Famous Ghazal of Siya Sachdev

नमस्कार  दोस्तों ,आशा करतें हैं की आप सभी सकुशल होंगे ,आज हमने आप सभी के लिए सिया सचदेव  के कुछ बहुत ही अच्छे ग़ज़लों का  collections किया हैं ,आशा करते हैं की आप सभी को ये ग़ज़लें  पसंद आएंगी । धन्यावाद!!



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माना बेरंग ज़िन्दगानी है

उम्र हर हाल में बितानी है॥


इश्क़ में और कुछ नहीं दरकार

ज़ख्म पाना हैं चोट खानी है॥


हुस्न पर इस क़दर ग़ुरूर है क्यूँ

याद रख्खो यह जिस्म फ़ानी है॥


भीगा मौसम है अब तो आ जाओ

देखो फसलों का रंग धानी है॥


उनके कूचे से होके आई :सिया:

यह हवा इस लिए सुहानी है॥


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छुप छुप के ज़माने से आँखों को भिगोते हैं

हम दिन में तो हँसते हैं पर रात में रोते हैं


तू ग़ैर का हो जाये और हम को क़रार आये

यह दर्द तो वो जाने जो अपनों को खोते हैं


बस फ़िक्र में दौलत की,हैं ऊंचे मकां वाले

उनसे तो ग़रीब अच्छे जो चैन से सोते हैं


अंजाम बुराई का होता है बुरा यारो

वह फूल नहीं पाते जो काँटों को बोते हैं


करते हैं 'सिया' उसकी तस्वीर से हम बातें

तनहाई में रह कर भी तनहा नहीं होते हैं


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प्यार का मौसम जहाँ को भा गया

कुछ दिलों को और भी तडपा गया


आई है कुछ देर से अबके बहार

फूल कब का शाख पर मुरझा गया


कारखानों से जो निकला था धुआं

शहर में बीमारियाँ फैला गया


एक नेता था वोह और करता भी क्या

मसले वो सुलझे हुवे उलझा गया


तब वो समझा लूटना इक जुर्म है

सेठ के हाथों से जब गल्ला गया


क्या हुआ ऐसा किसी ने क्या कहा

उनके माथे पे पसीना आ गया


था हसीं मौसम बहारों का 'सिया'

एक बिरहन को मगर तडपा गया


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दिल हैं पोशीदा बहोत मिसमार हैं

आजकल चेहरे ही बस बाज़ार हैं


खुशबुएँ भी इस धुंए ने छीन लीं

फ़ूल गुलशन में हैं पर लाचार हैं


हाँ मिलावट ही मिलावट हर तरफ

हर तरफ बस आदमी बेज़ार हैं


एक सच्चा आदमी अनशन पे है

अब यहां बदलाव के आसार हैं


हम गरीबों के लिए कुछ भी नहीं

ख़ुद की ख़ातिर अहलेज़र दिलदार हैं


एक व्यापारी ने मुझको ये कहा

आप का लिखना सिया बेकार हैं


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आज मेरा दिल न जाने, इतना क्यूँ उदास है

इक घुटन सी दिल में हैं कैसा ये एहसास है


रौशनी भी अब दियों की, फूंकती है घर मेरा

आग को भी मेरे घर से, दुश्मनी कुछ खास है


मैं तेरी तस्वीर दिल में, रख रही हूँ आज तक

इक तसव्वुर से ही तेरे जागती ये प्यास है


साथ तेरा गर मिले, किस्मत से शिकवा ना रहे

आये मुश्किल ज़िन्दगी में वो भी हमको रास है


क्यूं मुझे ठुकरा रहे हो, आप दौलत के लिए

वो कहाँ मुफ़लिस है आख़िर इश्क जिसके पास है


मैं 'सिया' हूँ ज़िन्दगी से प्यार मुझको है बहुत

मुझको तो हर एक पल से बस ख़ुशी की आस है


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ज़माना कब कहाँ कैसा मिलेगा

न तुझसा कोई न मुझसा मिलेगा


बिछड़ के मुझ से तुम को क्या मिलेगा

कहाँ इक दोस्त मुझ जैसा मिलेगा


मेरी आँखों की जानिब तुम ना देखो

यहाँ मौसम बहोत भीगा मिलेगा


मेरे कातिल को कोई इतना पूछे

मिटा के मुझको आखिर क्या मिलेगा


दिलों में प्यार का मौसम रहे तो

खिला हर शाख पर गुंचा मिलेगा


उसे सब दिल बातें बोल देंगे

ख़ुदा का नेक जो इक बंदा मिलेगा


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मेरे दिल को कभी इक पल न भूले से क़रार आये

सितम इतने करो मुझ पर के मेरा दम निकल जाये


ज़बां पर इस लिए पहरा लबों पर इस लिए ताले

जो सच्ची बात है ऐसा न हो मुंह से निकल जाए


मैं तुम से बाख़बर और तुम रहे हो बेख़बर मुझ से

मेरी क़िस्मत में ही कब हैं तुम्हारे प्यार के साये


बसा है जब से इक इन्सां का चेहरा मेरी आँखों में

वह मुझ से दूर हो फिर भी मुझे हर पल नज़र आये


मेरा मायूस दिल यूं तो 'सिया' ख़ामोश रहता है

धड़कता है मगर उस पल किसी की याद जब आये


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इन तुजुर्बो ने ये सिखाया है

ठोकरे खा के इल्म आया है


क्या हुआ आज कुछ तो बतलाओ

क्यों ये आंसू पलक तक आया है!


दुश्मनों ने तो कुछ लिहाज़ किया

दोस्तों ने बहुत सताया है!


आसमां, ज़िंदगी, जहाँ, हालात

हम को हर एक ने आज़माया है!


अब रुकेंगे तो सिर्फ़ मंजिल पर

सोचकर यह क़दम उठाया है!


ऐ 'सिया' हम हैं उस मक़ाम पर आज

धूप है सर पे और न साया है!


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दिल को क्यों करते हो छोटा

ना हो तुम इस कदर निराश!


आंसू तो मोती होते हैं,

रखो इनको अपने पास!


किसने जाना दर्द पराया

क्यों दूजे से रक्खे आस


दामन इतना फैला ले तू

दुःख भी आये तुझको रास


सुख दुःख आते जाते रहते

क्यों होती हैं सिया उदास


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मैं हिफाज़त से तेरा दर्दो अलम रखती हूँ

और खुशी मान के दिल में तेरा ग़म रखती हूँ।


मुस्कुरा देती हूँ जब सामने आता है कोई

इस तरह तेरी जफ़ाओं का भरम रखती हूँ।


हारना मैं ने नहीं सीखा कभी मुश्किल से

मुश्किलों आओ दिखादूं मैं जो दम रखती हूँ।


मुस्कुराते हुए जाती हूँ हर इक महफ़िल में

आँख को सिर्फ़ मैं तन्हाई में नम रखती हूँ


है तेरा प्यार इबादत मेरी पूजा मेरी

नाम ले केर तेरा मंदिर में क़दम रखती हूँ।


दोस्तों से न गिला है न शिकायत है 'सिया'

क्यों के मैं अपनों से उम्मीद ही कम रखती हूँ!


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उफ़ मैं इतना भी कर नहीं पाई

प्यार में तेरे मर नहीं पाई


सबका ग़म बांटती रही अब तक

अपने ग़म से उबर नहीं पाई


जिंदगी तुझसे हूँ मैं शर्मिंदा

रंग जो तुझ में भर नहीं पाई


मैंने इक इक शय संवारी हैं

सिर्फ किस्मत संवर नहीं पाई


मैंने उल्फत निभाई हैं तुझसे

तुमसे लेकिन वफ़ा नहीं पाई


कितनी मज़बूत है ये आस मेरी

टूट कर भी बिखर नहीं पाई


मैं हूँ इक ऐसी सुबह की भूली

शाम को भी जो घर नहीं आई


कह तो ली हैं ग़ज़ल सिया तुने

रंग शेरो में भर नहीं पाई


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सामने आँखों के सारे दिन सुहाने आ गए

याद हमको आज वह गुज़रे ज़माने आ गए


आज क्यूँ उन को हमारी याद आयी क्या हुआ

जो हमें ठुकरा चुके थे हक़ जताने आ गए


दिल के कुछ अरमान मुश्किल से गए थे दिल से दूर

ज़िन्दगी में फिर से वह हलचल मचाने आ गए


ग़ैर से शिकवा नहीं अपनों का बस यह हाल है

चैन से देखा हमें फ़ौरन सताने आ गए


उम्र भर शामो सहर मुझ से रहे जो बेख़बर

बाद मेरे क़ब्र पे आंसू बहाने आ गए


हैं 'सिया' के साथ उसके शेर और उसकी ग़ज़ल

हाथ अब उसके भी जीने के बहाने आ गए


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फख्र से इस जुर्म का इकरार होना चाहिए

इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिए


इस जहाँ में कोई ग़म ख्वार होना चाहिए

सबके दिल में प्यार ही बस प्यार होना चाहिए


तेज़ चलने के लिए मुझसे ही क्यूं कहते है आप

आप को भी कुछ तो कम रफ़्तार होना चाहिए


ग़मज़दा देखे मुझे और हंस पड़े बेसाख्ता

क्या भला ऐसा किसी का यार होना चाहिए


उफ़ तेरा तिरछी नज़र से मुझे यूँ देखना

तीर नज़रों का जिगर के पार होना चाहिए


खुद परस्ती हर तरफ हैं क्यों 'सिया'

न किसी की राह में दीवार होना चाहिए


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जो सीने में धड़कता दिल न होता

तो कोई प्यार के क़ाबिल न होता॥


अगर सच मुच वह होता मुझ से बरहम

मिरे दुःख में कभी शामिल ना होता॥


किसी का ज़ुल्म क्यूँ मज़लूम सहता

अगर वह इस क़दर बुज़दिल न होता॥


नज़र लगती सभी की उस हसीं को

जो उसके गाल पर इक तिल न होता॥


ज़मीर उसका अगर होता न मुर्दा

तो इक क़ातिल कभी क़ातिल न होता॥


सिया: महफ़िल में रौनक़ ख़ाक होती

अगर इक रौनक़े महफ़िल न होता॥


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ऐसे इन्सां कम ही मिलते हैं हमें संसार में

जो बिताएं ज़िंदगी का लम्हा लम्हा प्यार में


क्या बताएं हिज्र की शब किस तरह से की बसर

'करवटें लेते रहे शब भर फ़िराक़े यार में'


क्या करूं अब उसके पीछे पीछे चलना है मुझे

मेरा बेटा मुझ से आगे बढ़ गया रफ़्तार में


तेरा इमान ऐ बशर इक क़ीमती सामान था

चंद सिक्कों के लिए बेचा जिसे बाज़ार में


इश्क वाले ऐ 'सिया' कब इश्क से बाज़ आयेंगे

कोई राजा लाख चुन्वाए उन्हें दीवार में


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ज़िंदगी इस तरह बिताना है

अश्क पीना हैं मुस्कुराना हैं


आज फिर उसके पास जाना है

एक रूठे को फिर मानना है


हो के औरों के दरद-ओ-ग़म में शरीक

सब का ग़म अपना ग़म बनाना है


सिर्फ अपने गले लगे तो क्या

गैर को भी गले लगाना है


दर्द में कोइ मेरे साथ नहीं

साथ खुशियों में यह ज़माना है


जिस्म पर सर रहे, रहे न रहे

झूठ को जड़ से ही मिटाना हैं


क्यों सिया ज़ख्म चाहती हो नया

अपनी हिम्मत को आज़माना है?


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क्यों वह ताक़त के नशे में चूर है

आदमी क्यों इस क़दर मग़रूर है।


गुलसितां जिस में था रंगो नूर कल

आज क्यों बेरुंग है बेनूर है।


मेरे अपनों का करम है क्या कहूं

यह जो दिल में इक बड़ा नासूर है।


जानकर खाता है उल्फ़त में फरेब

दिल के आगे आदमी मजबूर है।


उसको 'मजनूँ' की नज़र से देखिये

यूँ लगेगा जैसे 'लैला' हूर है।


आप मेरी हर ख़ुशी ले लीजिये

मुझ को हर ग़म आप का मंज़ूर है।


जुर्म यह था मैं ने सच बोला 'सिया'

आज हर अपना ही मुझ से दूर है।


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अब जो बिखरे तो फिजाओं में सिमट जाएंगे

ओर ज़मीं वालों के एहसास से कट जाएंगे


मुझसे आँखें न चुरा, शर्म न कर, खौफ न खा

हम तेरे वास्ते हर राह से हट जाएंगे


आईने जैसी नजाकत है हमारी भी सनम

ठेस हलकी सी लगेगी तो चटक जाएंगे


हम-सफ़र तू है मेरा, मुझको गुमाँ था कैसा

ये न सोचा था कि तनहा ही भटक जाएंगे


प्यार का वास्ता दे कर मनाएगी 'सिया'

मेरे जज़्बात से कैसे वो पलट जाएंगे


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रात दिन बस मेरा यह हाल रहा

हर घड़ी तेरा ही ख्याल रहा


ज़ुल्म में तू भी बेमिसाल रहा

सब्र में मेरा भी कमाल रहा


मैं हूँ बरबाद और तू आबाद

कब मुझे इसका कुछ मलाल रहा


उस से मैं उम्र भर न पूछ सकी

दिल का दिल में ही इक सवाल रहा


मुझ से इक दिन भी वो खफा न हुआ

कितना अच्छा यह मेरा साल रहा


साथ उसका था हर कदम पे सिया

फिर भी दिल ये मेरा निढाल रहा


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यह तुम से किस ने कहा है कोई ख़ता ही न हो

बस इतनी शर्त है दुनिया को कुछ पता ही न हो


गुनाह करना है सबकी निगाह से बच कर

जगह इक ऐसी बताओ जहाँ खुदा ही न हो


हम अपने दौर के इन रहबरों से बाज़ आये

वह क्या दिखाएगा रस्ता जिसे पता ही न हो


वह कैसे समझे ग़मे इश्क का मज़ा क्या है

के जिस ने दर्दे मोहब्बत कभी सहा ही न हो


'सिया' वह शख्स करेगा किसी से ख़ाक वफ़ा

के जिस के दिल में कोई जज़ब्ये वफ़ा ही न हो


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