Famous Ghazal of Virendra Khare

नमस्कार  दोस्तों ,आशा करतें हैं की आप सभी सकुशल होंगे ,आज हमने आप सभी के लिए वीरेंद्र खरे  के कुछ बहुत ही अच्छे ग़ज़लों के collections किए हैं ,आशा करते हैं की आप सभी को ये ग़जलें  पसंद आएंगी । धन्यावाद!!




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भूल कर भेदभाव की बातें

आ करें कुछ लगाव की बातें


जाने क्या हो गया है लोगों को

हर समय बस दुराव की बातें


सैकड़ों बार पार की है नदी

वा रे काग़ज़ की नाव की बातें


है जो उपलब्ध उसकी बात करो

कष्ट देंगी अभाव की बातें


दो क़दम क़ाफ़िला चला भी नहीं

लो अभी से पड़ाव की बातें


तोड़ डाला है अल्प-वर्षा ने

नदियाँ भूलीं बहाव की बातें


मेरे नासूर दरकिनार हुए

छा गईं उनके घाव की बातें


ऐ 'अकेला' वो मोम के पुतले

कर रहे हैं अलाव की बातें


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पहले तेरी जेब टटोली जाएगी

फिर यारी की भाषा बोली जाएगी


तेरी तह ली जाएगी तत्परता से

ख़ुद के मन की गाँठ न खोली जाएगी


नैतिकता की मैली होती ये चादर

दौलत के साबुन से धो ली जाएगी


टूटी इक उम्मीद पे ये मातम कैसा

फिर कोई उम्मीद संजो ली जाएगी


कौन तुम्हारा दुख, अपना दुख समझेगा

दिखलाने को आँख भिगो ली जाएगी


कह दे, कह दे, फिर मुस्काकर कह दे तू

'तेरे ही घर मेरी डोली जाएगी'


झूठी शान 'अकेला' कितने दिन की है

एक ही बारिश में रंगोली जाएगी


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झूठ पर कुछ लगाम है कि नहीं

सच का कोई मक़ाम है कि नहीं


आ रहे हैं बहुत से 'पंडित' भी

जाम का इन्तज़ाम है कि नहीं


इसकी उसकी बुराईयाँ हर पल

तुमको कुछ काम-धाम है कि नहीं


सुबह पर हक़ जताने वाले बता

मेरे हिस्से में शाम है कि नहीं


रोना रोते हो किस ग़रीबी का

घर में सब तामझाम है कि नहीं


इतना मिलना भी कम नहीं यारो

हो गई राम-राम है कि नहीं


हाथ का मैल ही सही पैसा

सारी दुनिया ग़ुलाम है कि नहीं


इक नए ही लिबास में है ग़ज़ल

ये 'अकेला' का काम है कि नहीं


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कहाँ ख़ुश देख पाती है किसी को भी कभी दुनिया

सुकूँ में देखकर हमको न कर ले ख़ुदकुशी दुनिया


ख़ता मुझसे जो हो जाए, नज़रअंदाज़ कर देना

कभी मत रूठ जाना तुम, तुम्हीं से है मेरी दुनिया


अरे नादाँ, बस अपने काम से ही काम रक्खा कर

तुझे क्या लेना-देना है बुरी हो या भली दुनिया


मिला है राम को वनवास, यीशू को मिली सूली

हुई है आज तक किसकी सगी ये मतलबी दुनिया


समय का फेर है सब, इसको ही तक़दीर कहते हैं

हुआ आबाद कोई तो किसी की लुट गई दुनिया


जो पैसा हो तो सब अपने, न हो तो सब पराए हैं

ज़रा सी उम्र में ही मैंने यारो देख ली दुनिया


न हँसने दे, न रोने दे, न जीने दे, न मरने दे

करें तो क्या करें क्या चाहती है सरफिरी दुनिया


'अकेला' छोड़ दे हक़ बात पे अड़ने की ये आदत

सर आँखों पर बिठा लेगी तुझे भी आज की दुनिया


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वक़्त ढल पाया नहीं है शाम का

चल पड़ा है सिलसिला आराम का


काम का आगाज़ हो पाया नहीं

ख़ौफ़ ले डूबा बुरे अंजाम का


प्यास दो ही घूँट में बुझ जाएगी

सारा दरिया है मेरे किस काम का


मयकशों की लिस्ट में मेरा शुमार

नाम तक लेता नहीं मैं जाम का


है नज़र बेताब क़ासिद के लिए

मुन्तज़िर हूँ मैं तेरे पैग़ाम का


सोशलिस्टों की मशक्कत रायगाँ

फ़र्क़ मिट पाया न ख़ासो-आम का


ऐ 'अकेला' काम का कुछ भी नहीं

अब तो जो भी है वो है बस नाम का


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दूर से ही हाथ जोड़े हमने ऐसे ज्ञान से

जो किसी व्यक्तित्व का मापन करे परिधान से


डगमगाते हैं हवा के मंद झोंकों पर ही वो

किस तरह विश्वास हो टकराएँगे तूफ़ान से


देखकर चेहरा कठिन है आदमी पहचानना

है कहानी क्या, पता चलता नहीं उन्वान से


मूँद लीं आँखें हमी ने उनको कुछ लज्जा नहीं

बीच चौराहे पे वो नंगे खड़े हैं शान से


जो तुम्हें औरों को देना था वो क्या तुम दे चुके

हाँ में हो उत्तर तो फिर कुछ माँगना भगवान से


इतना धन मत जोड़ ले हो परिचितों से शत्रुता

जान का ख़तरा रहेगा खुद की ही संतान से


तितलियों को काग़ज़ी फूलों ने सम्मोहित किया

ऐ 'अकेला' फूल असली रह गए हैरान से


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काम है जिनका रस्ते-रस्ते बम रखना

उनके आगे पायल की छम-छम रखना


जो मैं बोलूँ आम तो वो बोले इमली

मुश्किल है उससे रिश्ता क़ायम रखना


दौलत के अंधों से उल्फ़त की बातें

दहके अंगारों पर क्या शबनम रखना


इक रूपये की तीन अठन्नी माँगेगी

इस दुनिया से लेना-देना कम रखना


सच्चाई की रखवाली को निकले हो

सीने पर गोली खाने का दम रखना


शासन ही बतलाए-क्यों आवश्यक है

पीतल की अँगूठी में नीलम रखना


देखो यार, मुझे घर जल्दी जाना है

जाम में मेरे आज ज़रा सी कम रखना


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बोले बग़ैर हिज्र का क़िस्सा सुना गया

सब दिल का हाल आपका चेहरा सुना गया


इस दौर में किसी को किसी का नहीं लिहाज़

बातें हज़ार अपना ही बेटा सुना गया


भूखे भले ही मरते, न करते उधारियाँ

सौ गालियाँ सवेरे से बनिया सुना गया


वो नाग है कि फन ही उठाता नहीं ज़रा

धुन बीन की हरेक सँपेरा सुना गया


दिल का सुकून छीनने आया था नामुराद

दिलचस्प एक क़िस्सा अधूरा सुना गया


उस रब के फै़सले का मुझे इन्तज़ार है

मुन्सिफ़ तो अपना फ़ैसला कब का सुना गया


क्यों मोम हो गई हैं ये पत्थर की मूरतें

क्या इनको अपना दर्द 'अकेला' सुना गया


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पूछो मत क्या हाल-चाल हैं

पंछी एक हज़ार जाल हैं


पथरीली बंजर ज़मीन है

बेधारे सारे कुदाल हैं


ऊँघे हैं गणितज्ञ नींद में

अनसुलझे सारे सवाल हैं


जिसकी हाँ में हाँ न मिलाओ

उसके ही अब नेत्र लाल हैं


होगी प्रगति पुस्तकालय की

मूषक जी अब ग्रंथपाल हैं


मंज़िल तक वो क्या पहुँचेंगे

जो दो पग चल कर निढाल हैं


जस की तस है जंग 'अकेला'

हाथों-हाथों रेतमाल हैं


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दिन बीता लो आई रात

जीवन की सच्चाई रात


अक्सर नापा करती है

आँखों की गहराई रात


सारी रात पे भारी है

शेष बची चौथाई रात


मेरे दिन के बदले फिर

लो उसने लौटाई रात


नखरे सुब्ह के देखे हैं

कब हमसे शरमाई रात


बिस्तर-बिस्तर लेटी है

कितनी है हरजाई रात


सोए नहीं 'अकेला' तुम

फिर किस तरह बिताई रात

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