों के हाथों में पत्थर नहीं देखे।
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कभी दिल में किसी को बसाके देखिए,
रिश्ते भी कुछ नये बनाके देखिए।
रंग एक-सा ही नज़र आयेगा,
लहू को लहू से मिलाके देखिए।
महक उनके बदन से भी आयेगी,
अपने गुलशन में कांटे खिलाके देखिए।
हज़ारों बेगुनाहों की आहें दफन होगी,
सियासत की दीवारें गिराके देखिए।
सभी मतलबों के ही साथी मिलेंगे,
न हो यकीं तो आज़माके देखिए।
साथ तुम्हारे भी चलेगी 'आस' दुनिया,
जुगनूओं-सा ज़रा जगमगाके देखिए
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लाख मशक्कत कर लो, कुछ न हासिल होगा,
न अपना समंदर होगा, न कोई साहिल होगा।
अब तो वो ही होगा खड़ा ज़माने के मुकाबिल,
जिसका अपना फ़न होगा, जो किसी काबिल होगा।
वो जो नहीं जानता प्यार-ओ-खुलूस के मायने,
दिल उसका मोम नहीं वह संगदिल होगा।
बंदगी-ईबादत, धर्म-कर्म, पूजा और ईमाँ,
नहीं जिसकी मंज़िल राही वो जाहिल होगा।
वफ़ा के नाम पर जो खेलता हो दिल से,
सच कहते हैं वो मेहबूब नहीं क़ातिल होगा।
चलो एक बार में ही खत्म कर दें ये सफ़र,
क्यों खड़ा मुन्तिजर, क्यूं परिशां किसी का दिल होगा।
आस कभी बे-आस जिंदगी के कई हैं रंग,
कहो? किस-किस का चेहरा नजर में दाखिल होगा।
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जाने क्यों अहले जहां उनको भूल गए।
जो दे के हमें अपने उसूल गए।
आज उनके ही चमन वीरान आते नज़र,
खिलाके कलियां, जो हटाकर बबूल गए।
कांटे रह गये हैं हमारी रहगुजर पे,
उनकी राहों की तरफ सारे फूल गये।
पाक दामन हमारा फिर भी दागदार कहलाये,
उनके दामन के हर दाग मगर धूल गए।
कर सके न फिर कोई तमन्ना इसी खातिर,
सीने में 'आस' के वो चुभो के शूल गए।
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कहां तक बता जायेगा मेरे यार,
चल के खूब पछतायेगा मेरे यार।
यह राह वफा की है मुश्किल,
ठोकरों पे ठोकर खायेगा मेरे यार।
कोई हमदर्द, हमराह-हमदम नहीं,
अब-किसको आज़मायेगा मेरे यार।
प्यार के नाम पे है दिल का तमाशा,
टूट के बिख़र जायेगा मेरे यार।
सियासी चालों ने खोखली कर दी जड़ें,
किस दरख़त को संभालेगा मेरे यार।
'आस', दिल में न पालना कोई,
शर्म से तर हो जायेगा मेरे यार।
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कहो किस पे करे ऐतबार अब,
दोस्त ही करने लगे वार अब।
सब खेल है वक्त का हयात में,
करें किस-किस का इंतज़ार अब।
जब भी रहे तो ख़याल इतना रहे,
दामन वफ़ा का न हो दाग़दार अब।
उसकी जुदाई का असर न पूछो,
साथ रोने लगी है दरों-दीवार अब।
रहना है गर किसी नज़र में आस,
तो आंचल शर्मों-हया का संवार अब।
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प्यार में आजकल यूं भी होने लगा है,
दिल की जगह जिस्म मचलने लगा है।
दोस्ती, प्यार, वफ़ा-औ खुलूस का जज्बा,
किताबों में ही दम तोड़ने लगा है।
अपने हाथों की लकीरों में क्या है भला?
आदमी अपने ही सवालों में उलझने लगा है।
जाने अब के ये कैसा दौर आ गया,
शहर में नफरतों का गुबार छाने लगा है।
उससे निस्बत ही न रहे तो है अच्छा,
रह-रह के रूठना उसका खलने लगा है।
वक्त के मारों को जबसे देखा है यहां,
'आस' भी अपने अंज़ाम से डरने लगा है।
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तरसती आंखों को इक झलक दिखा तो दीजिए,
दीवाने दिल को संभलना सिखा तो दीजिए।
उस पार आप ठहरे और इस पार हम खड़े,
फासलों की इस दीवार को गिरा तो दीजिए।
प्यासे हैं कितनी मुद्दत से आपकी हसरत में,
इक जाम होठों का हमें भी पिला तो दीजिए।
नश्तर-सी चुभने लगी है ये खामोशी आपकी,
मुस्कुराइए ज़रा लबों को हिला तो दीजिए।
मुरझा गया है चमन हमारी हसरतों का
बहार बनके आइये कोई गुल खिला तो दीजिए।
उल्फ़त न सही नफ़रत ही सही कबूल है मगर,
'आस' की चाहत का कोई सिला तो दीजिए।
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खुशियां कम और अरमान बहुत हैं,
जिसे भी देखिए यहां हैरान बहुत है।
करीब से देखा तो है रेत के घर,
दूर से मगर उनकी शान बहुत है।
कहते हैं सच का कोई सानी नहीं,
आज तो झूठ की आन-बान बहुत है।
मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी,
यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं।
तुम शौक से चलो राहें-वफा लेकिन,
ज़रा संभल के चलना तूफान बहुत है।
वक्त पे न पहचाने कोई ये अलग बात,
'आस', वैसे तो अपनी पहचान बहुत है।
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आज फिर ख्वाहिशों को दिल में जगा दीजिए,
तोड़ दो बंदिशे चिंगारियों को हवा दीजिए।
भला कब रूके हैं यहां प्यार के बादल?
किसने रोका है ज़रा हमें भी बता दीजिए।
दिल के ज़ख्म कहीं नासूर न बन जाएं,
बन के चारागर कभी तो दवा दीजिए।
फिर सुलग उठे यहां हौंसलों के शोलें,
बुझी-बुझी-सी आग को हवा दीजिए।
नफ़रतों का तूफ़ा उठाए जहां इससे पहले,
कश्तियां चाहत की साहिल से लगा दीजिए।
रह-रहके जो याद उनकी दिलाये 'आस'
ऐसी उनकी हर निशानी को हटा दीजिए।
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दरिया-ए-इश्क में जो उतर जायेगा,
फिर होश कहां उसे वो किधर जायेगा।
राह उल्फ़त की अगर चले दुनिया,
अदा बदलेगी हर चेहरा संवर जायेगा।
हमसफर हो साथ तो क्या है मुश्किल,
राह कोई भी हो आसां हर सफ़र जायेगा।
पत्थरों से न उलझ दिल भी ज़रा देख,
आईना ही तो है टुट के बिख़र जायेगा।
जब गुजर गया लम्हा आंखें पथरा गईं,
कब सोचा था मुझसे हादसा डर जायेगा।
हर तरफ धुआं-सा कोहरा-सा, अंधेरा-सा,
कौन पहचानेगा शहर में अगर जायेगा।
तुम ज़माने के साथ चलो शौक से,
आस, तन्हा है चाहे वो उधर जायेगा।
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दिल में धड़कनें न रहे दुआ मांगते हैं,
हम अपने गुनाहों की सज़ा मांगते हैं।
फिर सुलग उठे यहां हौसलों के शोलें,
बुझी-बुझी सी आग को हवा मांगते हैं।
बेहया हो चली है फितरतें सभी की,
आदमी में ज़रा-सी हया मांगते हैं।
दिल की बेचैन सासों को आये करार,
प्यार में डूबी कोई सदा मांगते हैं।
हम खुद ही ढूंढ़ लेते हैं अपना ठिकाना,
कब गैर से मंज़िल का पता मांगते हैं।
'आस' के पांव में न हो जंज़ीर कोई,
और कुछ न इसके सिवा मांगते हैं।
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