नमस्कार दोस्तों ,आशा करतें हैं की आप सभी सकुशल होंगे ,आज हमने आप सभी के लिए शमशेर बहादुर सिंह के कुछ बहुत ही अच्छे ग़ज़लों का collections किए हैं ,आशा करते हैं की आप सभी को ये ग़ज़लें पसंद आएंगी । धन्यावाद!!
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चुपके से कोई कहता है : शाइर नहीं हूँ मैं ।
क्यों अस्ल में हूँ वो जो बज़ाहिर नहीं हूँ मैं ।
भटका हुआ-सा फिरता है दिल किस ख़याल में
क्या जादए-वफ़ा का मुसाफ़िर नहीं हूँ मैं ?
क्या वसवसा है, पा के भी तुमको यक़ीं नहीं
मैं हूँ जहाँ वहीं भी तो आख़िर नहीं हूँ मैं ।
सौ बार उम्र पाऊँ तो सौ बार जान दूँ
सदक़े हूँ अपनी मौत पे काफ़िर नहीं हूँ मैं ।
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अपने दिल का हाल यारो, हम किसी से क्या कहें;
कोई भी ऎसा नहीं मिलता जिसे अपना कहें।
हो चुकी है जब ख़त्म अपनी ज़िन्दगी की दास्ताँ
उनकी फ़रमाइश हुई है, इसको दोबारा कहें!
आज इक ख़ामोश मातम-सा हमारे दिल में है:
ख़ाब के से दिन हैं, वर्ना हम इसे जीना कहें।
यास! दिल को बांध, सर पर जल्द साया कर, जुनूँ
दम नहीं इतना जो तुमसे साँस का धोका कहें।
देखकर आख़ीर वक़्त उनकी मौहब्बत की नज़र
हम को याद आया वो कुछ कहना जिसे शिकवा कहें।
उनकी पुरहसरत निगाहें देख कर रहम आ गया
वर्ना जी में था कि हम भी हँस के दीवाना कहें।
काफ़िले वालो, कहाँ जाते हो सहरा की तरफ़,
आओ बैठो तुमसे हम मजनूँ का अफ़साना कहें।
मुश्कबू-ए-जुल्फ़ उसकी, घेर ले जिस जा हमें,
दिल ये कहता है, उसी को अपना काशाना कहें।
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फिर किसी को इक दिले-काफ़िर अदा देता हूँ मैं
ज़िन्दा हूँ और अपने ख़ालिक को दुआ देता हूँ मैं
बेख़ुदी में दर्द की दौलत लुटा देता हूँ मैं,
'जब ज़ियादा होती है मय तो लुँढ़ा देता हूँ मैं'।*
अपनी ही क़द्रे-ख़ुदी की पुरतक़ल्लुफ़ लज़्ज़ते--
आप क्या लेते हैं मुझसे और क्या देता हू`म मैं!
इश्क़ की मज़बूरियाँ हैं, हुस्न की बेचारगी :
रूए आलम देखिएगा ? आइना देता हूँ मैं।
इल्मो-हिक़मत, दीनो-ईमाँ, मुल्को-दौलत, हुस्नो इश्क़
आपको बाज़ार से जो कहिए ला देता हूँ मैं ।
आरज़ूओं की बियाबानी है और ख़ामोशियाँ
ज़िन्दगी को क्यों सबाते-नक़्शे-पा देता हूँ मैं?
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ईमान गड़बड़ी में है दिल के हिसाब में
लिक्खा हुआ कुछ और मिला है किताब में
दिल जिनमें ढूंढ़्ता था कभी अपनी दास्ताँ
वो सुख़ियाँ कहाँ हैं मुहब्बत के बाब में!
ऎ दिलेनवाज़ पहलू ही जब दिल के और हों,
क्या ख़िलवतों में लुत्फ़ धरा क्या हिजाब में!
उस आस्ताँ तक हमको बहारों में ले के जाओ
जिस पर कोई शहीद हुआ हो शबाब में!
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यहाँ कुछ रहा हो तो हम मुँह दिखाएँ
उन्होंने बुलाया है क्या ले के जाएँ
कुछ आपस में जैसे बदल-सी गई हैं
हमारी दुआएँ तुम्हारी बलाएँ
तुम एक ख़ाब थे जिसमें ख़ुद खो गए हम
तुम्हें याद आएँ तो क्या याद आएँ
वो एक बात जो ज़िन्दगी बन गई है
जो तुम भूल जाओ तो हम भूल जाएँ
वो ख़ामोशियाँ जिनमें तुम हो न हम हैं
मगर हैं हमारी तुम्हारी सदाएँ
बहुत नाम हैं एक 'शमशेर' भी है
किसे पूछते हो किसे हम बताएँ
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'आए भी वो गए भी वो'--गीत है यह, गिला नहीं
हमने य' कब कहा भला, हमसे कोई मिला नहीं।
आपके एक ख़याल में मिलते रहे हम आपसे
यह भी है एक सिलसिला गो कोई सिलसिला नहीं।
गर्मे-सफ़र हैं आप तो हम भी हैं भीड़ में कहीं
अपना भी काफ़िला है कुछ आप ही का काफ़िला नहीं।
दर्द को पूछते थे वो, मेरी हँसी थमी नहीं
दिल को टटोलते थे वो, मेरा जिगर हिला नहीं।
आई बहार हुस्न का ख़ाबे-गराँ लिए हुए :
मेरे चमन कि क्या हुआ, जो कोई गुल खिला नहीं।
उसने किए बहुत जतन, हार के कह उठी नज़र :
सीनए-चाक का रफ़ू हमसे कभी सिला नहीं।
इश्क़ की शाइरी है ख़ाक़, हुस्न का ज़िक्र है मज़ाक
दर्द में गर चमक नहीं, रूह में गर जिला नहीं
कौन उठाए उसके नाज़, दिल तो उसी के पास है;
'शम्स' मज़े में हैं कि हम इश्क़ में मुब्तिला नहीं।
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फिर निगाहों ने तेरी दिल में कहीं चुटकी ली
फिर मेरे दर्द ने पैमान वफ़ा का बांधा
और तो कुछ न किया इश्क़ में पड़कर दिल ने
एक इन्सान से इन्सान वफ़ा का बांधा!
एक फ़ाहा भी मेरे ज़ख़्म पे रक्खा न गया
और सर पे मेरे एहसान दवा का बांधा
इस तकल्लुफ़ की मोहब्बत थी कि उठते ही बनी
रंग यारों ने वो मेहमानसरा का बांधा।
मौसमे-अब्र में आता है मेरे नाम ये हुक्म
कि ख़बरदार जो तूफ़ान बला का बांधा।
मुस्कुराते हुए वो आए मेरी आँखों में--
देखने क्या सरोसामान क़ज़ा का बांधा!
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मैं आपसे कहने को ही था, फिर आया ख़याल एकाएक
कुछ बातें समझना दिल की, होती हैं मोहाल एकाएक
साहिल पे वो लहरों का शोर, लहरों में वो कुछ दूर की गूँज :
कल आपके पहलू में जो था, होता है निढाल एकाएक
जब बादलों में घुल गई थी कुछ चांदनी-सी शाम के बाद
क्यों आया मुझे याद अपना वह माहे-जमाल एकाएक
सीनों में क़्यामत की हूक, आँखों में क़यामत की शाम :
दो हिज्र की उम्रें हो गईं दो पल का विसाल एकाएक
दिल यों ही सुलगता है मेरा, फुँकता है यूँ ही मेरा जिगर
तलछट को अभी रहने दे, सब आग न ढाल एकाएक
जब मौत की राहों में दिल, ज़ोरों से धड़कने लगता
धड़कन को सुलाने लगती उस शोख़ की चाल एकाएक
हाँ, मेरे ही दिल की उम्मीद तू है, मगर ऎसी उम्मीद
फल जाए तो सारा संसार हो जाए निहाल एकाएक
एक उम्र की सरगरदानी लाए वो घड़ी भी 'शमशेर'
बन जाए जवाब आपसे आप आँखों का सवाल एकाएक
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बहुत काम बाक़ी है टाला पड़ा है ।
मगर उनकी आँखों पे' जाला पड़ा है ।
सुराही पड़ी है पियाला पड़ा है
करें क्या--जुबानों पे' ताला पड़ा है
बहुत सुर्ख़रूई थी वादों में जिनके
जो मुँह उनका देखा तो काला पड़ा है
कहाँ उठ के जाने की तैयारियाँ हैं
सब असबाब बाहर निकाला पड़ा है ?
यहाँ पूछने वाला कोई नहीं है
जिसे भी जहाँ मार डाला पड़ा है ?
भला कोई सीना है वो भी कि जिस पर
न बरछी पड़ी है,न भाला पड़ा है !
उसे बदलियों में भी पहचान लोगे
कि उस चांद-से मुँह पे' हाला पड़ा पड़ा है
य' बादल की लट चांद पर है, कि मन को
दबाए हुए कौड़ियाला पड़ा है
वो जुल्फ़ों में सब कुछ छुपाए हुए हैं
अंधेरा लपेटे उजाला पड़ा है
बहुत ग़म सहे हमने 'शमशेर', उस पर
अभी तक ग़मों का कसाला पड़ा है
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जहां में अब तो जितने रोज अपना जीना होना है,
तुम्हारी चोटें होनी हैं, हमारा सीना होना है।
वो जलवे लोटते फिरते हैं खाको-खूने-इन्सां में
तुम्हारा तूर पर जाना,मगर नाबीना होना है।
कदमरंजा है सूए-बाम एक शोखी कयामत की:
मेरे खूने-हिना-परवर से रंगो जीना होना है!
वो कल आएंगे वादे पर मगर कल देखिए कब हो!
गलत फिर, हजरते-दिल आपका तख्मीना होना है।
बस ए शमशेर, चल कर अब कहीं उजलतगर्जी हो जा
कि हर शीशे को महफिल में गदाए मीना होना है।
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भूला हुआ था आज तलक अपने घर को मैं
क्या जाने चल दिया था कहाँ के सफ़र को मैं
तुम मुस्कुरा रहे थे मुझे देख-देख कर
अपनी समझ रहा था हरेक की नज़र को मैं
गर्दिश से उन निगाहों को कुछ होश आ गया
दुशमन समझ रहा था ख़ुद अपनी नज़र को मैं
ऎसे भी मोड़ आए हैं चुपचाप बार-बार
तकता था राहबर मुझे और राहबर को मैं
'शमशेर' और कुछ नहीं दुनिया जहान में
इक दिल है, ढूंढता हूँ, उसी बेख़बर को मैं
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कहता है बाजुओं का ज़ोर, सारे जहाँ को तोलकर
मालिके-दो जहाँ! इधर देख के मेरा मोल कर!
आज भी हैं वो मनचले, आज भी हैं वो सिरफिरे
तीरो-सनाँ की बाढ़ पर, चलते थे सीना खोलकर!
इसमें तो आग है बहुत, इसका तो ख़ून गर्म है--
बोले वो रख के दिल पे हाथ, और जिगर टटोलकर।
बातों में अपने रंग ला, लहज़े को शोख़तर बना
शर्तों को लोचदार रख, वादों को गोलमोल कर !!
तर्ज़े-अदा इशारा हो, अब ये नहीं तरीके-फ़न
राज़ की बात भी कहो, 'शम्स', तो साफ़ खोलकर!
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वही उम्र का एक पल कोई लाए
तड़पती हुई-सी ग़ज़ल कोई लाए
हक़ीक़त को लाए तख़ैयुल से बाहर
मेरी मुश्किलों का जो हल कोई लाए
कहीं सर्द खूँ में तड़पती है बिजली
ज़माने का रद्दो-बदल कोई लाए
उसी कम-निगाही को फिर सौंपता हूँ
मेरी जान का क्या बदल कोई लाए
दुबारा हमें होश आए न आए
इशारों का मौक़ा-महल कोई लाए
नज़र तेरी दस्तूरे-फ़िरदौस लाई
मेरी ज़िन्दगी में अमल कोई लाए
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अन्दाज़ा ही बहक न गया था निशाँ के पार
थी सैद की निगाह भी तीरो-कमाँ के पार!
आज़ादियाँ हैं खित्तए-बहम-ओ-गुमाँ के पार
आओ बसाएँ एक जहाँ इस जहाँ के पार!
ख़ामोशिए-दुआ हूँ, मुझे कुछ ख़बर नहीं
जाती हैं क्या सदाएँ तेरे आस्ताँ के पार!
सात आसमान झुक के उठाते हैं किसके नाज़?
किसकी झलक-सी है चमने-कहकशाँ के पार?
इतना उदास आपका दिल किसलिए हुआ?
हर दर्द की दवा है, ज़मानो मकाँ के पार!
क़ायम महाज़ अम्न के हिन्दोस्ताँ से हो!
फ़ौजें न जाएँ सरहदे-हिन्दोस्ताँ के पार!
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ज़माने भर का कोई इस क़दर अपना न हो जाए
कि अपनी ज़िंदगी ख़ुद आपको बेगाना हो जाए।
सहर होगी ये शब बीतेगी और ऐसी सहर होगी
कि बेहोशी हमारे होश का पैमाना हो जाए।
किरन फूटी है ज़ख़्मों के लहू से : यह नया दिन है :
दिलों की रोशनी के फूल हैं नज़राना हो जाए।
ग़रीबुद्दहर थे हम; उठ गए दुनिया से अच्छा है
हमारे नाम से रोशन अगर वीराना हो जाए।
बहुत खींचे तेरे मस्तों ने फ़ाक़े फिर भी कम खींचे
रियाज़त ख़त्म होती है अगर अफ़साना हो जाए।
चमन खिलता था वह खिलता था, और वह खिलना कैसा था
कि जैसे हर कली से दर्द का याराना हो जाए।
वह गहरे आसमानी रंग की चादर में लिपटा है
कफ़न सौ ज़ख़्म फूलों में वही पर्दा न हो जाए।
इधर मैं हूँ, उधर मैं हूँ, अजल तू बीच में क्या है?
फ़कत एक नाम है, यह नाम भी धोका न हो जाए।
वो सरमस्तों की महफ़िल में गजानन मुक्तिबोध आया
सियासत ज़ाहिदों की ख़ंदए-दीवाना हो जाए
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एक होकर सारे अख़बारों का हल्ला देखिए!
साथ अमरीका के गोया ये भी दस्ता देखिए!
बह्रि, बेड़े औ हवाई-अड्डे ही काफ़ी न थे
'बेवतन'विस्थापितों का रेला देखिए!
साफ़ हक़ की बात रक्खी उसने सबके सामने
ये कुसूर ईरान का कितना बड़ा था देखिए!
एकदम तख़्ता हुकूमत का पलट देते हैं ये
काम करते हैं सिफ़ारतख़ाने क्या-क्या देखिए!
सरहदी गांधी, पठानों का वो ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार
सुनिए तो क्या कहता है इक मर्द-ए-दाना देखिए!
सोवियत फ़ौजी मदद क़ाबुल ने जब मांगी तो आई
था मुनासिब ही क़दम ये हस्ब-ए-वादा देखिए!
हद्दे पाकिस्तान में सी.आई.ए. की साजिशें
सरहदी फ़ौजों का हमलावर बनाना देखिए!
हिन्द महासागर के बीचोंबीच डियागोगार्सिया
हिन्द,ईरान, अफ़्रीका होंगे निशाना देखिए!
ऎटमी बेड़े, हवाईयान हज़ारों ही जमा
क्या है अमरीका की ताक़त का ठिकाना देखिए!
परचमे इस्लाम के हैं साथ अमरीकी निशान
हो गया क़ुर्बान डालर पर ज़माना देखिए!
अहद-ओ-पैमाँ अम्न की ख़ातिर है या है बहर-ए-जंग
असलियत में क्या है अमरीका का चेहरा देखिए!
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मुझको मिलते हैं अदीब और कलाकार बहुत
लेकिन इन्सान के दर्शन हैं मुहाल।
दर्द की एक तड़प--
हल्के-से दर्द की एक तड़प,
सच्ची तड़प,
मैंने अगलों के यहाँ देखी है;--
या तो वह आज है ख़ामोश तबस्सुम में ज़लील
या वो है कफ़-आलूद;
या वो दहशत का पता देती है;
या हिरासाँ है;
या फिर इस दौर के ख़ाको-खूँ में
गुमगश्ता है।
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जो धर्मों के अखाड़े हैं
उन्हे लड़वा दिया जाए !
ज़रूरत क्या कि हिन्दुस्तान पर
हमला किया जाए ! !
मुझे मालूम था पहले हि
ये दिन गुल खिलाएँगे
ये दंगे और धर्मों तक भि
आख़िर फैल जाएँगे
तबीयत को रँगो जिस रंग में
रँगती ही जाती है
बढ़ो जिस सिम्त में, उसकी हि
सीमा बढ़ती जाती है ! !
जो हिन्दु-मुस्लिम था वो
सिक्ख-हिन्दु हो गया
देखो!
ये नफ़रत का तक़ाज़ा
और कितना बढ़ गया
देखो ! !
हम इसके पहले भी
मिल-जुल के आख़िर
रहते आए थे
जो अपने भी नहीं थे,
वो भि कब इतने
पराए थे !
हम अपनी सभ्यता के
मानी-औ-मतलब ही
खो बैठे
जो थीं अच्छाइयाँ
इतिहास की
उन सबको धो बैठे
तबीयत जैसी बन
जाती है,फिर बनती ही
जाती है;
जो तन जाती है आपस में
तो फिर तनती ही
जाती है !
हमारे बच्चे वो ही
सीखते हैं, हम जो
करते हैं;
हमें ही देखकर, वह तो
बिगड़ते या, सँवरते हैं।
जो हश्र होता है
फ़र्दों का, वही
क़ौमों का होता है
वही फल मुल्क को
मिलता है, जिसका
बीज बोता है !
ये हालत देखकर
अपने जो दुश्मन मुल्क
होते हैं
हमारी राह में वो चुपके-
-चुपके काँटे बोते हैं !
हमारे धर्मों की क्या-क्या न
वो तारीफ़ करते हैं
वो कहते हैं कि-हम तो
आपके धर्मों पे मरते हैं
ये हैं कितने महान
इनकी तो बुनियादें
बचाना है।
दरअसल, हमको लड़ाकर
उनकी बुनियादें हिलाना
है!
ये मुल्क इतना बड़ा है
यह कभी बाहर के
हमले से
न सर होगा !
जो सर होगा तो बस
अन्दर के फ़ितने से
ये मनसूबा है-
दक्षिण एशिया में
धर्म के चक्कर...
चले !-और बौद्ध,
हिन्दु, सिक्ख, मुस्लिम
में रहे टक्कर !
वो टक्कर हो कि सब कुछ
युद्ध का मैदान
बन जाए !
कभी जैसा नहीं था, वैसा
हिन्दुस्तान बन जाए !
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वो अपनों की बातें, वो अपनों की ख़ु-बू
हमारी ही हिन्दी, हमारी ही उर्दू !
ये कोयलों - बुलबुल के मीठे तराने :
हमारे सिवा इसका रस कौन जाने !
😊🥰😘😍😗😍😇🥰😘😍🙃🥰🙂🥰😉
ओस टपकी है कैसी ज़हरआलूद !
ज़्ख़्म-ता-ज़ख़्म बाग में है जमूद
जो भी गुंचा खिला वो ज़ख़्मी था :
सुर्ख बेशक बहार का था वुज़ूद !
यही अपना मक़ान है, जो कि था ।
हाँ ! यही सायबान है, जो कि था !
होंट गोया हैं सूखे पत्तों से ।
ख़ामुशी चीखती है आँखों से ।
इन्हीं गलियों में थे तो ग़ालिब भी ।
'नींद क्यों रात भर नहीं आती ! ?
😍🙂🥰🙃🥰🙂😘🙂🥰😅🥰🙃😘🙃😘
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