पुराने जमाने की बात है| अरब के लोगों में हातिमताई अपनी उदारता के लिए दूर-दूर तक मशहूर था| वह सबको खुले हाथों दान देता था| सब उसकी तारीफ करते थे|
एक दिन उसने बहुत बड़ी दावत दी| जो चाहे, वह उसमें शामिल हो सकता था| हातिमताई कुछ सरदारों को लेकर दूर के मेहमानों को बुलावा देने जा रहा था|
रास्ते में देखता क्या है कि एक लकड़हारे ने लकड़ियां काटकर एक गट्ठर तैयार किया है, उसकी गुजर-बसर लकड़ियां बेचकर ही होती थी| वह पसीना-पसीना हो रहा था, थककर चूर-चूर हो गया था|
हातिमताई ने उससे कहा - "ओ भाई! जब हातिमताई दावत देता है, तो तुम क्यों इतनी मेहनत करते हो दावत में शरीक क्यों नहीं हो जाते?"
लकड़हारे ने जवाब दिया - "जो अपनी रोटी आप कमाते हैं उन्हें किसी हातिमताई की उदारता की आवश्यकता नहीं होती|"
हातिमताई भौचक्का होकर उसे देखता रहा गया|
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