सबने पहना था बड़े शौक से कागज़ का लिबास जिस कदर लोग थे बारिश में नहाने वाले अदल के तुम न हमे आस दिलाओ क़त्ल हो जाते हैं , ज़ंज़ीर हिलाने वाले
इस नज़ाकत का बुरा हो , वो भले हैं तो क्या हाथ आएँ तो उन्हें हाथ लगाए न बने कह सके कौन के यह जलवागरी किस की है पर्दा छोड़ा है वो उस ने के उठाये न बने
कोई , दिन , गैर ज़िंदगानी और है अपने जी में हमने ठानी और है आतशे – दोज़ख में , यह गर्मी कहाँ , सोज़े -गुम्हा -ऐ -निहनी और है बारहन उनकी देखी हैं रंजिशें , पर कुछ अबके सिरगिरांनी और है दे के खत , मुहँ देखता है नामाबर , कुछ तो पैगामे जुबानी और है हो चुकी ‘ग़ालिब’, बलायें सब तमाम , एक मरगे -नागहानी और है
बहुत सही गम -ऐ -गति शराब कम क्या है गुलाम -ऐ-साक़ी -ऐ -कौसर हूँ मुझको गम क्या है तुम्हारी तर्ज़ -ओ -रवीश जानते हैं हम क्या है रक़ीब पर है अगर लुत्फ़ तो सितम क्या है सुख में खमा -ऐ -ग़ालिब की आतशफशनि यकीन है हमको भी लेकिन अब उस में दम क्या है
वफ़ा के ज़िक्र में ग़ालिब मुझे गुमाँ हुआ वो दर्द इश्क़ वफाओं को खो चूका होगा , जो मेरे साथ मोहब्बत में हद -ऐ -जूनून तक था वो खुद को वक़्त के पानी से धो चूका होगा , मेरी आवाज़ को जो साज़ कहा करता था मेरी आहोँ को याद कर के सो चूका होगा , वो मेरा प्यार , तलब और मेरा चैन -ओ -क़रार जफ़ा की हद में ज़माने का हो चूका होगा , तुम उसकी राह न देखो वो ग़ैर था साक़ी भुला दो उसको वो ग़ैरों का हो चूका होगा !
तू तो वो जालिम है जो दिल में रह कर भी मेरा न बन सका , ग़ालिब और दिल वो काफिर, जो मुझ में रह कर भी तेरा हो गया
हाँ दिल-ए-दर्दमंद ज़म-ज़मा साज़ क्यूँ न खोले दर-ए-ख़ज़िना-ए-राज़ ख़ामे का सफ़्हे पर रवाँ होना शाख़-ए-गुल का है गुल-फ़िशाँ होना मुझ से क्या पूछता है क्या लिखिये नुक़्ता हाये ख़िरदफ़िशाँ लिखिये बारे, आमों का कुछ बयाँ हो जाये ख़ामा नख़्ले रतबफ़िशाँ हो जाये आम का कौन मर्द-ए-मैदाँ है समर-ओ-शाख़, गुवे-ओ-चौगाँ है ताक के जी में क्यूँ रहे अर्माँ आये, ये गुवे और ये मैदाँ! आम के आगे पेश जावे ख़ाक फोड़ता है जले फफोले ताक न चला जब किसी तरह मक़दूर बादा-ए-नाब बन गया अंगूर ये भी नाचार जी का खोना है शर्म से पानी पानी होना है मुझसे पूछो, तुम्हें ख़बर क्या है आम के आगे नेशकर क्या है न गुल उस में न शाख़-ओ-बर्ग न बार जब ख़िज़ाँ आये तब हो उस की बहार और दौड़ाइए क़यास कहाँ जान-ए-शीरीँ में ये मिठास कहाँ जान में होती गर ये शीरीनी 'कोहकन' बावजूद-ए-ग़मगीनी
नवेदे-अम्न है बेदादे दोस्त जाँ के लिए रही न तर्ज़े-सितम कोई आसमाँ के लिए बला से गर मिज़्गाँ-ए-यार तश्ना-ए-ख़ूँ है रखूँ कुछ अपनी भी मि़ज़्गाँने-ख़ूँफ़िशाँ के लिए वो ज़िन्दा हम हैं कि हैं रूशनासे-ख़ल्क़ - ए -ख़िज्र न तुम कि चोर बने उम्रे-जाविदाँ के लिए रहा बला में भी मैं मुब्तिला-ए-आफ़ते-रश्क बला-ए-जाँ है अदा तेरी इक जहाँ, के लिए फ़लक न दूर रख उससे मुझे, कि मैं ही नहीं दराज़-ए-दस्ती-ए-क़ातिल के इम्तिहाँ के लिए मिसाल यह मेरी कोशिश की है कि मुर्ग़े-असीर सरे क़फ़स में फ़राहम ख़स आशियाँ के लिए गदा समझ के वो चुप था मेरी जो शामत आए उठा और उठ के क़दम, मैंने पासबाँ के लिए बक़द्रे-शौक़ नहीं ज़र्फ़े-तंगना-ए-ग़ज़ल कुछ और चाहिए वुसअत मेरे बयाँ के लिए दिया है ख़ल्क को भी ता उसे नज़र न लगे बना है ऐश तजम्मल हुसैन ख़ाँ के लिए ज़बाँ पे बारे-ख़ुदाया ये किसका नाम आया कि मेरे नुत्क़ ने बोसे मेरी ज़ुबाँ के लिए नसीरे-दौलत-ओ-दीं और मुईने-मिल्लत-ओ-मुल्क़ बना है चर्ख़े-बरीं जिसके आस्ताँ के लिए ज़माना अह्द में उसके है मह्वे आराइश बनेंगे और सितारे अब आसमाँ के लिए वरक़ तमाम हुआ और मदह बाक़ी है सफ़ीना चाहिए इस बह्रे- बेक़राँ के लिए अदा-ए-ख़ास से ‘ग़ालिब’ हुआ है नुक़्ता-सरा सला-ए-आम है याराने-नुक़्ता-दाँ के लिए
शुमार-ए सुबह मरग़ूब-ए बुत-ए-मुश्किल पसंद आया तमाशा-ए बयक-कफ़ बुरदन-ए सद दिल पसंद आया ब फ़ैज़-ए बे-दिली नौमीदी-ए जावेद आसां है कुशायिश को हमारा `उक़द-ए मुश्किल पसंद आया हवा-ए सैर-ए गुल आईना-ए बे-मिहरी-ए क़ातिल कि अंदाज़-ए ब ख़ूं-ग़लतीदन-ए बिस्मिल पसंद आया रवानियाँ -ए मौज-ए ख़ून-ए बिस्मिल से टपकता है कि लुतफ़-ए बे-तहाशा-रफ़तन-ए क़ातिल पसंद आया असद हर जा सुख़न ने तरह-ए बाग़-ए-तज़ डाली है मुझे रंग-ए बहार-ईजादी-ए बेदिल पसंद आया
आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है ताक़ते-बेदादे-इन्तज़ार नहीं है देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले नश्शा बअन्दाज़-ए-ख़ुमार नहीं है गिरिया निकाले है तेरी बज़्म से मुझ को हाये! कि रोने पे इख़्तियार नहीं है हम से अबस है गुमान-ए-रन्जिश-ए-ख़ातिर ख़ाक में उश्शाक़ की ग़ुब्बार नहीं है दिल से उठा लुत्फे-जल्वाहा-ए-म'आनी ग़ैर-ए-गुल आईना-ए-बहार नहीं है क़त्ल का मेरे किया है अहद तो बारे वाये! अगर अहद उस्तवार नहीं है तू ने क़सम मैकशी की खाई है "ग़ालिब" तेरी क़सम का कुछ ऐतबार नहीं है
बूए-गुल, नाला-ए-दिल, दूदे चिराग़े महफ़िल जो तेरी बज़्म से निकला सो परीशाँ निकला। चन्द तसवीरें-बुताँ चन्द हसीनों के ख़ुतूत, बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला।
बिजली इक कौंद गयी आँखों के आगे तो क्या, बात करते कि मैं लब तश्नए-तक़रीर भी था । पकड़े जाते हैं फरिश्तों के लिखे पर नाहक़, आदमी कोई हमारा, दमे-तहरीर भी था ?
कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तूने हमनशीं इक तीर मेरे सीने में मारा के हाये हाये
ख़ुश हो ऐ बख़्त कि है आज तेरे सर सेहरा बाँध शहज़ादा जवाँ बख़्त के सर पर सेहरा क्या ही इस चाँद-से मुखड़े पे भला लगता है है तेरे हुस्ने-दिल अफ़रोज़ का ज़ेवर सेहरा सर पे चढ़ना तुझे फबता है पर ऐ तर्फ़े-कुलाह मुझको डर है कि न छीने तेरा लंबर सेहरा नाव भर कर ही पिरोए गए होंगे मोती वर्ना क्यों लाए हैं कश्ती में लगाकर सेहरा सात दरिया के फ़राहम किए होंगे मोती तब बना होगा इस अंदाज़ का ग़ज़ भर सेहरा रुख़ पे दूल्हा के जो गर्मी से पसीना टपका है रगे-अब्रे-गुहरबार सरासर सेहरा ये भी इक बेअदबी थी कि क़बा से बढ़ जाए रह गया आन के दामन के बराबर सेहरा जी में इतराएँ न मोती कि हमीं हैं इक चीज़ चाहिए फूलों का भी एक मुक़र्रर सेहरा जब कि अपने में समावें न ख़ुशी के मारे गूँथें फूलों का भला फिर कोई क्योंकर सेहरा रुख़े-रौशन की दमक गौहरे-ग़ल्ताँ की चमक क्यूँ न दिखलाए फ़रोग़े-मह-ओ-अख़्तर सेहरा तार रेशम का नहीं है ये रगे-अब्रे-बहार लाएगा ताबे-गिराँबारि-ए गौहर सेहरा हम सुख़नफ़हम हैं ‘ग़ालिब’ के तरफ़दार नहीं देखें इस सेहरे से कह दे कोई बढ़कर सेहरा
फिर हुआ वक़्त कि हो बालकुशा मौजे-शराब दे बते मय को दिल-ओ-दस्ते शना मौजे-शराब पूछ मत वजहे-सियहमस्ती -ए-अरबाबे-चमन साया-ए-ताक में होती है हवा मौजे-शराब है ये बरसात वो मौसम कि अजब क्या है अगर मौजे-हस्ती को करे फ़ैज़े-हवा मौजे शराब जिस क़दर रूहे-नबाती है जिगर तश्ना-ए-नाज़ दे है तस्कीं ब-दमे- आबे-बक़ा मौजे-शराब बस कि दौड़े है रगे-ताक में ख़ूँ हो-हो कर शहपरे-रंग से है बालकुशा मौजे-शराब मौज-ए-गुल से चराग़ाँ है गुज़रगाहे ख़याल है तसव्वुर में जिबस जल्वानुमा मौजे-शराब नश्शे के पर्दे में है मह्वे तमाशा -ए-दिमाग़ बस कि रखती है सरे- नश-ओ-नुमा मौजे शराब एक आलम पे है तूफ़ानी-ए-कैफ़ीयते-फ़स्ल मौज -ए-सब्ज़ा-ए-नौख़ेज़ से ता मौजे-शराब शरहे -हंगामा-ए-हस्ती है, ज़हे मौसमे-गुल रहबरे-क़तरा ब-दरिया है ख़ुशा मौजे-शराब होश उड़ते हैं मेरे जल्वा-ए-गुल देख असद फिर हुआ वक़्त कि हो बालकुशा मौजे-शराब
हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझसे मेरी रफ़्तार से भागे है बयाबाँ मुझसे दर्से-उन्वाने-तमाशा बा-तग़ाफ़ुल ख़ुशतर है निगहे- रिश्ता-ए-शीराज़ा-ए-मिज़गाँ वहशते-आतिशे-दिल से शबे-तन्हाई में सूरते-दूद रहा साया गुरेज़ाँ मुझसे ग़मे-उश्शाक़ न हो सादगी आमोज़े-बुताँ किस क़दर ख़ाना-ए- आईना है वीराँ मुझसे असरे-आब्ला से है जादा-ए-सहरा-ए-जुनूँ सूरते-रिश्ता-ए-गोहर है चराग़ाँ मुझसे बेख़ुदी बिस्तरे-तम्हीदे-फ़राग़त हो जो पुर है साये की तरह मेरा शस्बिस्ताँ मुझसे शौक़े-दीदार में गर तू मुझे गर्दन मारे हो निगह मिस्ले-गुले-शम्मअ परीशाँ मुझसे बेकसी हाए शबे-हिज्र की वहशत है ये साया ख़ुरशीदे-क़यामत में है पिन्हाँ मुझसे गर्दिशे-साग़रे-सद जल्वा-ए-रंगीं तुझसे आईना दारी-ए-यक दीद-ए-हैराँ मुझसे निगह-ए-गर्म से इक आग टपकती है ‘असद’ है चराग़ाँ ख़स-ओ-ख़ाशाके-गुलिस्ताँ मुझसे
तुम न आए तो क्या सहर न हुई हाँ मगर चैन से बसर न हुई मेरा नाला सुना ज़माने ने एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई
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