दाव - पेचों की थैली -मुल्ला नससीरुद्दीन
बात उन दिनों की है जब खोजा की प्रसिद्धि देश-विदेश में फैल चुकी थी।
पड़ोसी मुल्क के बादशाह को जब इस बात का पत्ता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया।
उसने अपने मंत्रियों को बुलाकर कहा, सुना है कि हमारे पड़ोसी मुल्क में नसरुद्दीन खोजा नाम का एक
आदमी अपने बादशाह को हमेशा उल्लू बनाता रहता है, क्या यह सच है ?
हाँ, बादशाह सलामत, यह सच है। मंत्रियों ने जवाब दिया, हमने सुना है कि खोजै बड़ा अक्लमंद और
आलिम-फाजिल है।
उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता।
यह कैसे हो सकता है ? बादशाह बोला, एक मामूली आदमी आखिर इतना चतुर कैसे हो सकता है कि वह
बादशाह को भी मात दे सके।
आप सही फरमा रहे है हुजूर। हमे भी यकीन नहीं है।
अंत में बादशाह ने खोजा को मात देने के लिए स्वयं पड़ोसी राज्य में जाने का फैसला कर लिया ताकि वह यह
साबित कर सके कि एक बादशाह मामूली आदमी से कहीं ज्यादा अक्लमंद होता है।
खोजा के मुल्क में पहुंच कर बादशाह ने देखा कि एक आदमी खेत में काम कर रहा है।
बादशाह ने उसके निकट जाकर उससे पूछा, तुम्हारे मुल्क में नसरुद्दीन खोजा नाम का एक आदमी रहता है,
मैं उससे मिलना चाहता हूँ और देखना चाहता हूँ कि आखिर वह कितना अक्लमंद है।
यह सुनते ही उस आदमी ने जो खेत में काम कर रहा था और स्वयं ही खोजा था,
बादशाह की बात को भांप लिया और बोला, मैं ही नसरुद्दीन खोजा हूँ।
कहिए मैं आपकी क्या खिदमत कर सकता हूँ ?
ओह! तो तुम्हीं खोजा हो ? बादशाह कटाक्ष करता बोला, मैंने सुना है, तुम बड़े ही धोखेबाज हो ?
पर मैं तुम्हारे धोखे में हरगिज नहीं आऊंगा। क्या तुम मुझे झांसा दे सकते हो ?
जरूर! मैं आपको जरूर झांसा दे सकता हूँ।
खोजा ने उत्तर दिया, मगर ठहरिए, आपको कुछ देर इंतजार करना पड़ेगा।
मैं जरा घर जाकर अपनी दांव-पेंचों की थैली तो उठा लाऊँ, तब आपको झांसा दे सकूंगा।
अगर आप मेरे दांव-पेंचों से नहीं डरते, तो कुछ देर के लिए कृपया अपना घोड़ा मुझे दे दीजिये, ताकि मैं जल्दी
वापस लौट सकूं।
ठीक है ले आओ अपनी दांव-पेंचों की थैली।
ऐसी दस थैलियां भी मेरे सामने बेकार साबित होगी।
यह कहकर बादशाह अपने घोड़े से नीचे उत्तर गया और घोड़े की लगाम खोजा को थमा दी।
जल्दी जाओ और फौरन लौटकर आना। मैं तुम्हारे हर दांव-पेंच को नाकाम कर दूंगा।
खोजा उछलकर घोड़े पर सवार हो गया और कुछ ही पलों में बादशाह की नजरों से ओझल हो गया।
बादशाह उसकी बाट जोहता रहा। इंतजार करते-करते घंटों बीत गए।
तब सूरज पश्चिमी पहाड़ियों में दुब गया, तब भी खोजा के लौटने के आसार नजर नहीं आए।
अब तो बादशाह समझ गया कि वह खोजा के झांसे में आ ही गया है।
रात के अँधेरे में वह अपना-सा मुंह लेकर चुचाप अपने देश की ओर लौट पड़ा।
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