💠💠💠
बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं
मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं
ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो
चले हो तो ठहर जाने का नहीं
सितारे नोच कर ले जाऊंगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं
वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नहीं
वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर जालिम से डर जाने का नहीं
💠💠💠
💠💠💠
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा करके
दिल के बाज़ार में बैठे हैँ ख़सारा करके
आसमानो की तरफ फेक दिया है मैंने
चंद मिट्टी के चिरागों को सितारा करके
एक चिन्गारी नज़र आई थी बस्ती मेँ उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा करके
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भंवर है जिसकी
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके
आते जाते है कई रंग मेरे चेहरे पर
लोग लेते है मज़ा जिक्र तुम्हारा करके
मुन्तज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे
चाँद को छत पे बुला लूँगा इशारा करके
💠💠💠
💠💠💠
सिर्फ खंजर ही नहीं आँखों में पानी चाहिए,
ऐ खुदा दुश्मन भी मुझको खानदानी चाहिए
मैंने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिआ,
एक समन्दर कह रहा था मुझको पानी चाहिए।
सिर्फ खबरों की ज़मीने देके मत बहलाइये
राजधानी दी थी हमने, राजधानी चाहिए
💠💠💠
💠💠💠
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं
जो दुनिया में सुनाई दे उसे कहते है ख़ामोशी
जो आँखों में दिखाई दे उसे तूफान कहते है
जो ये दीवार का सुराख है साज़िश का हिस्सा है
मगर हम इसको अपने घर का रोशनदान कहते हैं
ये ख्वाहिश दो निवालों की हमें बर्तन की हाजत क्या
फ़क़ीर अपनी हथेली को ही दस्तरख्वान कहते हैं
मेरे अंदर से एक-एक करके सब कुछ हो गया रुखसत
मगर एक चीज़ बाकी है जिसे ईमान कहते हैं
💠💠💠
💠💠💠
गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या-क्या है
मैं आ गया हूँ बता इन्तज़ाम क्या-क्या है
फक़ीर शेख कलन्दर इमाम क्या-क्या है
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या है
अमीर-ए-शहर के कुछ कारोबार याद आए
मैँ रात सोच रहा था हराम क्या-क्या है
💠💠💠
💠💠💠
अगर खिलाफ है होने दो जान थोड़ी है,
ये सब धुँआ है कोई आसमान थोड़ी है |
लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में,
यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है |
हमारे मुह से जो निकले वही सदाकत है,
हमरे मुह में तुम्हारी जबान थोड़ी है |
मै जानता हूँ कि दुश्मन भी कम नहीं है,
लेकिन हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है |
आज शाहिबे मसनद है कल नहीं होंगे,
किरायेदार है जात्ती मकान थोड़ी है |
सभी का खून है शामिल इस मिट्टी में,
किसे के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है |
💠💠💠
💠💠💠
मेरे हुजरे में नहीं और कही पर रख दो,
आसमा लाये हो ले आओ जमी पर रख दो |
मैंने जिस ताक में कुछ टूटे दीए रखे हैं
चाँद तारों को भी ले जाके वही पर रख दो
अब कहा ढूंढने जाओगे हमारे कातिल,
आप तो क़त्ल का इल्जाम हमी पर रख दो |
हो वो जमुना का किनारा ये कोई शर्त नहीं
मिट्टी मिट्टी ही में रखनी है कही पर रख दो
💠💠💠
💠💠💠
हम अपने आसुओ को चुन रहे है
सितारे किस लिए जल-भून रहे है
कभी उसका तबस्सुम छू गया था
उजाले आजतक सर धुन रहे है
अभी मत छेड़िये जिक्र-ए-महोब्बत
जलालुद्दीन अकबर सुन रहे है
जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का
सलीम, हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं
💠💠💠
💠💠💠
कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया
इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया
अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया
रातों को चांदनी के भरोसें ना छोड़ना
सूरज ने जुगनुओं को ख़बरदार कर दिया
रुक रुक के लोग देख रहे है मेरी तरफ
तुमने ज़रा सी बात को अखबार कर दिया
इस बार एक और भी दीवार गिर गयी
बारिश ने मेरे घर को हवादार कर दिया
बोला था सच तो ज़हर पिलाया गया मुझे
अच्छाइयों ने मुझे गुनहगार कर दिया
दो गज सही ये मेरी मिलकियत तो हैं
ऐ मौत तूने मुझे ज़मीदार कर दिया
💠💠💠
💠💠💠
नई हवाओं कि सोभत बिगाड़ देती है,
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है |
जो जुर्म करते है इतने बुरे नहीं होते,
सजा न देके अदालत बिगाड़ देती है |
मिलाना चाहा है इंसा को जब भी इंसा से,
तो सारे काम सियासत बिगाड़ देती है |
हमारे पीर तकीमीर ने कहा था कभी,
मिया ये आशिकी इज्जत बिगाड़ देती है |
ये चलती-फिरती दुकानों की तरह होते है
नए अमीरों को दौलत बिगाड़ देती है
💠💠💠
💠💠💠
कभी अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे,
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे |
मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उसका,
इरादा मैंने किया था कि छोड़ दूँगा उसे |
पसीने बाँटता फिरता है हर तरफ़ सूरज,
कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूँगा उसे |
बदन चुरा के वो चलता है मुझ से शीशा-बदन,
उसे ये डर है कि मैं तोड़ फोड़ दूँगा उसे |
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को,
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे |
💠💠💠
💠💠💠
मुझमे कितने राज़ हैं, बतलाऊं क्या
बन्द एक मुद्दत से हूं, खुल जाऊं क्या ?
आजिजी, मिन्नत, ख़ुशामद, इल्तिजा,
और मैं क्या क्या करूँ, मर जाऊं क्या ?
कल यहां मैं था जहां तुम आज हो
मैं तुम्हारी ही तरह इतराऊं क्या?
तेरे जलसे में तेरा परचम लिए
सैकड़ों लाशें भी हैं गिनवाऊं क्या ?
एक पत्थर है वो मेरी राह का,
गर न ठुकराऊं, तो ठोकर खाऊं क्या?
फिर जगाया तूने सोये शेर को
फिर वही लहजा दराज़ी ! आऊं क्या ?
💠💠💠
💠💠💠
काम सब ग़ैर-ज़रूरी हैं जो सब करते हैं
और हम कुछ नहीं करते हैं ग़ज़ब करते हैं
आप की नज़रों में सूरज की है जितनी अज़्मत
हम चराग़ों का भी उतना ही अदब करते हैं
हम पे हाकिम का कोई हुक्म नहीं चलता है
हम क़लंदर हैं शहंशाह लक़ब करते हैं
देखिए जिस को उसे धुन है मसीहाई की
आज कल शहर के बीमार मतब करते हैं
ख़ुद को पत्थर सा बना रक्खा है कुछ लोगों ने
बोल सकते हैं मगर बात ही कब करते हैं
एक एक पल को किताबों की तरह पढ़ने लगे उम्र भर
जो न किया हम ने वो अब करते हैं
💠💠💠
💠💠💠
चेहरों के लिए आईने कुर्बान किये हैं,
इस शौक में अपने बड़े नुकसान किये हैं,
महफ़िल में मुझे गालियाँ देकर है बहुत खुश,
जिस शख्स पर मैंने बड़े एहसान किये है।
💠💠💠
💠💠💠
उसे अब के वफाओं से गुजर जाने की जल्दी थी
मगर इस बार मुझ को अपने घर जाने की जल्दी थी
इरादा था कि मैं कुछ देर तूफाँ का मज़ा लेता
मगर बेचारे दरिया को उतर जाने की जल्दी थी
मैं अपनी मुट्ठियों मैं क़ैद कर लेता ज़मीनों को
मगर मेरे क़बीले को बिखर जाने की जल्दी थी
मैं आखिर कौनसा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुजर जाने की जल्दी थी
वो शाखों से जुदा होते हुए पत्तों पे हँसते थे
बड़े जिंदा-नज़र थे जिन को मर जाने की जल्दी थी
मैं साबित किस तरह करता कि हर आईना झूठा है
कई कम-ज़र्फ़ चेहरों को उतर जाने की जल्दी थी
💠💠💠
💠💠💠
लवे दीयों की हवा में उछालते रहना
गुलो के रंग पे तेजाब डालते रहना
मैं नूर बन के ज़माने में फ़ैल जाऊँगा
तुम आफताब में कीड़े निकालते रहना
💠💠💠
💠💠💠
जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव
मैं तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे
तेरा सवाल है साकी के ज़िन्दगी क्या है
जवाब देता हु पहले मुझे शराब तो दे
💠💠💠
💠💠💠
सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे,
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान रहे ।
ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल,
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे ।
वो शख्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता हैं,
तुम उसको दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे ।
मुझे ज़मीं की गहराइयों ने दबा लिया,
मैं चाहता था मेरे सर पे आसमान रहे ।
अब अपने बीच मरासिम नहीं अदावत है,
मगर ये बात हमारे ही दरमियान रहे ।
सितारों की फसलें उगा ना सका कोई,
मेरी ज़मीं पे कितने ही आसमान रहे ।
वो एक सवाल है फिर उसका सामना होगा,
दुआ करो कि सलामत मेरी ज़बान रहे ।
💠💠💠
💠💠💠
तुफानो से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो
मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो
तुमको तुम्हारा फ़र्ज़ मुबारख, हमको मुबारख अपना सुलूक
हम फूलो की शाख तराशे, तुम चाकू पर धार करो
फूलो की दुकाने खोलो, खुशबु का व्यापार करो
इश्क खता हैं, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
💠💠💠
💠💠💠
उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वो भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
इश्क-विश्क के सारे नुस्खे मुझसे सिखते है
ताहिर-वाहिर, मंज़र-वंज़र, जोहर-वोहर सब
आखिर मैं किस दिन डूबूंगा फ़िक्रें करते हैं
कश्ती-वश्ती, दरिया-वरिया, लंगर-वंगर सब
💠💠💠
💠💠💠
जा के ये कह दे कोई शोलों से चिंगारी से
फूल इस बार खिले हैं बड़ी तैयारी से
अपनी हर साँस को नीलाम किया है मैंने
लोग आसान हुए हैं बड़ी दुश्वारी से
ज़हन में जब भी तेरे ख़त की इबारत चमकी
एक खुश्बू सी निकलने लगी अलमारी से
शाहज़ादे से मुलाक़ात तो ना-मुमकिन है
चलिए मिल आते है चल कर किसी दरबारी से
बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के न लिए
हम ने खैरात भी माँगी है तो खुद्दारी से
💠💠💠
💠💠💠
बन के इक हादसा बाज़ार में आ जाएगा
जो नहीं होगा वो अखबार में आ जाएगा
चोर उचक्कों की करो कद्र, की मालूम नहीं
कौन, कब, कौन सी सरकार में आ जाएगा
अपनी साहिल से ये अंगारे हटालो वरना
सारा पानी मेरी तलवार में आ जाएगा
💠💠💠
💠💠💠
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं
मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं
नींद से मेरा त’अल्लुक़ ही नहीं बरसों से
ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं
मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए
और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं
💠💠💠
💠💠💠
साँसों की सीडियों से उतर आई जिंदगी
बुझते हुए दिए की तरह, जल रहे हैं हम
उम्रों की धुप, जिस्म का दरिया सुखा गयी
हैं हम भी आफताब, मगर ढल रहे हैं हम
💠💠💠
💠💠💠
इश्क में जीत के आने के लिए काफी हूँ
मैं निहत्था ही ज़माने के लिए काफी हूँ
हर हकीकत को मेरी, ख्वाब समझनेवाले
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ
मेरे बच्चो मुझे दिल खोल के तुम खर्च करो
मै अकेला ही कमाने के लिए काफी हूँ
एक अख़बार हूँ, औकात ही क्या मेरी
मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ
💠💠💠
💠💠💠
दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चेहरों पे दोहरी नका़ब रखते हैं
हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं
बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आश्ना भी नहीं
इसी में खुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं
ये मैकदा है, वो मस्जिद है, वो है बुत-खाना
कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं
हमारे शहर के मंजर न देख पायेंगे
यहाँ के लोग तो आँखों में ख्वाब रखते हैं
💠💠💠
💠💠💠
राज़ जो कुछ हो इशारों में बता भी देना
हाथ जब उससे मिलाना तो दबा भी देना
वैसे इस खत में कोई बात नहीं है
फिर भी एतिहातन इसे पढ़ लो तो जला भी देना
नशा वेसे तो बुरी शै है, मगर
“राहत” से सुनना हो तो थोड़ी सी पिला भी देना
💠💠💠
💠💠💠
इन्तेज़ामात नए सिरे से संभाले जाएँ
जितने कमजर्फ हैं महफ़िल से निकाले जाएँ
मेरा घर आग की लपटों में छुपा हैं लेकिन
जब मज़ा हैं तेरे आँगन में उजाला जाएँ
गम सलामत हैं तो पीते ही रहेंगे लेकिन
पहले मयखाने की हालत संभाली जाए
खाली वक्तों में कहीं बैठ के रोलें यारों
फुरसतें हैं तो समंदर ही खंगाले जाए
खाक में यु ना मिला ज़ब्त की तौहीन ना कर
ये वो आसूं हैं जो दुनिया को बहा ले जाएँ
हम भी प्यासे हैं ये अहसास तो हो साकी को
खाली शीशे ही हवाओं में उछाले जाए
आओ शहर में नए दोस्त बनाएं “राहत”
आस्तीनों में चलो साँप ही पाले जाए
💠💠💠
💠💠💠
ये हादसा तो किसी दिन गुज़रने वाला था
मैं बच भी जाता तो इक रोज़ मरने वाला था
तेरे सलूक तेरी आगही की उम्र दराज़
मेरे अज़ीज़ मेरा ज़ख़्म भरने वाला था
बुलंदियों का नशा टूट कर बिखरने लगा
मेरा जहाज़ ज़मीन पर उतरने वाला था
मेरा नसीब मेरे हाथ काट गए वर्ना
मैं तेरी माँग में सिंदूर भरने वाला था
मेरे चिराग मेरी शब मेरी मुंडेरें हैं
मैं कब शरीर हवाओं से डरने वाला था
💠💠💠
💠💠💠
इससे पहले की हवा शोर मचाने लग जाए
मेरे “अल्लाह” मेरी ख़ाक ठिकाने लग जाए
घेरे रहते हैं खाली ख्वाब मेरी आँखों को
काश कुछ देर मुझे नींद भी आने लग जाए
साल भर ईद का रास्ता नहीं देखा जाता
वो गले मुझसे किसी और बहाने लग जाए
💠💠💠
💠💠💠
दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनों की भी राय ली जाए
मौत का ज़हर हैं फिजाओं में
अब कहा जा के सांस ली जाए
बस इसी सोच में हु डूबा हुआ
ये नदी कैसे पार की जाए
मेरे माज़ि के ज़ख्म भरने लगे
आज फिर कोई भूल की जाए
बोतलें खोल के तो पि बरसों
आज दिल खोल के पि जाए
💠💠💠
💠💠💠
फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए
कट गई है उम्र सारी जिनकी पत्थर तोड़ते
अब तो इन हाथो में कोहिनूर होना चाहिए
अपने हाथों से बनाया है खुदा ने आपको
आपको थोड़ा बहुत मगरूर होना चाहिए
💠💠💠
💠💠💠
यही ईमान लिखते हैं, यही ईमान पढ़ते हैं
हमें कुछ और मत पढवाओ, हम कुरान पढ़ते हैं
यहीं के सारे मंजर हैं, यहीं के सारे मौसम हैं
वो अंधे हैं, जो इन आँखों में पाकिस्तान पढ़ते हैं
💠💠💠
💠💠💠
चलते फिरते हुए महताब दिखाएंगे तुम्हें ,
हमसे मिलना कभी, पंजाब दिखाएंगे तुम्हें |
चांद हर छत पर है, सूरज है हर आंगन में,
नींद से जागो तो कुछ ख्वाब दिखाएंगे तुम्हें |
रेत बन जाता है, उड़ जाता है सारा पानी
जून में गांव का तालाब दिखाएंगे तुम्हे
पूछते क्या हो कि रुमाल के पीछे क्या है,
फिर किसी रोज ये सैलाब दिखाएंगे तुम्हें |
💠💠💠
💠💠💠
इस दुनिया ने मेरी वफ़ा का कितना ऊँचा मोल दिया,
पैरों में जंजीरे डाली हाथों में कश्कोल दिया
जब भी कोई इनाम मिला है मेरा नाम भी भूल गए,
जब भी कोई इलज़ाम लगा है मुझ पे लाकर ढोल दिया
अब गम आये, खुशिया आये, मौत आये, या तू आये,
मैंने तो बस आहट पायी और दरवाज़ा खोल दिया।
💠💠💠
💠💠💠
मौसमो का ख़याल रखा करो
कुछ लहू में उबाल रखा करो
जिंदगी रोज़ मरती रहती है
ठीक से देखभाल रखा करो
जाने कब सच का सामना हो जाए
कोई रास्ता निकाल रखा करो
गालिबो को रखो दिमागों में
दिल यागना मिसाल रखा करो
सुलाह करते रहा करो हर दिन
दुश्मनो को निढाल रखा करो
खाली खाली उदास आँखे
ईनमे कुछ ख्वाब पाल रखा करो
धुप पर सारा काम छोड़ दिया
खून में कुछ उछाल रखा करो
फिर वो चाकू चला नहीं सकता
हाथ गर्दन में डाल रखा करो
लाख सूरज से दोस्ताना हो
चंद जुगनू भी पाल रखा करो
💠💠💠
💠💠💠
अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं
पता चला हैं की मेहमान आने वाले हैं
इन्हें जहाज़ की उचाईयो से क्या मतलब
ये लोग सिर्फ कबूतर उड़ाने वाले है
हमें हक़ीर न जानो, हम अपने नेज़े से
ग़ज़ल की आँखों में काजल लगाने वाले है
💠💠💠
💠💠💠
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं
मंज़िलें रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ायम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मे यारी रखो
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ले तो आए शायरी बाज़ार में 'राहत' मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो
💠💠💠
💠💠💠
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए
दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया
फिर न कहना जो अयानत में खयानत हो जाए
जुगनुओं तुमको नए चान्द उगाने होंगे...
इससे पहले की अंधेरो की हुकूमत हो जाए...
उखड़े पड़ते हैं मेरी कब्र के पत्थर हर दिन...
तुम जो आ जाओ किसी दिन तो मरम्मत हो जाये...
💠💠💠
💠💠💠
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें
💠💠💠
💠💠💠
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं
कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं
ये कैचियाँ हमें उड़ने से खाक रोकेंगी
की हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं
💠💠💠
💠💠💠
हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक “ताजमहल” रखा हैं
💠💠💠
💠💠💠
नए सफ़र का नया इंतज़ाम कह देंगे
हवा को धुप, चरागों को शाम कह देंगे
किसी से हाथ भी छुप कर मिलाइए
वरना इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे
💠💠💠
💠💠💠
जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे
भुलादे मुझको मगर, मेरी उंगलियों के निशान
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे
💠💠💠
💠💠💠
इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए
क्या जरुरी है करे विषपान हम शिव की तरह
सिर्फ जामुन खा लिए और होंठ नीले हो गए
💠💠💠
💠💠💠
सरहदों पर तनाव है क्या
ज़रा पता तो करो चुनाव हैं क्या
खौफ़ बिखरा है दोनों सम्तों में
तीसरी सम्त का दबाव है क्या
💠💠💠
💠💠💠
ये सहारा जो न हो तो परेशां हो जाए
मुश्किलें जान ही लेले अगर आसान हो जाए
ये कुछ लोग फरिस्तों से बने फिरते हैं
मेरे हत्थे कभी चढ़ जाये तो इन्सां हो जाए
💠💠💠
💠💠💠
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं
मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता
कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता हैं
कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर
अपने रास्ते में जो वीरान महल पड़ता हैं
ना त-आरूफ़ ना त-अल्लुक हैं मगर दिल अक्सर
नाम सुनता हैं तुम्हारा तो उछल पड़ता हैं
उसकी याद आई हैं साँसों ज़रा धीरे चलो
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
💠💠💠
💠💠💠
सुला चुकी थी ये दुनिया थपक थपक के मुझे
जगा दिया तेरी पाज़ेब ने खनक के मुझे
कोई बताये के मैं इसका क्या इलाज करूँ
परेशां करता है ये दिल धड़क धड़क के मुझे
ताल्लुकात में कैसे दरार पड़ती है
दिखा दिया किसी कमज़र्फ ने छलक के मुझे
हमें खुद अपने सितारे तलाशने होंगे
ये एक जुगनू ने समझा दिया चमक के मुझे
बहुत सी नज़रें हमारी तरफ हैं महफ़िल में
इशारा कर दिया उसने ज़रा सरक के मुझे
मैं देर रात गए जब भी घर पहुँचता हूँ
वो देखती है बहुत छान के फटक के मुझे
💠💠💠
💠💠💠
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो
ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो
दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर
नीम की पत्तियों को चबाया करो
शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो
अपने सीने में दो गज़ ज़मीं बाँधकर
आसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करो
चाँद सूरज कहाँ, अपनी मंज़िल कहाँ
ऐसे वैसों को मुँह मत लगाया करो
💠💠💠
💠💠💠
जो मेरा दोस्त भी है, मेरा हमनवा भी है
वो शख्स, सिर्फ भला ही नहीं, बुरा भी है
मैं पूजता हूँ जिसे, उससे बेनियाज़ भी हूँ
मेरी नज़र में वो पत्थर भी है खुदा भी है
सवाल नींद का होता तो कोई बात ना थी
हमारे सामने ख्वाबों का मसला भी है
जवाब दे ना सका, और बन गया दुश्मन
सवाल था, के तेरे घर में आईना भी है
ज़रूर वो मेरे बारे में राय दे लेकिन
ये पूछ लेना कभी मुझसे वो मिला भी है
💠💠💠
💠💠💠
मोम के पास कभी आग को लाकर देखूँ
सोचता हूँ के तुझे हाथ लगा कर देखूँ
कभी चुपके से चला आऊँ तेरी खिलवत में
और तुझे तेरी निगाहों से बचा कर देखूँ
मैने देखा है ज़माने को शराबें पी कर
दम निकल जाये अगर होश में आकर देखूँ
दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है
सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगा कर देखूँ
तेरे बारे में सुना ये है के तू सूरज है
मैं ज़रा देर तेरे साये में आ कर देखूँ
याद आता है के पहले भी कई बार यूं ही
मैने सोचा था के मैं तुझको भुला कर देखूँ
💠💠💠
💠💠💠
वफ़ा को आज़माना चाहिए था,
हमारा दिल दुखाना चाहिए था
आना न आना मेरी मर्ज़ी है,
तुमको तो बुलाना चाहिए था
हमारी ख्वाहिश एक घर की थी,
उसे सारा ज़माना चाहिए था
मेरी आँखें कहाँ नम हुई थीं,
समुन्दर को बहाना चाहिए था
जहाँ पर पंहुचना मैं चाहता हूँ,
वहां पे पंहुच जाना चाहिए था
हमारा ज़ख्म पुराना बहुत है,
चरागर भी पुराना चाहिए था
मुझसे पहले वो किसी और की थी,
मगर कुछ शायराना चाहिए था
चलो माना ये छोटी बात है,
पर तुम्हें सब कुछ बताना चाहिए था
तेरा भी शहर में कोई नहीं था,
मुझे भी एक ठिकाना चाहिए था
कि किस को किस तरह से भूलते हैं,
तुम्हें मुझको सिखाना चाहिए था
ऐसा लगता है लहू में हमको,
कलम को भी डुबाना चाहिए था
अब मेरे साथ रह के तंज़ ना कर,
तुझे जाना था जाना चाहिए था
क्या बस मैंने ही की है बेवफाई,
जो भी सच है बताना चाहिए था
मेरी बर्बादी पे वो चाहता है,
मुझे भी मुस्कुराना चाहिए था
बस एक तू ही मेरे साथ में है,
तुझे भी रूठ जाना चाहिए था
हमारे पास जो ये फन है मियां,
हमें इस से कमाना चाहिए था
अब ये ताज किस काम का है,
हमें सर को बचाना चाहिए था
उसी को याद रखा उम्र भर कि,
जिसको भूल जाना चाहिए था
मुझसे बात भी करनी थी,
उसको गले से भी लगाना चाहिए था
उसने प्यार से बुलाया था,
हमें मर के भी आना चाहिए था
तुम्हे ‘सतलज ‘ उसे पाने की खातिर,
कभी खुद को गवाना चाहिए था !
💠💠💠
💠💠💠
सर पर बोझ अँधियारों का है मौला खैर
और सफ़र कोहसारों का है मौला खैर
दुशमन से तो टक्कर ली है सौ-सौ बार
सामना अबके यारों का है मौला खैर
इस दुनिया में तेरे बाद मेरे सर पर
साया रिश्तेदारों का है मौला खैर
दुनिया से बाहर भी निकलकर देख चुके
सब कुछ दुनियादारों का है मौला खैर
और क़यामत मेरे चराग़ों पर टूटी
झगड़ा चाँद-सितारों का है मौला खैर
💠💠💠
💠💠💠
हवा खुद अब के हवा के खिलाफ है, जानी
दिए जलाओ के मैदान साफ़ है, जानी
हमे चमकती हुई सर्दियों का खौफ नहीं
हमारे पास पुराना लिहाफ है, जानी
वफ़ा का नाम यहाँ हो चूका बहुत बदनाम
मैं बेवफा हूँ मुझे ऐतराफ है, जानी
है अपने रिश्तों की बुनियाद जिन शरायत पर
वही से तेरा मेरा इख्तिलाफ है, जानी
वो मेरी पीठ में खंज़र उतार सकता है
के जंग में तो सभी कुछ मुआफ है, जानी
मैं जाहिलों में भी लहजा बदल नहीं सकता
मेरी असास यही शीन-काफ है, जानी
💠💠💠
💠💠💠
जो मंसबो के पुजारी पहन के आते हैं।
कुलाह तौक से भारी पहन के आते है।
अमीर शहर तेरे जैसी क़ीमती पोशाक
मेरी गली में भिखारी पहन के आते हैं।
यही अकीक़ थे शाहों के ताज की जीनत
जो उँगलियों में मदारी पहन के आते हैं।
इबादतों की हिफाज़त भी उनके जिम्मे हैं।
जो मस्जिदों में सफारी पहन के आते हैं।
💠💠💠
💠💠💠
धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो न
बाबा मेरे नाम का बादल भेजो न
मोल्सरी की शाख़ों पर भी दिये जलें
शाख़ों का केसरिया आँचल भेजो न
नन्ही मुन्नी सब चेहकारें कहाँ गईं
मोरों के पैरों की पायल भेजो न
बस्ती बस्ती दहशत किसने बो दी है
गलियों बाज़ारों की हलचल भेजो न
सारे मौसम एक उमस के आदी हैं
छाँव की ख़ुश्बू, धूप का संदल भेजो न
मैं बस्ती में आख़िर किस से बात करूँ
मेरे जैसा कोई पागल भेजो न
💠💠💠
💠💠💠
पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं
ज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं
मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर में
मगर यहाँ भी समन्दर निकलने लगते हैं
हसीन लगते हैं जाड़ों में सुबह के मंज़र
सितारे धूप पहनकर निकलने लगते हैं
बुरे दिनों से बचाना मुझे मेरे मौला
क़रीबी दोस्त भी बचकर निकलने लगते हैं
बुलन्दियों का तसव्वुर भी ख़ूब होता है
कभी कभी तो मेरे पर निकलने लगते हैं
अगर ख़्याल भी आए कि तुझको ख़त लिक्खूँ
तो घोंसलों से कबूतर निकलने लगते हैं
💠💠💠
💠💠💠
कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं
मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहाँ
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं
आँसुओं और शराबों में गुजारी है हयात
मैंने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं
जाने क्या टूटा है पैमाना कि दिल है मेरा
बिखरे-बिखरे हैं खयालात मुझे होश नहीं
💠💠💠
💠💠💠
अँधेरे चारों तरफ़ सायं-सायं करने लगे
चिराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे
तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर
ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे
लहूलुहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे
ज़मीं पे आ गए आँखों से टूट कर आँसू
बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे
झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले
वो धूप है कि शजर इलतिजाएँ करने लगे
अजीब रंग था मजलिस का, ख़ूब महफ़िल थी
सफ़ेद पोश उठे काएँ-काएँ करने लगे
💠💠💠
💠💠💠
समन्दरों में मुआफिक हवा चलाता है
जहाज़ खुद नहीं चलते खुदा चलाता है
ये जा के मील के पत्थर पे कोई लिख आये
वो हम नहीं हैं, जिन्हें रास्ता चलाता है
वो पाँच वक़्त नज़र आता है नमाजों में
मगर सुना है कि शब को जुआ चलाता है
ये लोग पांव नहीं जेहन से अपाहिज हैं
उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है
हम अपने बूढे चिरागों पे खूब इतराए
और उसको भूल गए जो हवा चलाता है
💠💠💠
💠💠💠
पेशानियों पे लिखे मुक़द्दर नहीं मिले|
दस्तार कहाँ मिलेंगे जहाँ सर नहीं मिले|
आवारगी को डूबते सूरज से रब्त है,
मग़रिब के बाद हम भी तो घर पर नहीं मिले|
कल आईनों का जश्न हुआ था तमाम रात,
अन्धे तमाशबीनों को पत्थर नहीं मिले|
मैं चाहता था ख़ुद से मुलाक़ात हो मगर,
आईने मेरे क़द के बराबर नहीं मिले|
परदेस जा रहे हो तो सब देखते चलो,
मुमकिन है वापस आओ तो ये घर नहीं मिले|
💠💠💠
💠💠💠
शहर में ढूंढ रहा हूँ कि सहारा दे दे|
कोई हातिम जो मेरे हाथ में कासा दे दे|
पेड़ सब नगेँ फ़क़ीरों की तरह सहमे हैं,
किस से उम्मीद ये की जाये कि साया दे दे|
वक़्त की सगँज़नी नोच गई सारे नक़श,
अब वो आईना कहाँ जो मेरा चेहरा दे दे|
दुश्मनों की भी कोई बात तो सच हो जाये,
आ मेरे दोस्त किसी दिन मुझे धोखा दे दे|
मैं बहुत जल्द ही घर लौट के आ जाऊँगा,
मेरी तन्हाई यहाँ कुछ दिनों पेहरा दे दे|
डूब जाना ही मुक़द्दर है तो बेहतर वरना,
तूने पतवार जो छीनी है तो तिनका दे दे|
जिस ने क़तरों का भी मोहताज किया मुझ को,
वो अगर जोश में आ जाये तो दरिया दे दे|
तुम को "राहत" की तबीयत का नहीं अन्दाज़ा,
वो भिखारी है मगर माँगो तो दुनिया दे दे|
💠💠💠
💠💠💠
आँख प्यासी है कोई मन्ज़र दे,
इस जज़ीरे को भी समन्दर दे|
अपना चेहरा तलाश करना है,
गर नहीं आइना तो पत्थर दे|
बन्द कलियों को चाहिये शबनम,
इन चिराग़ों में रोशनी भर दे|
पत्थरों के सरों से कर्ज़ उतार,
इस सदी को कोई पयम्बर दे|
क़हक़हों में गुज़र रही है हयात,
अब किसी दिन उदास भी कर दे|
फिर न कहना के ख़ुदकुशी है गुनाह,
आज फ़ुर्सत है फ़ैसला कर दे|
💠💠💠
💠💠💠
मस्जिदों के सहन तक जाना बहुत दुश्वार था|
देर से निकला तो मेरे रास्ते में दार था|
अपने ही फैलाओ के नशे में खोया था दरख़्त,
और हर मासूम टहनी पर फलों का भार था|
देखते ही देखते शहरों की रौनक़ बन गया,
कल यही चेहरा था जो हर आईने पे भार था|
सब के दुख सुख़ उस के चेहरे पे लिखे पाये गये,
आदमी क्या था हमारे शहर का अख़बार था|
अब मोहल्ले भर के दरवाज़ों पे दस्तक है नसीब,
एक ज़माना था कि जब मैं भी बहुत ख़ुद्दार था|
काग़ज़ों की सब सियाही बारिशों में धुल गई,
हम ने जो सोचा तेरे बारे में सब बेकार था|
💠💠💠
💠💠💠
हर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना न कहो|
ये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो|
न जाने कौन सी मज़बूरीओं का क़ैदी हो,
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो|
तमाम शहर ने नेज़ों पे क्यूँ उछाला मुझे,
ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इस को हादसा न कहो|
ये और बात कि दुश्मन हुआ है आज मगर,
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो|
हमारे ऐब हमें उँगलियों पे गिनवाओ,
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो|
मैं वक़ियात की ज़न्जीर का नहीं क़ायल,
मुझे भी अपने गुनाहों का सिलसिला न कहो|
ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी है "राहत",
हर एक तराशे हुये बुत को देवता न कहो|
💠💠💠
💠💠💠
चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया|
आईना सारे शहर की बीनाई ले गया|
डूबे हुए जहाज़ पे क्या तब्सरा करें,
ये हादसा तो सोच की गहराई ले गया|
हालाँकि बेज़ुबान था लेकिन अजीब था,
जो शख़्स मुझ से छीन के गोयाई ले गया|
इस वक़्त तो मैं घर से निकलने न पाऊँगा,
बस एक कमीज़ थी जो मेरा भाई ले गया|
झूठे क़सीदे लिखे गये उस की शान में,
जो मोतीयों से छीन के सच्चाई ले गया|
यादों की एक भीड़ मेरे साथ छोड़ कर,
क्या जाने वो कहाँ मेरी तन्हाई ले गया|
अब असद तुम्हारे लिये कुछ नहीं रहा,
गलियों के सारे संग तो सौदाई ले गया|
अब तो ख़ुद अपनी साँसें भी लगती हैं बोझ सी,
उमरों का देव सारी तवनाई ले गया|
💠💠💠
💠💠💠
बीमार को मर्ज़ की दवा देनी चाहिए
वो पीना चाहता है पिला देनी चाहिए
अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में
है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए
ये दिल किसी फ़कीर के हुज़रे से कम नहीं
ये दुनिया यही पे लाके छुपा देनी चाहिए
मैं फूल हूँ तो फूल को गुलदान हो नसीब
मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए
मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाईये मुझे
मैं नीद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए
मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद, हो
मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए
मैं ताज हूँ तो ताज को सर पे सजायें लोग
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए
सच बात कौन है जो सरे-आम कह सके
मैं कह रहा हूँ मुझको सजा देनी चाहिए
सौदा यही पे होता है हिन्दोस्तान का
संसद भवन में आग लगा देनी चाहिए
💠💠💠
💠💠💠
दिल जलाया तो अंजाम क्या हुआ मेरा
लिखा है तेज हवाओं ने मर्सिया मेरा
कहीं शरीफ नमाज़ी कहीं फ़रेबी पीर
कबीला मेरा नसब मेरा सिलसिला मेरा
किसी ने जहर कहा है किसी ने शहद कहा
कोई समझ नहीं पाता है जायका मेरा
मैं चाहता था ग़ज़ल आस्मान हो जाये
मगर ज़मीन से चिपका है काफ़िया मेरा
मैं पत्थरों की तरह गूंगे सामईन में था
मुझे सुनाते रहे लोग वाकिया मेरा
उसे खबर है कि मैं हर्फ़-हर्फ़ सूरज हूँ
वो शख्स पढ़ता रहा है लिखा हुआ मेरा
जहाँ पे कुछ भी नहीं है वहाँ बहुत कुछ है
ये कायनात तो है खाली हाशिया मेरा
बुलंदियों के सफर में ये ध्यान आता है
ज़मीन देख रही होगी रास्ता मेरा
💠💠💠
💠💠💠
मेरे कारोबार में सबने बड़ी इम्दाद की
दाद लोगों की, गला अपना, ग़ज़ल उस्ताद की
अपनी साँसें बेचकर मैंने जिसे आबाद की
वो गली जन्नत तो अब भी है मगर शद्दाद की
उम्र भर चलते रहे आँखों पे पट्टी बाँध कर
जिंदगी को ढ़ूंढ़ने में जिंदगी बर्बाद की
दास्तानों के सभी किरदार गुम होने लगे
आज कागज़ चुनती फिरती है परी बगदाद की
इक सुलगता चीखता माहौल है और कुछ नहीं
बात करते हो यगाना किस अमीनाबाद की
💠💠💠
💠💠💠
सारी बस्ती क़दमों में है, ये भी इक फ़नकारी है
वरना बदन को छोड़ के अपना जो कुछ है सरकारी है
कालेज के सब लड़के चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिये
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
फूलों की ख़ुश्बू लूटी है, तितली के पर नोचे हैं
ये रहजन का काम नहीं है, रहबर की मक़्क़ारीहै
हमने दो सौ साल से घर में तोते पाल के रखे हैं
मीर तक़ी के शेर सुनाना कौन बड़ी फ़नकारी है
अब फिरते हैं हम रिश्तों के रंग-बिरंगे ज़ख्म लिये
सबसे हँस कर मिलना-जुलना बहुत बड़ी बीमारी है
दौलत बाज़ू हिकमत गेसू शोहरत माथा गीबत होंठ
इस औरत से बच कर रहना, ये औरत बाज़ारी है
कश्ती पर आँच आ जाये तो हाथ कलम करवा देना
लाओ मुझे पतवारें दे दो, मेरी ज़िम्मेदारी है
💠💠💠
💠💠💠
शहरों-शहरों गाँव का आँगन याद आया
झूठे दोस्त और सच्चा दुश्मन याद आया
पीली पीली फसलें देख के खेतों में
अपने घर का खाली बरतन याद आया
गिरजा में इक मोम की मरियम रखी थी
माँ की गोद में गुजरा बचपन याद आया
देख के रंगमहल की रंगीं दीवारें
मुझको अपना सूना आँगन याद आया
जंगल सर पे रख के सारा दिन भटके
रात हुई तो राज-सिंहासन याद आया
💠💠💠
💠💠💠
अपने होने का हम इस तरह पता देते थे
खाक मुट्ठी में उठाते थे, उड़ा देते थे
बेसमर जान के हम काट चुके हैं जिनको
याद आते हैं के बेचारे हवा देते थे
उसकी महफ़िल में वही सच था वो जो कुछ भी कहे
हम भी गूंगों की तरह हाथ उठा देते थे
अब मेरे हाल पे शर्मिंदा हुये हैं वो बुजुर्ग
जो मुझे फूलने-फलने की दुआ देते थे
अब से पहले के जो क़ातिल थे बहुत अच्छे थे
कत्ल से पहले वो पानी तो पिला देते थे
वो हमें कोसता रहता था जमाने भर में
और हम अपना कोई शेर सुना देते थे
घर की तामीर में हम बरसों रहे हैं पागल
रोज दीवार उठाते थे, गिरा देते थे
हम भी अब झूठ की पेशानी को बोसा देंगे
तुम भी सच बोलने वालों के सज़ा देते थे
💠💠💠
💠💠💠
किसी आहू के लिये दूर तलक मत जाना
शाहज़ादे कहीं जंगल में भटक मत जाना
इम्तहां लेंगे यहाँ सब्र का दुनिया वाले
मेरी आँखों ! कहीं ऐसे में चलक मत जाना
जिंदा रहना है तो सड़कों पे निकलना होगा
घर के बोसीदा किवाड़ों से चिपक मत जाना
कैंचियां ढ़ूंढ़ती फिरती हैं बदन खुश्बू का
खारे सेहरा कहीं भूले से महक मत जाना
ऐ चरागों तुम्हें जलना है सहर होने तक
कहीं मुँहजोर हवाओं से चमक मत जाना
💠💠💠
💠💠💠
तू शब्दों का दास रे जोगी
तेरा कहाँ विश्वास रे जोगी
इक दिन विष का प्याला पी जा
फिर न लगेगी प्यास रे जोगी
ये सांसों का बन्दी जीवन
किसको आया रास रे जोगी
विधवा हो गई सारी नगरी
कौन चला वनवास रे जोगी
पुर आई थी मन की नदिया
बह गए सब एहसास रे जोगी
इक पल के सुख की क्या क़ीमत
दुख हैं बारह मास रे जोगी
बस्ती पीछा कब छोड़ेगी
लाख धरे सन्यास रे जोगी
💠💠💠
💠💠💠
काली रातों को भी रंगीन कहा है मैंने
तेरी हर बात पे आमीन कहा है मैंने
तेरी दस्तार पे तन्कीद की हिम्मत तो नहीं
अपनी पापोश को कालीन कहा है मैंने
मस्लेहत कहिये इसे या के सियासत कहिये
चील-कौओं को भी शाहीन कहा है मैंने
ज़ायके बारहा आँखों में मज़ा देते हैं
बाज़ चेहरों को भी नमकीन कहा है मैंने
तूने फ़न की नहीं शिजरे की हिमायत की है
तेरे ऐजाज़ को तौहीन कहा है मैंने
💠💠💠
💠💠💠
झूठी बुलंदियों का धुँआ पार कर के आ
क़द नापना है मेरा तो छत से उतर के आ
इस पार मुंतज़िर हैं तेरी खुश-नसीबियाँ
लेकिन ये शर्त है कि नदी पार कर के आ
कुछ दूर मैं भी दोशे-हवा पर सफर करूँ
कुछ दूर तू भी खाक की सुरत बिखर के आ
मैं धूल में अटा हूँ मगर तुझको क्या हुआ
आईना देख जा ज़रा घर जा सँवर के आ
सोने का रथ फ़क़ीर के घर तक न आयेगा
कुछ माँगना है हमसे तो पैदल उतर के आ
💠💠💠
💠💠💠
धोका मुझे दिये पे हुआ आफ़ताब का
ज़िक्रे-शराब में भी है नशा शराब का
जी चाहता है बस उसे पढ़ते ही जायें
चेहरा है या वर्क है खुदा की किताब का
सूरजमुखी के फूल से शायद पता चले
मुँह जाने किसने चूम लिया आफ़ताब का
मिट्टी तुझे सलाम की तेरे ही फ़ैज़ से
आँगन में लहलहाता है पौधा गुलाब का
उठो ऐ चाँद-तारों ऐ शब के सिपाहियों
आवाज दे रहा है लहू आफ़ताब का
💠💠💠
💠💠💠
अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे जिद्दी हैं परिंदे के उड़ा भी न सकूँ
फूँक डालूँगा किसी रोज ये दिल की दुनिया
ये तेरा खत तो नहीं है कि जला भी न सकूँ
मेरी गैरत भी कोई शय है कि महफ़िल में मुझे
उसने इस तरह बुलाया है कि जा भी न सकूँ
इक न इक रोज कहीं ढ़ूँढ़ ही लूँगा तुझको
ठोकरें ज़हर नहीं हैं कि मैं खा भी न सकूँ
फल तो सब मेरे दरख्तों के पके हैं लेकिन
इतनी कमजोर हैं शाखें कि हिला भी न सकूँ
मैंने माना कि बहुत शख्त है ग़ालिब की ज़मीन
क्या मेरे शेर है ऐसे की सुना भी न सकूँ
💠💠💠
💠💠💠
एक दिन देखकर उदास बहुत
आ गए थे वो मेरे पास बहुत ।
ख़ुद से मैं कुछ दिनों से मिल न सका
लोग रहते हैं आस-पास बहुत ।
अब गिरेबाँ बा-दस्त हो जाओ
कर चुके उनसे इल्तेमास बहुत ।
किसने लिक्खा था शहर का नोहा
लोग पढ़कर हुए उदास बहुत ।
अब कहाँ हम-से पीने वाले रहे
एक टेबल पे इक गिलास बहुत ।
तेरे इक ग़म ने रेज़ा-रेज़ा किया
वर्ना हम भी थे ग़म-श्नास बहुत ।
कौन छाने लुगात का दरिया
आप का एक इक्तेबास बहुत ।
ज़ख्म की ओढ़नी, लहू की कमीज़
तन सलामत रहे लिबास बहुत ।
💠💠💠
💠💠💠
ये ज़िन्दगी सवाल थी जवाब माँगने लगे
फरिश्ते आ के ख़्वाब मेँ हिसाब माँगने लगे
इधर किया करम किसी पे और इधर जता दिया
नमाज़ पढ़के आए और शराब माँगने लगे
सुख़नवरों ने ख़ुद बना दिया सुख़न को एक मज़ाक
ज़रा-सी दाद क्या मिली ख़िताब माँगने लगे
दिखाई जाने क्या दिया है जुगनुओं को ख़्वाब मेँ
खुली है जबसे आँख आफताब माँगने लगे
💠💠💠
💠💠💠
तेरे वादे की तेरे प्यार की मोहताज नहीं
ये कहानी किसी किरदार की मोहताज नहीं
खाली कशकोल पे इतराई हुई फिरती है
ये फकीरी किसी दस्तार की मोहताज नहीं
लोग होठों पे सजाये हुए फिरते हैं मुझे
मेरी शोहरत किसी अखबार की मोहताज नहीं
इसे तूफ़ान ही किनारे से लगा सकता है
मेरी कश्ती किसी पतवार की मोहताज नहीं
मैंने मुल्कों की तरह लोगों के दिल जीते हैं
ये हुकूमत किसी तलवार की मोहताज नहीं
💠💠💠
💠💠💠
किसका नारा, कैसा कौल, अल्लाह बोल
अभी बदलता है माहौल, अल्लाह बोल
कैसे साथी, कैसे यार, सब मक्कार
सबकी नीयत डांवाडोल, अल्लाह बोल
जैसा गाहक, वैसा माल, देकर ताल
कागज़ में अंगारे तोल, अल्लाह बोल
हर पत्थर के सामने रख दे आइना
नोच ले हर चेहरे का खोल, अल्लाह बोल
दलालों से नाता तोड़, सबको छोड़
भेज कमीनो पर लाहौल, अल्लाह बोल
इंसानों से इंसानों तक एक सदा
क्या ततारी, क्या मंगोल, अल्लाह बोल
शाख-ए-सहर पे महके फूल अज़ानों के
फ़ेंक रजाई, आंखें खोल, अल्लाह बोल
💠💠💠
💠💠💠
मौका है इस बार, रोज़ मना त्यौहार, अल्लाह बादशाह
अपनी है सरकार, सातों दिन इतवार, अल्लाह बादशाह
तेरी ऊँची ज़ात, लश्कर तेरे साथ, तेरे सौ सौ हाथ
तू भी है तैयार, हम भी हैं तैयार, अल्लाह बादशाह
सबकी अपनी फ़ौज, ये मस्ती वो मौज, सब हैं राजा भोज
शेख, मुग़ल, अंसार, सबकी ज़हनी बीमार, अल्लाह बादशाह
दिल्ली ता लाहौर, जंगल चारों और, जिसको देखो चोर
काबुल और कंधार, तोड़ दे ये दीवार, अल्लाह बादशाह
फर्क न इनके बीच, ये बन्दर वो रीछ, सबकी रस्सी खींच
सारे हैं मक्कार, सबको ठोकर मार,अल्लाह बादशाह
पढ़े लिखे बेकार, दर दर हैं फ़नकार, आलिम फ़ाज़िल ख्वार
जाहिल, ढोर, गंवार, कौम हैं सरदार, अल्लाह बादशाह
💠💠💠
💠💠💠
बढ़ गयी है के घट गयी दुनिया
मेरे नक़्शे से कट गयी दुनिया
तितलियों में समा गया मंज़र
मुट्ठियों में सिमट गयी दुनिया
अपने रस्ते बनाये खुद मैंने
मेरे रस्ते से हट गयी दुनिया
एक नागन का ज़हर है मुझमे
मुझको डस कर पलट गयी दुनिया
कितने खानों में बंट गए हम तुम
कितनी हिस्सों में बंट गयी दुनिया
जब भी दुनिया को छोड़ना चाहा
मुझसे आकर लिपट गयी दुनिया
💠💠💠
💠💠💠
अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है
बस्तियाँ छोड़ के जाने को कहा जाता है
पत्तियाँ रोज़ गिरा जाती है ज़हरीली हवा
और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है
💠💠💠
💠💠💠
कल तक दर दर फिरने वाले, घर के अन्दर बैठे हैं
और बेचारे घर के मालिक, दरवाज़े पर बैठे हैं
खुल जा सिम सिम याद है किसको, कौन कहे और कौन सुने
गूंगे बाहर चीख रहे हैं, बहरे अन्दर बैठे हैं
💠💠💠
💠💠💠
नदी ने धूप से क्या कह दिया रवानी में
उजाले पाँव पटकने लगे हैं पानी में
ये कोई और ही किरदार है तुम्हारी तरह
तुम्हारा ज़िक्र नहीं है मेरी कहानी में
अब इतनी सारी शबों का हिसाब कौन रखे
बड़े सवाब कमाए गए जवानी में
चमकता रहता है सूरज-मुखी में कोई और
महक रहा है कोई और रात-रानी में
ये मौज मौज नई हलचलें सी कैसी हैं
ये किस ने पाँव उतारे उदास पानी में
मैं सोचता हूँ कोई और कारोबार करूँ
किताब कौन ख़रीदेगा इस गिरानी में
💠💠💠
💠💠💠
तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची
ज़ुल्फ़ कन्धे से जो सरकी तो कमर तक पहुँची
मैंने पूछा था कि ये हाथ में पत्थर क्यों है
बात जब आगे बढी़ तो मेरे सर तक पहुँची
मैं तो सोया था मगर बारहा तुझ से मिलने
जिस्म से आँख निकल कर तेरे घर तक पहुँची
तुम तो सूरज के पुजारी हो तुम्हे क्या मालुम
रात किस हाल में कट-कट के सहर तक पहुँची
एक शब ऐसी भी गुजरी है खयालों में तेरे
आहटें जज़्ब किये रात सहर तक पहुँची
💠💠💠
💠💠💠
कभी दिमाग़ कभी दिल कभी नज़र में रहो
ये सब तुम्हारे ही घर हैं किसी भी घर में रहो
जला न लो कहीं हमदर्दियों में अपना वजूद
गली में आग लगी हो तो अपने घर में रहो
तुम्हें पता ये चले घर की राहतें क्या हैं
हमारी तरह अगर चार दिन सफ़र में रहो
है अब ये हाल कि दर दर भटकते फिरते हैं
ग़मों से मैं ने कहा था कि मेरे घर में रहो
किसी को ज़ख़्म दिए हैं किसी को फूल दिए
बुरी हो चाहे भली हो मगर ख़बर में रहो
💠💠💠
💠💠💠
वो एक एक बात पे रोने लगा था,
समुंदर आबरू खोने लगा था !
लगे रहते थे सब दरवाज़े फिर भी,
मैं आँखें खोल कर सोने लगा था !
चुराता हूँ अब आँखें आइनों से,
ख़ुदा का सामना होने लगा था !
वो अब आईने धोता फिर रहा है,
उसे चेहरे पे शक होने लगा था !
मुझे अब देख कर हँसती है दुनिया,
मैं सब के सामने रोने लगा था !!
💠💠💠
💠💠💠
हम ने ख़ुद अपनी रहनुमाई की,
और शोहरत हुई ख़ुदाई की !
मैं ने दुनिया से मुझ से दुनिया ने,
सैकड़ों बार बेवफ़ाई की !
खुले रहते हैं सारे दरवाज़े,
कोई सूरत नहीं रिहाई की !
टूट कर हम मिले थे पहली बार,
वो शुरूआत थी जुदाई की !
मंज़िलें चूमती हैं मेरे क़दम,
दाद दीजे शिकस्ता-पाई की !
सोए रहते हैं ओढ़ कर ख़ुद को,
अब ज़रूरत नहीं रज़ाई की !
हम ने ख़ुद अपनी रहनुमाई की,
और शोहरत हुई ख़ुदाई की !!
💠💠💠
💠💠💠
शजर हैं अब समर-आसार मेरे
चले आते हैं दावेदार मेरे
मुहाजिर हैं न अब अंसार मेरे
मुख़ालिफ़ हैं बहुत इस बार मेरे
यहाँ इक बूँद का मुहताज हूँ मैं
समुंदर हैं समुंदर पार मेरे
अभी मुर्दों में रूहें फूँक डालें
अगर चाहें तो ये बीमार मेरे
हवाएँ ओढ़ कर सोया था दुश्मन
गए बेकार सारे वार मेरे
मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ
यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे
हँसी में टाल देना था मुझे भी
ख़ता क्यूँ हो गए सरकार मेरे
तसव्वुर में न जाने कौन आया
महक उट्ठे दर-ओ-दीवार मेरे
तुम्हारा नाम दुनिया जानती है
बहुत रुस्वा हैं अब अशआर मेरे
भँवर में रुक गई है नाव मेरी
किनारे रह गए इस पार मेरे
मैं ख़ुद अपनी हिफ़ाज़त कर रहा हूँ
अभी सोए हैं पहरे-दार मेरे
💠💠💠
💠💠💠
हौसले ज़िंदगी के देखते हैं
चलिए! कुछ रोज़ जी के देखते हैं
नींद पिछली सदी से ज़ख़्मी है
ख़्वाब अगली सदी के देखते हैं
रोज़ हम एक अंधेरी धुँध के पार
काफ़िले रौशनी के देखते हैं
धूप इतनी कराहती क्यों है
छाँव के ज़ख़्म सी के देखते हैं
टकटकी बाँध ली है आँखों ने
रास्ते वापसी के देखते हैं
बारिशों से तो प्यास बुझती नहीं
आइए ज़हर पी के देखते हैं
💠💠💠
💠💠💠
चराग़ों का घराना चल रहा है
हवा से दोस्ताना चल रहा है
जवानी की हवाएँ चल रही हैं
बुज़ुर्गों का ख़ज़ाना चल रहा है
मेंरी गुम-गश्तगी पर हँसने वालो
मेंरे पीछे ज़माना चल रहा है
अभी हम ज़िंदगी से मिल न पाए
तआरुफ़ ग़ाएबाना चल रहा है
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
वही दुनिया वही साँसें वही हम
वही सब कुछ पुराना चल रहा है
ज़ियादा क्या तवक़्क़ो हो ग़ज़ल से
मियाँ बस आब-ओ-दाना चल रहा है
समुंदर से किसी दिन फिर मिलेंगे
अभी पीना-पिलाना चल रहा है
वही महशर वही मिलने का व'अदा
वही बूढ़ा बहाना चल रहा है
यहाँ इक मदरसा होता था पहले
मगर अब कार-ख़ाना चल रहा है
💠💠💠
💠💠💠
मुझे डुबो के बहुत शर्मसार रहती है
वो एक मौज जो दरिया के पार रहती है
हमारे ताक़ भी बे-ज़ार हैं उजालों से
दिए की लौ भी हवा पर सवार रहती है
फिर उस के बाद वही बासी मंज़रों के जुलूस
बहार चंद ही लम्हे बहार रहती है
इसी से क़र्ज़ चुकाए हैं मैं ने सदियों के
ये ज़िंदगी जो हमेशा उधार रहती है
हमारी शहर के दानिशवरों से यारी है
इसी लिए तो क़बा तार तार रहती है
मुझे ख़रीदने वालो क़तार में आओ
वो चीज़ हूँ जो पस-ए-इश्तिहार रहती है
💠💠💠
💠💠💠
बैठे बैठे कोई ख़याल आया,
ज़िंदा रहने का फिर सवाल आया !
कौन दरियाओं का हिसाब रखे,
नेकियाँ नेकियों में डाल आया !
ज़िंदगी किस तरह गुज़ारी जाये,
ज़िंदगी भर न ये कमाल आया !
झूठ बोला है कोई आईना वर्ना,
पत्थर में कैसे बाल आया !
वो जो दो-गज़ ज़मीं थी मेरे नाम,
आसमाँ की तरफ़ उछाल आया !
क्यूँ ये सैलाब सा है आँखों में,
मुस्कुराए था मैं ख़याल आया !!
💠💠💠
💠💠💠
तेरा मेरा नाम ख़बर में रहता था
दिन बीते, एक सौदा सर में रहता था
मेरा रस्ता तकता था एक चांद कहीं
मैं सूरज के साथ सफ़र में रहता था
सारे मंज़र गोरे-गोरे लगते थे
जाने किस का रूप नज़र में रहता था
मैंने अक्सर आंखें मूंद के देखा है
एक मंज़र जो पस-मंज़र मे रहता था
काठ की कश्ती पीठ थपकती रहती थी
दरियाओं का पांव भंवर में रहता था
उजली उजली तस्वीरें सी बनती हैं
सुनते हैं अल्लाह बशर में रहता था
मीलों तक हम चिड़ियों से उड़ जाते थे
कोई मेरे साथ सफ़र में रहता था
सुस्ताती है गर्मी जिस के साये में
ये पौधा कल धूप नगर में रहता था
धरती से जब खुद को जोड़े रहते थे
ये सारा आकाश असर में रहता था
सच का बोझ उठाये हूँ अब पलकों पर
पहले मैं भी ख़्वाब नगर में रहता था
💠💠💠
💠💠💠
अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ
मैं चाहता था चिराग़ों को आफ़्ताब करूँ
बुतों से मुझको इजाज़त अगर कभी मिल जाए
तो शहर-भर के ख़ुदाओं को बे-नक़ाब करूँ
मैं करवटों के नए ज़ाविये लिखूँ शब-भर
ये इश्क़ है तो कहाँ ज़िंदगी अज़ाब करूँ
है मेरे चारों तरफ़ भीड़ गूँगे-बहरों की
किसे ख़तीब बनाऊँ किसे ख़िताब करूँ
उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीं है ये दुनिया इसे ख़राब करूँ
ये ज़िंदगी जो मुझे क़र्ज़दार करती रही
कहीं अकेले में मिल जाए तो हिसाब करूँ
💠💠💠
💠💠💠
आज हम दोंनों को फुर्सत है चलो इश्क करें
इश्क दोंनों की जरूरत है चलो इश्क करें
इसमें नुकसान का खतरा ही नहीं रहता है
ये मुनाफे की तिजारत है चलो इश्क करें
आप हिन्दु मैं मुसलमान ये ईसाई वो सिख
यार छोड़ो ये सियासत है चलो इश्क करें
रोज़ रोज़ आते नहीं ऐसे नशीले मौसम
शाम है जाम है 'राहत' है चलो इश्क़ करे
देवताओ ने जो बक्शा है वो वरदान है इश्क़
इश्क़ नबियो की विरासत है चलो इश्क़ करे
💠💠💠
💠💠💠
झूठों ने झूठों से कहा है सच बोलो
सरकारी एलान हुआ है सच बोलो
घर के अंदर तो झूठों की एक मंडी है
दरवाज़े पर लिखा हुआ है सच बोलो
गुलदस्ते पर यकजहती लिख रक्खा है
गुलदस्ते के अंदर क्या है सच बोलो
गंगा मइया डूबने वाले अपने थे
नाव में किसने छेद किया है सच बोलो
💠💠💠
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें