बुराई की जड़ काटो! || Burai ka jad kaato

 किसी नगर में एक आदमी रहता था| उसके आंगन में एक पौधा उग आया| कुछ दिनों बाद वह पौधा बड़ा हो गया और उस पर फल लगे|एक दिन एक फल पककर नीचे गिरा| उसे एक कुत्ते ने मुंह में ले लिया देखते-देखते कुत्ते के प्राण निकल गए| आदमी ने सोचा, होगी कोई बात| उसका ध्यान फल की ओर नहीं गया| कुछ समय बाद पड़ोसी का लड़का[....]

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सेवक का बड़प्पन || Sewak ka Badappan

 मेवाड़ के महाराणा अपने एक नौकर को हमेशा अपने साथ रखते थे, चाहे युद्ध का मैदान हो, मंदिर हो या शिकार पर जाना हो। एक बार वह अपने इष्टदेव एकलिंग जी के दर्शन करने गए। उन्होंने हमेशा की तरह उस नौकर को भी साथ ले लिया। दर्शन कर वे तालाब के किनारे घूमने निकल गए। उन्हें एक पेड़ पर ढेर सारे पके आम दिखाई[....]

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सदा नहीं डरते || Sada nahi darte

 किसी नगर में एक सेठ रहा करता था| वह बड़ा ही उदार और परोपकारी था| उसके दरवाजे पर जो भी आता था, वह उसे खाली हाथ नहीं जाने देता था और दिल खोलकर उसकी मदद करता था|एक दिन उसके यहां एक आदमी आया उसके हाथ में एक पर्चा था, जिसे वह बेचना चाहता था| उसके पर्चे पर लिखा था - 'सदा न रहे!'इस परचे को कौन खरीदता,[....]

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धर्मोरक्षति रक्षित: || Dharmorakshti rakshitah

 वनवास के समय पाण्डव द्वैत वन में थे| वन में घूमते समय एक दिन उन्हें प्यास लगी| धर्मराज युधिष्ठिर ने वृक्ष पर चढ़कर इधर-उधर देखा| एक स्थान पर हरियाली तथा जल होने के चिह्न देखकर उन्होंने नकुल को जल लाने भेजा| नकुल उस स्थान की ओर चल पड़े| वहां उन्हें स्वच्छ जल से पूर्ण एक सरोवर मिला, किंतु जैसे[....]

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प्रंशसा से परोपकार || Prashansa se paropkaar

 दूसरे महायुद्ध की बात है। एक जापानी सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गया था, काफी रक्त बह चुका था, ऐसा लग रहा था, वह कुछ ही क्षणों का मेहमान है। एक भारतीय सैनिक की मानवता जागी, शत्रु है तो क्या? मरते हुये को पानी देना, मानवता के नाते धर्म है। म्रत्यु के आखिरी क्षणों में शत्रुता कैसी? उसने अपनी बोतल[....]

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चोर ब्राह्मण का कृत्य || Chor Brahmanon ka Kritya

 किसी नगर में एक महा विद्वान ब्राह्मण रहता था| विद्वान होने पर भी वह अपने पूर्वजन्म के कर्मों के फलस्वरूप चोरी किया करता था| एक बार उसने अपने नगर में ही बाहर से आए हुए चार ब्राह्मणों को देखा| वे व्यापार कर रहे थे| चोर ब्राह्मण ने सोचा कि वह ऐसा कौन-सा उपाय करे कि जिससे उनकी सारी सम्पत्ति उसके[....]

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जब इनकार किया राजा ने सज्‍जनता की उपाधि देने से || Jab inkaar kiya raja ne sajjanta ki upadhi dene se

 इंग्लैंड के राजा जेम्स उपाधि देने के लिए विख्यात थे। अपने शासनकाल में उन्होंने कई लोगों को विभिन्न प्रकार की उपाधियों से अलंकृत किया था। हालांकि जेम्स उसी को उपाधि देते थे जो उसका सही पात्र होता था। किसी को राजा जेम्स ने लॉर्ड की उपाधि दी तो किसी को डच्यूक की।अपने समय के प्रत्येक उस व्यक्ति को[....]

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आत्म निर्भरता || Atmanirbharta

 पुराने जमाने की बात है| अरब के लोगों में हातिमताई अपनी उदारता के लिए दूर-दूर तक मशहूर था| वह सबको खुले हाथों दान देता था| सब उसकी तारीफ करते थे|एक दिन उसने बहुत बड़ी दावत दी| जो चाहे, वह उसमें शामिल हो सकता था| हातिमताई कुछ सरदारों को लेकर दूर के मेहमानों को बुलावा देने जा रहा था|रास्ते में देखता[....]

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अधिकार की रोटी || Adhikar ki Roti

 बहुत पुरानी बात है। एक राजा था। उसके पास एक दिन एक संत आए। उन्होंने कई विषयों पर चर्चा की। राजा और संत में कई प्रश्नों पर खुलकर बहस भी हुई। अचानक बातों ही बातों में संत ने अधिकार की रोटी की चर्चा की। राजा ने इसके बारे में विस्तार से जानना चाहा तो संत ने उसे एक बुढ़िया का पता दिया और कहा कि वही[....]

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तोड़ो नहीं, जोड़ो || Todo nahi jodo

 अंगुलिमाल नाम का एक बहुत बड़ा डाकू था| वह लोगों को मारकर उनकी उंगलियां काट लेता था और उनकी माला बनाकर पहनता था| इसी कारण उसका यह नाम पड़ा था| मुसाफिरों को लूट लेना उनकी जान ले लेना, उसके बाएं हाथ का खेल था| लोग उससे बहुत डरते थे| उसका नाम सुनते ही उनके प्राण सूख जाते थे|संयोग से एक बार भगवान[....]

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धैर्य से पुन: सुख की प्राप्ति || Dhairya se punah sukh ki prapti

 एक बार युधिष्ठिर ने पितामह भीष्म ने पूछा, "पितामह ! क्या आपने कोई ऐसा पुरुष देखा या सुना है, जो एक बार मरकर पुन: जी उठा हो?"भीष्म ने कहा, "राजन ! पूर्वकाल में नैमिषारण्य में एक अद्भुत घटना घटी थी, उसे सुनो - एक बार एक ब्राह्मण का इकलौता पुत्र अल्पावस्था में ही मर गया था| रोते-बिलखते लोग उसे श्मशाम[....]

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शत्रुओं में फूट से अपना लाभ || Satruon mein foot se apna labh

 किसी नगर में द्रोण नाम का एक निर्धन ब्राह्मण रहा करता था। उसका जीवन भिक्षा पर ही आधारित था। अतः उसने अपने जीवन में न कभी उत्तम वस्त्र धारण किए थे और न ही अत्यंत स्वादिष्ट भोजन किया था। पान-सुपारी आदि की तो बात ही दूर है। इस प्रकार निरंतर दुःख सहने के कारण उसका शरीर बड़ा दुबला-पतला हो गया था।ब्राह्मण[....]

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ईश्वर के दर्शन का शिल्प || Ishwar ke darshan ke shilp

 प्रवचन करते हुए महात्मा जी कह रहे थे कि आज का प्राणी मोह-माया के जाल में इस प्रकार जकड़ गया है कि उसे आध्यात्मिक चिंतन के लिए अवकाश नहीं मिलता। प्रवचन समाप्त होते ही एक सज्जन ने प्रश्न किया, ‘आप ईश्वर संबंधी बातें लोगों को बताते रहते हैं लेकिन क्या आपने स्वयं कभी ईश्वर का दर्शन किया है?’ महात्मा[....]

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भाग्य की शक्ति || Bhagya ki Shakti

 एक राजा के घर में तीन स्तनों वाली कन्या पैदा हुई तो राजा ने उसे मुसीबत समझकर अपने नौकरों से कहा कि इसे जंगल में फेंक आओ|मंत्री ने राजा से कहा-महाराजा यह तो ठीक है कि तीन स्तनों वाली कन्या भारी होती है| लेकिन इसे फेंकने से पहले पंडितों से तो पूछ लेना चाहिये| क्योंकि प्राचीन काल में एक राक्षस द्वारा[....]

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जीने का रास्ता || Jeene ka Rashta

 किसी गांव के पास एक सांप रहता था| वह बड़ा ही तेज था| जो भी उधर से निकलता, वह उस पर दौड़ पड़ता और उसकी जान ले लेता| सारे गांव के लोग उससे तंग आ गए| वे उसे रात-दिन कोसते| आखिरकार उन्होंने उस मार्ग से निकलना ही छोड़ दिया| गांव का वह हिस्सा उजाड़-सा हो गया|एक दिन एक साधु उस गांव में आए| लोगों ने[....]

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धोखेबाज का अन्त || Dhokebaaz ka ant

 एक नगर में एक पंडित रहता था| उसे अपनी पत्नी से बहुत प्यार हो गया था| एक बार इन दोनों पति-पत्नी के परिवार वालों के साथ लड़ाई हो गई| जिसके कारण इन्हें अपना घर छोड़कर दूसरे शहर में जाना पड़ा|रास्ते में जाते-जाते उसकी पत्नी ने कहा-पतिदेव, मुझे पानी की प्यास सता रही है कहीं से पानी लाओ|पानी की बात[....]

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बुद्ध की सिखावन|| Budh ki Sikhawan

 भगवान् बुद्ध की धर्म-सभा में एक व्यक्ति रोज जाया करता था और उनके प्रवचन सुना करता था| उसका यह क्रम एक महीने तक चला, लेकिन उसके जीवन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा| बुद्ध बार-बार समझाते थे - "लोभ, द्वेष और मोह, पाप के मूल हैं| इन्हें त्यागो|" पर वह बेचारा इन बुराइयों से बचना तो दूर इनमें और फंसता[....]

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जब विदेशी के अपशब्दों को मंत्री ने दुआ कहा || Jab videshi ke apsabdon ko mantri ne dua kaha

 एक विदेशी को अपराधी समझ जब राजा ने फांसी का हुक्म सुनाया तो उसने अपशब्द कहते हुए राजा के विनाश की कामना की। राजा ने अपने मंत्री से, जो कई भाषाओं का जानकार था, पूछा- यह क्या कह रहा है? मंत्री ने विदेशी की गालियां सुन ली थीं, किंतु उसने कहा - महाराज! यह आपको दुआएं देते हुए कह रहा है- आप हजार साल[....]

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सच्चा यज्ञ || Sachha Yag

 एक बार युधिष्ठिर ने विधि-विधान से महायज्ञ का आयोजन किया। उसमें दूर-दूर से राजा-महाराजा और विद्वान आए। यज्ञ पूरा होने के बाद दूध और घी से आहुति दी गई, लेकिन फिर भी आकाश-घंटियों की ध्वनि सुनाई नहीं पड़ी। जब तक घंटियां नहीं बजतीं, यज्ञ अपूर्ण माना जाता। महाराज युधिष्ठिर को चिंता हुई। वह सोचने लगे[....]

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पापी मित्र || Paapi mitra

 किसी कुएं में गंगादत्त नाम का मेंढ़क रहता था| एक बार वह अपने दामादों से बड़ा परेशान था| यहां तक कि एक दिन इसके कारण उसे पने घर से बेघर होना पड़ा पर घर छोड़ने के पश्चात् उसने सोचा कि अब मैं इससे कैसे बदला लूं|इतने में उसने बिल में घुसते हुए सांप को देखा| उसे देखकर उसने सोचा कि क्यों न इस सांप[....]

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धर्मबुद्धि और पापबुद्धि || Dharambudhi aur paapbudhi

 किसी नगर में धर्मबुद्धि और पापबुद्धि नाम के दो मित्र रहते थे| एक बार पापबुद्धि ने विचार किया कि वह तो मुर्ख भी है ओर दरिद्र भी| क्यों न किसी दिन धर्मबुद्धि को साथ लेकर विदेश जाया जाए| इसके प्रभाव से धान कमाकर फिर किसी दिन इसको भी ठगकर सारा धन हड़प कर लिया जाए|यह विचारक वह अगले ही दिन धर्मबुद्धि[....]

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मोह नहीं, प्रेम || Moh nahin prem

 एक महात्मा हिमालय में रहते थे| वे हमेशा प्रभु का ध्यान करते रहते थे और दर्शननार्थियों को उपदेश दिया करते थे| एक दिन पढ़े-लिखे लोगों की एक टोली उनके पास पहुंची उन्होंने कहा - "महाराज, हम दुनिया को नहीं छोड़ना चाहते| उसी में रहकर आत्मिक उन्नति करना चाहते हैं| कोई उपाय बताइए|"स्वामीजी उनसे बोले[....]

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